विश्व बाजार शुल्क और सीमा

विश्व बाजार शुल्क और सीमा
Q. “The manufacturer ‘A’ produces solar panels in a foriegn country. ‘A’ exports solar panels to India at an unfairly lower price than its domestic market. Other manufacturers like ‘B’ in India producing similar products started crippling.”
Which of the following duties can the Indian government impose to protect its manufacturers from the competitive price offered by A, under the Special Safeguard Mechanism of the World Trade Organization?
Q. "निर्माता 'A' विदेश में सौर पैनलों का उत्पादन करता है। 'A' अपने घरेलू बाजार की तुलना में अनुचित रूप से कम कीमत पर भारत को सौर पैनल का निर्यात करता है। भारत में 'B' जैसे समान उत्पादों का उत्पादन करने वाले अन्य निर्माताओं पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ने लगा।"
विश्व व्यापार संगठन के विशेष सुरक्षा तंत्र के तहत भारत सरकार अपने निर्माताओं को 'A' द्वारा प्रस्तावित प्रतिस्पर्धी मूल्य से बचाने के लिए निम्नलिखित में से कौन सा शुल्क लगा सकती है?
नीतियों में बार-बार बदलाव से पैदा होती है अनिश्चितता
गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा के बाद भी मामला अब तक पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने हाल ही में एक पूर्व शर्त रखी कि सरकार से सरकार के स्तर पर निर्यात किए जाने वाले गेहूं का इस्तेमाल केवल घरेलू खपत के लिए किया जाएगा और उसे किसी अन्य देश को निर्यात नहीं किया जाएगा। इस बीच समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों विश्व बाजार शुल्क और सीमा के अनुसार बांग्लादेश को भेजा जाने वाला चार लाख टन गेहूं जो हजारों ट्रकों में लदा हुआ है, वह भी पश्चिम बंगाल में फंसा रहा है क्योंकि सीमा शुल्क अधिकारी उसे आगे नहीं जाने दे रहे।
ऐसे में इस समूचे घटनाक्रम पर एक त्वरित निगाह डालने की आवश्यकता है। रूस-यूक्रेन युद्ध ने विश्व स्तर पर गेहूं की कमी पैदा की क्योंकि यूक्रेन दुनिया के सबसे बड़े गेहूं निर्यातक देशों में से एक है। वैश्विक स्तर पर गेहूं की कीमतों में मजबूती को भारतीय किसानों तथा कारोबारियों के लिए एक बड़े अवसर के रूप में देखा गया क्योंकि वे विश्व बाजार मे अपना माल बेच सकते थे। प्रधानमंत्री ने तो यहां तक दावा कर दिया था कि भारत दुनिया का पेट भरने में सक्षम है और वह गेहूं आपूर्ति के मामले में यूक्रेन की कमी को पूरा कर सकता है।
भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक है लेकिन वह गेहूं का बड़ा निर्यातक नहीं रहा विश्व बाजार शुल्क और सीमा है। केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय ने एक कार्यबल गठित किया और नौ देशों में एक प्रतिनिधिमंडल भेजने का निर्णय लिया ताकि भारतीय गेहूं को प्रोत्साहित किया जा सके। प्रतिनिधिमंडल की रवानगी के महज एक दिन पहले सरकार ने अचानक यह घोषणा कर दी कि गेहूं के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से रोक लगायी जाती है।
निर्यात पर अचानक प्रतिबंध लगाने की घोषणा से अफरातफरी का माहौल बन गया। बंदरगाहों पर जाने के लिए ट्रकों पर लदी गेहूं की खेप वहीं फंस गई क्योंकि यह स्पष्ट नहीं था कि उन्हें जहाजों पर लादा जाएगा अथवा नहीं। जिन किसानों ने अपनी उपज सरकारी एजेंसियों को नहीं बेची थी क्योंकि वे ऊंची वैश्विक कीमतों का लाभ उठाना चाहते थे वे भी अचानक उठाए गए इस कदम से फंस गए।
इसके पश्चात स्पष्टीकरण आने शुरू हुए। कहा गया कि जिन अनुबंधों पर निजी कारोबारी पहले हस्ताक्षर कर चुके हैं उन्हें निर्यात करने दिया जाएगा। यह भी कहा गया कि सरकारों के बीच होने वाले सौदे जारी रहेंगे। ताजा ब्योरे के अनुसार भारत से गेहूं खरीदने वाले देशों को उसका घरेलू इस्तेमाल करना होगा। यह उचित निर्णय है हालांकि इसे शुरुआत में ही स्पष्ट कर दिया जाना चाहिए था।
गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध की घोषणा ने बहस को जन्म दे दिया। आलोचकों का कहना है कि अचानक उठाए गए इस कदम से एक विश्वसनीय कारोबारी साझेदार के रूप में भारत की प्रतिष्ठा को क्षति पहुंचेगी। अन्य तरीकों की बात करें तो घरेलू खरीद मूल्य में इजाफा करके भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता था। सरकार के निर्णय के समर्थकों का कहना है कि भारत को अतिरिक्त अनाज को बाहर बेचने से पहले अपने देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
दोनों ही दलीलों में दम है लेकिन ये एक बड़े बिंदु की अनदेखी करती हैं। बीते कुछ वर्षों से भारत का नीति निर्माण और हमारी नीतिगत घोषणाएं जल्दबाजी में की जाती हैं और बाद में उन्हें उतनी ही जल्दबाजी में संशोधित किया जाता है या बदल दिया जाता है।
हर महीने और हर सप्ताह अधिसूचनाओं एवं स्पष्टीकरण का आना जारी रहता है। उनमें से कुछ विरोधाभासी होती हैं और उन्हें आगे और अधिक स्पष्ट करने की आवश्यकता होती है। उच्च स्तरीय अधिकारियों की ओर से कोयला खरीद/आयात, दूरसंचार, कोविड-19 टीके के निर्यात, ई-कॉमर्स तथा यहां तक कि इलेक्ट्रिक वाहन बनाम पेट्रोल-डीजल इंजन को लेकर की गई घोषणाओं के मामले में भी ऐसा देखने को मिला। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) तथा ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (आईबीसी) जैसे बड़े कानूनों की बात करें तो यहां भी अधिसूचना, बदलाव, संशोधन एवं स्पष्टीकरण आदि विश्व बाजार शुल्क और सीमा आमतौर पर देखने को मिलते रहे। मूल कानून पारित होने के बाद बहुत लंबे समय तक इनका सिलसिला चलता रहा। आईबीसी के मामले में तो आगे भी संशोधनों की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। जीएसटी के मामले में दरों के साथ लगातार छेड़छाड़ की जा रही है जबकि इसे जारी किए हुए करीब पांच वर्ष का समय बीत चुका है। कोई भी नीति पहले दिन से एकदम परिपूर्ण नहीं हो सकती। ऐसे में समय के साथ प्रतिपुष्टि के आधार पर उनमें संशोधन करना और उन्हें बेहतर बनाना भी समझ में आता है।
बहरहाल, एक धारणा जो जोर पकड़ रही है वह यह है कि भारत में नीतिगत घोषणाएं अक्सर पर्याप्त चर्चा और बहस के बिना ही कर दी जाती हैं। अक्सर नियमों के मसौदे अलग-थलग ढंग से तैयार कर लिए जाते हैं और उन लोगों से कोई मशविरा नहीं लिया जाता जो उनसे प्रभावित होने वाले होते हैं। ज्यादातर मामलों में घोषणाएं अल्पावधि पर केंद्रित होती हैं और उनकी प्रकृति भी प्रतिक्रियावादी होती है, बजाय कि सुविचारित रणनीतियों के।
यह भी संभव है कि प्रतिपुष्टि उच्चतम स्तर पर नहीं पहुंचे और उसके पूर्व ही घोषणाएं हो जाएं। गेहूं से जुड़े प्रतिनिधिमंडल और निर्यात प्रतिबंध की बात करें तो जमीनी अधिकारियों को यह बात तो पता विश्व बाजार शुल्क और सीमा ही होगी कि गर्म हवा के थपेड़ों के कारण फसल प्रभावित हुई है और उत्पादन अनुमान के मुताबिक नहीं हुआ है। शायद उनकी रिपोर्ट उन अधिकारियों के पास बहुत देर से पहुंचीं जो प्रतिनिधिमंडल भेजने की तैयारी कर रहे थे। लेकिन तथ्य यही है कि यह कोई इकलौती ऐसी घटना नहीं है। चिंता का विषय भी यही है। बिजली उत्पादकों के सामने कोयले का संकट और गर्मियों में मांग में बढ़ोतरी का अनुमान लगाने में उनकी नाकामी भी ऐसा ही उदाहरण है। बिजली संयंत्रों में कोयले की कमी सरकार के जागने के बहुत पहले से अखबारों की सुर्खियां बनती रही।
नीतियों को वापस लेना और उनमें बदलाव इतनी जल्दी-जल्दी होता है कि घरेलू और वैश्विक कारोबारी तक इससे उलझन में हैं। कोई भी निवेशक चाहता है कि नीतिगत दिशा स्पष्ट रहे तथा जमीन पर पैसा लगाने के पहले वह स्थिरता सुनिश्चित करना चाहता है। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार पर अक्सर यह आरोप लगता रहा है कि वह नीतिगत पंगुता की शिकार थी। ऐसा इसलिए कि वहां इतनी बहसें होती थीं कि समय पर कोई नीति बन ही नहीं पाती थी। मौजूदा प्रशासन की बात करें तो दिक्कत इसके उलट है। नीतिगत घोषणाएं बहुत जल्दी की जाती हैं और उतनी ही जल्दी उन्हें पलट भी दिया जाता है।
(लेखक विश्व बाजार शुल्क और सीमा बिज़नेस टुडे और बिज़नेस वर्ल्ड के पूर्व संपादक तथा संपादकीय सलाहकार संस्था प्रोजैकव्यू के संस्थापक हैं)
घरेलू कीमतों पर अंकुश के लिए गैर बासमती चावल निर्यात पर 20 फीसदी सीमा शुल्क लगाने का फैसला
करीब दो सप्ताह पहले रिकॉर्ड चावल उत्पादन के आंकड़े जारी करने और चालू कृषि उत्पादन सीजन 2022-23 में विश्व बाजार शुल्क और सीमा रिकॉर्ड 32.8 करोड़ खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य जारी करने के अगले ही दिन केंद्र सरकार ने घरेलू बाजार में बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए चावल निर्यात को हतोत्साहित करने के मकसद से 20 फीसदी का सीमा शुल्क लगा दिया है। इसके लिए जारी अधिसूचना के तहत शुल्क भूसी सहित चावल यानी धान, ब्राउन राइस (छिलके सहित चावल) और होल मिल्ड या सेमी मिल्ड चावल, पॉलिश्ड या ग्लेज्ड चावल की श्रेणी को शुल्क लगने वाली श्रेणी में रखा गया है। बासमती और सेला (पारबॉयल्ड) चावल के निर्यात को शुल्क मुक्त रखा गया है
Harvir Singh WRITER: [email protected]
करीब दो सप्ताह पहले रिकॉर्ड चावल उत्पादन के आंकड़े जारी करने और चालू कृषि उत्पादन सीजन 2022-23 में रिकॉर्ड 32.8 करोड़ खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य जारी करने के अगले ही दिन केंद्र सरकार ने घरेलू बाजार में बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए चावल निर्यात को हतोत्साहित करने के मकसद से 20 फीसदी का सीमा शुल्क लगा दिया है। इसके लिए राजस्व विभाग द्वारा जारी अधिसूचना के तहत भूसी सहित चावल यानी धान, ब्राउन राइस (छिलके सहित चावल) और होल मिल्ड या सेमी मिल्ड चावल, पॉलिश्ड या ग्लेज्ड चावल की श्रेणी को शुल्क लगने वाली श्रेणी में रखा गया है। बासमती और सेला (पारबॉयल्ड) चावल के निर्यात को शुल्क मुक्त रखा गया है। इस संबंध में वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग द्वारा 8 सितंबर, 2022 को अधिसूचना जारी की गई है विश्व बाजार शुल्क और सीमा और 9 सितंबर शुक्रवार से निर्यात पर 20 फीसदी सीमा शुल्क का यह फैसला लागू हो गया है।
अधिसूचना में कहा गया है कि निर्यात शुल्क लगाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा संतुष्ट होने के चलते प्रदत्त अधिकारों के तहत निर्यात पर शुल्क लगाने का फैसला लिया गया है।
चालू खरीफ सीजन में देश के करीब दर्जनभर चावल उत्पादक राज्योंं में बारिश कम होने के चलते धान का रकबा कम चल रहा है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक धान का रकबा विश्व बाजार शुल्क और सीमा पिछले साल से करीब छह फीसदी तक कम है। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में बारिश की कमी के चलते धान का रकबा तो घटा ही है फसल की स्थिति बहुत बेहतर नहीं है। एक दिन पहले ही उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में जिला स्तर पर सूखे की स्थिति का जायजा लेने का फैसला लिया है। इन राज्यों में बारिश का स्तर सामान्य से 40 से 50 फीसदी तक कम है। ऐसे में चालू खरीफ सीजन की धान की फसल के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ना लगभग तय है। यही वजह है कि सरकार ने निर्यात को हतोत्साहित करने के लिए सामान्य चावल की किस्मों के निर्यात पर 20 फीसदी सीमा शुल्क लगाने का फैसला लागू किया है।
पिछले वित्त वर्ष में भारत करीब 200 लाख टन चावल के निर्यात के साथ दुनिया के सबसे बड़ा चावल निर्यातक के रूप में स्थापित हो गया था जो विश्व के चावल निर्यात बाजार का 40 फीसदी हिस्सा है। भारत के निर्यात को हतोत्साहित करने के लिए 20 फीसदी सीमा शुल्क लगाने के चलते वैश्विक बाजार में चावल की कीमतों में बढ़ोतरी आ सकती है। हालांकि यह फैसला बासमती और सेला चावल पर लागू नहीं होगा। देश से हर साल करीब 40 लाख टन बासमती और करीब 70 लाख टन सेला चावल का निर्यात होता है। उस हिसाब से यह फैसला आधे से कुछ कम चावल निर्यात को प्रभावित करेगा।
वहीं घरेलू बाजार में पिछले कुछ माह में चावल की कीमतें करीब पांच से सात फीसदी तक बढ़ गई हैं। इसी के चलते किसानों को कम अवधि की साठा चावल किस्मों के धान के लिए जुलाई में 3000 रुपये से 3500 रुपये प्रति क्विटंल की कीमत मिली है।जो घरेलू बाजार में चावल कीमतों में तेजी का संकेत है। लेकिन निर्यात पर शुल्क लगाने के 8 सितंबर के फैसले के चलते कीमतों में वृद्धि पर अंकुश लगने की संभावना है।
पिछले सीजन 2021-22 में मार्च में अचानक तापमान में बढ़ोतरी के चलते गेहूं के उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ा था और उसके चलते सरकारी खरीद भी 15 साल के निचले स्तर पर चली गई थी और केंद्रीय पूल में 1 जून को गेहूं का स्टॉक 14 साल के निचले स्तर पर था। गेहूं की कीमतें सरकारी खऱीद के दौरान ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी उपर चली गई थी। कीमतों में बढ़ोतरी पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार ने 13 मई, 2022 को गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी थी। वहीं पिछले दिनों गेहूं के आटा के निर्यात पर ऱोक लगा दी गई थी।
हालांकि केंद्रीय पूल में चावल का स्टॉक बेहतर स्थिति में है और सरकार को सार्वजनिक वितरण प्रणाली व दूसरी योजनाओं के तहत चावल के आवंटन में अभी कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन जिस तरह से खरीफ फसल के कमजोर रहने की आशंका लग रही है उसके चलते सरकारी खरीद भी प्रभावित हो विश्व बाजार शुल्क और सीमा सकती है। यही वजह है कि सरकार घरेलू बाजार में कीमतों और चावल की उपलब्धता को लेकर कोई चांस नहीं लेना चाहती है और उसी के चलते निर्यात पर शुल्क लगाने का यह फैसला आया है।
बजट में होगी निर्यात को और सुविधाजनक बनाने की नई पहल
देश के निर्यात को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिये निर्यात लागत को कम करने और उसे सुविधाजनक बनाने के लिये पड रहे चौतरफा दबाव के बीच वित्त मंत्रालय आगामी बजट में इस दिशा में कुछ नये कदम उठा सकता है.
- नई दिल्ली,
- 08 फरवरी 2011,
- (अपडेटेड 08 फरवरी 2011, 9:22 PM IST)
देश के निर्यात को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिये निर्यात लागत को कम करने और उसे सुविधाजनक बनाने के लिये पड रहे चौतरफा दबाव के बीच वित्त मंत्रालय आगामी बजट में इस दिशा में कुछ नये कदम उठा सकता है.
वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने इसका संकेत देते हुये कहा कि वित्त मंत्रालय निर्यातकों की विश्व बाजार शुल्क और सीमा मदद के लिये प्रतिबद्ध है. उन्होंने कहा कि निर्यातकों को शुल्क मुक्त आयात और सेवाकर रिफंड के लिये प्रक्रियाओं को सरल बनाया जायेगा. मुखर्जी ने निर्यातकों की निर्यात सौदों पर आने वाली लागत पर तैयार कार्यदल की रिपोर्ट जारी करने के मौके पर यह जानकारी दी.
यह रिपोर्ट वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के मार्गनिर्देशन में तैयार की गई. मुखर्जी ने कहा निर्यातकों के लिये ‘सिंगल बॉन्ड पत्र’ और ‘सेवा कर रिफंड’ जैसे प्रक्रियाओं को सरल बनाने वाले उपायों पर काम चल रहा है. सेवा कर रिफंड पर एक समिति बनाई गई है, यह अपना काम कर रही है और इसमें सुझाव भी मांगे जा रहे हैं.
उन्होंने कहा कि सरकार निर्यात कारोबार पर आने वाली लागत को कम करने के लिये खुले दिमाग से काम करेगी. वित्त मंत्री ने कहा कि देश के निर्यात कारोबार में सात से दस प्रतिशत इसपर आने वाली लागत होती है. इस लिहाज से 200 अरब डालर के निर्यात में करीब 15 अरब डालर केवल सौंदों पर आने वाली विभिन्न प्रकार की लागत होती है. इस लागत को कम करने के लिये तैयार कार्यबल की रिपोर्ट की उन्होंने सराहना की.
मुखर्जी ने निर्यात का खर्चा कम करने की दिशा में उठाए गए कदमों की जानकारी देते हुए कहा कि आठ सीमा शुल्क केन्द्रों पर 24 घंटे क्लीयरेंस सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है. उन्होंने कहा, ‘कोलकाता, मंगलूर, जेएनपीटी, मुंबई, भुवनेश्वर और चेन्नई सहित आठ सीमा शुल्क केन्द्र 24 घंटे निर्यात माल की मंजूरी देने के लिये काम कर रहे हैं.’ इससे निर्यातकों के समय की बचत होगी.
इससे पहले वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने कहा कि विश्व बाजार की मंदी से उपजी तमाम समस्याओं के बावजूद चालू वित्त वर्ष में देश का निर्यात कारोबार 200 अरब डालर के आंकड़े को पार कर जायेगा.
शर्मा ने कहा, ‘भारत में एक कंटनेर निर्यात माल भेजने पर निर्यातकों को विभिन्न सरकारी प्रक्रियाओं पर 945 डालर का खर्च करना पड़ता है. चीन में ये खर्चे 460 डालर और मलेशिया में 450 डालर प्रति कंटेनर तक है.’ उन्होंने कहा, ‘इस लागत को घटाकर कम से कम 500 डालर तक लाया जायेगा.’ शर्मा ने कहा कि निर्यात कारोबार को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिये विश्वस्तरीय ढांचागत सुविधा और कागजी कारवाई में लगने वाले समय को कम करना महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा कि इन मामलों में कार्यबल की रिपोर्ट महत्वपूर्ण साबित होगी.