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प्रारंभिक लागत

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रेल कोच फैक्टरी, कपूरथला- एक परिदृश्य

पता :
प्रशासनिक भवन
रेल कोच फैक्टरी,
कपूरथला- 144602(पंजाब)

संपर्क नं. : ( Landline): 01822-227734-35

रेल कोच फैक्ट्री, कपूरथला की आधारशिला भारत के माननीय प्रधान मंत्री स्वर्गीय श्री राजीव गांधी द्वारा 17.08.1985 को रखी गई थी। इस परियोजना का उद्देश्य भारतीय रेलवे (आईआर) की लगातार बढ़ती मांग के लिए यात्री डिब्बों की उत्पादन क्षमता को बढ़ाना और पंजाब के युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना था। परियोजना को 1985 में रुपये423 करोड़ की प्रारंभिक लागत पर मंजूरी दी गई थी, प्रारंभिक लागत हालांकि विस्तार परियोजनाओं को बाद में लिया गया था ।

आरसीएफ में उत्पादन 19.09.1987 को शुरू हुआ, यानि परियोजना की शुरुआत के दो साल बाद और पहला कोच 31.03.1988 को रवाना किया गया था। RCF ने कॉर्टन स्टील से बने ICF डिज़ाइन के डिब्बों का निर्माण शुरू किया, हालाँकि 1998 में जर्मनी के Linke Hofmann Busch (LHB) से प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के बाद, इसने 160 किमी प्रति घंटे की गति क्षमता वाले आधुनिक स्टेनलेस स्टील के डिब्बों का निर्माण शुरू कर दिया। इनका राजधानी और शताब्दी एक्सप्रेस आदि जैसी प्रीमियम ट्रेनों में व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है। भारत की पहली तेजस ट्रेन 18.05.2017 को आरसीएफ से रवाना की गई थी और इसे 22.05.2017 को मुंबई-करमाली (गोवा) मार्ग पर सेवा में लगाया गया था। इसके बाद, नवंबर 2018 में बौद्ध सर्किट रेक के लिए कोच बनाए गए। 19.03.2019 को, आरसीएफ से पहले उदय रेक के लिए कोच रवाना किए गए। आरसीएफ, सभी पांच प्रकार की नई शैली के डिब्बों जैसे- तेजस, हमसफर, उदय, अंत्योदय और दीनदयालु का निर्माण करने वाली भारतीय रेल की एकमात्र उत्पादन इकाई है । 30.01.2020 को, आरसीएफ ने उच्च गति पर उच्च मात्रा में भार वहन करने के लिए उच्च क्षमता वाली पार्सल वैन पेश की। बाद में उसी वर्ष 16.11.2020 को 160 किमी प्रति घंटे की गति क्षमता वाले डबल डेकर का एक प्रोटोटाइप तैयार किया गया । 11.02.2021 को, आरसीएफ के ताज में एक और रत्न जुड़ गया , जब उसने भारतीय रेलवे के पहले वातानुकूलित इकोनॉमी क्लास कोच को अधिक गति प्रारंभिक लागत और बर्थ क्षमता के साथ रवाना किया।

इसके अलावा, आरसीएफ ने मीटर गेज (एमजी) कोच भी तैयार किए हैं, जिन्हें बांग्लादेश के लिए एलएचबी कोच बनाने के अलावा अफ्रीकी और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों को निर्यात किया गया है।

RCF वर्ष 1995 से ही ISO-9001 प्रमाणपत्र धारक रहा है। जुलाई 1999 में, RCF देश का पहला संगठन बन गया जिसे कार्यशाला के साथ-साथ इसके आवासीय परिसर और पर्यावरण प्रबंधन में अस्पताल के लिए ISO-14001 प्रमाण-पत्र से सम्मानित किया गया। RCF को IMS (एकीकृत प्रबंधन प्रणाली) से प्रमाणित किया गया है जिसमें मई 2009 से ISO 9001:2008 (गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली), ISO 14001:2004 (पर्यावरण प्रबंधन प्रणाली) और OHSAS 18001:2007 (व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली) शामिल हैं। साथ ही , आरसीएफ को मई 2017 में आईएसओ:50001 का प्रमाण-पत्र भी मिला है, जिसमें ऊर्जा बचाने के साथ-साथ संसाधनों के संरक्षण और जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने के लिए कुशलतापूर्वक ऊर्जा का उपयोग करने की परिकल्पना की गई है। ISO 50001 ऊर्जा प्रबंधन प्रणाली (EnMS) के विकास के माध्यम से ऊर्जा का अधिक कुशलता से उपयोग करने का समर्थन करता है। RCF भी जनवरी 2020 से एक IRIS प्रमाणित संगठन है।

आरसीएफ में शॉपिंग सेंटर, बैंक, डाकघर, मनोरंजन और खेल सुविधाओं के साथ एक एकीकृत टाउनशिप है। महिला कल्याण संगठन परिवार के सदस्यों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देने में सक्रिय है। यह संस्था विशेष रूप से विकलांग बच्चों के लिए -वात्सल्य केंद्र के अलावा एक क्रेच, महिलाओं और बच्चों के लिए एक कंप्यूटर केंद्र, एक स्कूल और एक सिलाई प्रशिक्षण केंद्र चला रही है। आरसीएफ स्पोर्ट्स एसोसिएशन कर्मचारियों और उनके बच्चों के प्रारंभिक लागत बीच खेल को बढ़ावा देने के लिए सक्रिय रूप से जुड़ा हुआ है। यहां 18-होल गोल्फ कोर्स और हॉकी स्टेडियम है जिसमें सुपरटर्फ है और साल-दर-साल अंतरराष्ट्रीय कैलिबर के खिलाड़ियों प्रारंभिक लागत का मंथन करता है। आरसीएफ अपने कई खिलाड़ियों की उपलब्धियों पर गर्व कर सकता है, जिनके पास अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर की चैंपियनशिप में अपना सम्मान है। अन्य खेल बुनियादी ढांचे के अलावा, आरसीएफ में एक क्रिकेट स्टेडियम है, जिसे बीसीसीआई के मानदंडों के अनुसार बनाया गया है।


Source : Welcome to Rail Coach Factory Kapurthala Official Website CMS Team प्रारंभिक लागत Last Reviewed on: 08-06-2022

रुचि के स्थान

काबर झील इस क्षेत्र के सबसे अधिक प्रासंगिक प्राकृतिक संसाधनों में से एक है। कई मूर्त और गैर मूर्त लाभ जो झील को प्रदान करता है, अनगिनत हैं। यह इस क्षेत्र के लोगों के जीवन में अलग-अलग उपयोगकर्ताओं और विभिन्न समुदायों के लिए अलग-अलग सेवाएं पेश करता है। झील क्षेत्र के मछुआरों (मल्लाह) समुदाय के लिए मछली पकड़ने के मैदान के रूप में कार्य करता है। दोनों संगठित और गैर संगठित मछली पकड़ने के लिए इस झील का इस्तेमाल करते है, जहां गैर-संगठित एक बड़ा हिस्सा है।

जैमंगला गढ़

पाल राजवंश काल से संबंधित प्राचीन मंदिर, आसपास के गांवों के पवित्र स्थान, पुरातात्विक निष्कर्ष बताते हैं कि मोआ-रमन द्वारा घिरे गढ़वाले स्थान थे।

आई ओ सी अल

बरौनी रिफाइनरी रूस और रोमानिया के सहयोग से बनाया गया था पटना से 125 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, यह 49.40 करोड़ रुपये की प्रारंभिक लागत के साथ बनाया गया था। 1964 में बरौनी रिफाइनरी को चालू किया गया था।

प्रारंभिक लागत

देश में गुणवत्तायुक्त ईसीई सेवाएं प्रदान करने के लिए अनुमानित लागत पर यह अपनी तरह का पहला शोध प्रमाण है।
सर्वाधिक आवश्यक नीतिगत कार्रवाई के रूप में सकल बजटीय सहयोग (जीबीएस) में भारी वृद्धि की सिफ़ारिश की।


नई दिल्ली, 21 सितंबर, 2022 –
बाल रक्षा भारत (सेव द चिल्ड्रन इंडिया) – बाल रक्षा भारत द्वारा स्वीकृत एवं सेंटर फॉर बजट एवं गवर्नेंस अकाउंटेबिलिटी (सीबीजीए) द्वारा किए गए अध्ययन, ‘‘भारत में शुरुआती बाल शिक्षा के सार्वभौमीकरण की लागत’’ का आज अनावरण किया गया। इसमें भारत में शुरुआती बाल शिक्षा पर खर्च होने वाली राशि और फंड के फ्लो की गणना करने के लिए बजट का विश्लेषण किया गया है। यह अध्ययन भारत में 3 से 6 साल के आयु समूह के बच्चों के लिए ईसीई सेवाओं के सार्वभौमीकरण की लागत का अनुमान प्रस्तुत करने का पहला प्रयास है।

इस रिपोर्ट का अनावरण वृंदा सरूप,पूर्व सचिव,शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार, की मौजूदगी में किया गया।

भारत में बाल रक्षा भारत (सेव द चिल्ड्रन इंडिया) के सीईओ, सुदर्शन सुचि ने कहा, ‘‘नेशनल एजुकेशन पॉलिसी“ (एनईपी) (राष्ट्रीय शिक्षा नीति) 2020, साल 2030 तक शुरुआती बाल देखभाल और शिक्षा के सार्वभौमीकरण करने के एसडीजी 4.2 के लिए प्रारंभिक लागत भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करती है। यह लक्ष्य प्राप्त करने के लिए भारी वित्तीय निवेश जरूरी है। यद्यपि एनईपी 2020 में ईसीसीई पर ‘फाईनेंसिंग के लिए एक मुख्य दीर्घकालिक क्षेत्र’ के रूप में बल दिया गया है, लेकिन ईसीसीई के सार्वभौमीकरण के लिए जरूरी फंड की मात्रा को परिभाषित किए जाने की जरूरत है। यह रिपोर्ट हमारे द्वारा किए गए एक पूर्व प्रयास, ‘‘द राईट स्टार्ट’’ 2018 स्टडी के आधार पर बनाई गई है, जिसमें 3 से 6 साल के सभी बच्चों को गुणवत्तायुक्त ईसीई सेवाएं प्रदान करने के लिए अनुमानित वित्तीय संसाधनों के जरूरी प्रमाण दिए गए थे, और हम भारत में 3 से 6 साल के बच्चों के जीवन में दीर्घकालिक परिवर्तन लाने के लिए प्रारंभिक लागत प्रमाण-आधारित नीति निर्माण में सरकार का सहयोग करने के लिए आशान्वित हैं।’’

सुब्रत दास, एग्ज़िक्यूटिव डायरेक्टर, सीबीजीए ने कहा, ‘‘देश में ईसीई सेवाओं की विषम गुणवत्ता और कवरेज के कारण यह जरूरी है कि एक प्रतिक्रियाशील ईसीई मॉडल का विकास किया जाए, जो भारत सरकार एवं राज्य सरकारों को 3 से 6 साल के सभी बच्चों को समान सेवाएं प्रदान करने में मदद कर सके। शुरुआती गुणवत्तायुक्त लर्निंग प्रदान करने में संलग्न लागत के सटीक अनुमान से प्रभावशाली योजना बनाने, संसाधनों का बुद्धिमत्तापूर्ण इस्तेमाल करने, और निर्णय लेने की बेहतर क्षमता का विकास करने में मिल सकती है। इस संदर्भ में सीबीजीए का उद्देश्य विशेष मान्यताओं के आधार पर उच्च गुणवत्ता की ईसीई प्रणाली के क्रियान्वयन के लिए लागत का एक प्रकल्पित अनुमान विकसित करना है। इससे सरकार द्वारा बच्चों को शुरुआती गुणवत्तायुक्त अध्ययन व देखभाल प्रदान करने में लगने वाले निवेश के लिए कुल संसाधनों के संभावित परिमाण का अनुमान लगाने में मदद मिलेगी।’’

शुरुआती बाल शिक्षा व देखभाल एक स्वस्थ व समृद्ध समाज के लिए बहुत जरूरी है। बच्चों को उम्र के मुताबिक देखभाल और शिक्षा प्रदान करना राज्य का दायित्व है। भारत इसे नीति में मान्यता देता है और ईसीसीई पर केंद्रित अनेक अंतर्राष्ट्रीय समझौतों में एक हस्ताक्षरकर्ता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (नेशनल एजुकेशन पॉलिसी) (एनईपी 2020) में साल 2030 तक शुरुआती बाल शिक्षा के सार्वभौमीकरण के लिए एसडीजी 4.2 के प्रति भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि की गई है। यह लक्ष्य प्राप्त करने के लिए भारी वित्तीय निवेश करने की जरूरत है। यद्यपि हमारे पास ईसीई के लिए एक मजबूत नीतिगत परिदृश्य है, लेकिन उसके लिए हमारे पास पर्याप्त वित्त उपलब्ध नहीं है। लेकिन ईसीई का महत्व इतना ज्यादा है, कि यह अनिवार्य हो गया है।

इस रिपोर्ट के मुख्य परिणाम निम्नलिखित हैं:-

1. एक सुदृढ़ शुरुआती बचपन का गठन करने प्रारंभिक लागत वाले तत्व आपस में जुड़े हुए हैं।
2. ईसीई प्रावधान के तीन मॉडलों, यानि एनजीओ, सरकार और निजी इकाईयों का विश्लेषण ईसीई कार्यक्रमों की विविध संरचना और सेवाओं की पुष्टि करता है।
3. इस अध्ययन में विश्लेषण से प्रदर्शित होता है कि आईसीडीएस रिपोर्ट्स के तहत एडब्लूसी सभी चयनित ईसीई मॉडलों में सबसे कम संचालन लागत और सबसे कम प्रति बच्चा लागत प्रस्तुत करता है।
4. भारत में ईसीई के लिए पब्लिक प्रोविज़निंग द्वारा 3 से 6 साल के लगभग 32 प्रतिशत बच्चों को सेवाएं मिलती हैं, और विश्लेषण से प्रदर्शित होता है कि प्रति वर्ष प्रति बालक लगभग 8,297 रु. का निवेश किया जाता है। यह खर्च विभिन्न राज्यों में अलग-अलग होकर मेघालय में 3,792 रु. से लेकर अरुणाचल प्रदेश में 34,758 रु. के बीच है।
5. गुणवत्तायुक्त ईसीई सेवाओं के लिए प्रति वर्ष प्रति बालक औसत अनुमानित लागत 32,531 रु. (व्यवहारिक लागत)- 56327 रु. (सर्वाधिक अनुकूल लागत) के बीच होती है। वास्तविक लागत (इस सीमा में) क्रियान्वयन के लिए sअपनाए गए मॉडल पर निर्भर होगी।
6. हर साल सार्वभौम ईसीई सेवाओं के लिए मुख्य कार्यक्रमानुसार प्रशासनिक एवं प्रबंधन की लागत (मॉनिटरिंग और सुपरविज़न, गुणवत्ता सुधार और संस्थान निर्माण की लागत) 367 करोड़ रु. है।
7. इस अध्ययन का निष्कर्ष निकला है कि 3 से 6 साल के सभी बच्चों को सार्वभौम गुणवत्तायुक्त ईसीई सेवाएं प्रदान करने के लिए जीडीपी के 1.5 प्रतिशत से 2.2 प्रतिशत बजट का आवंटन किया जाना चाहिए।

भारत में ईसीई के सार्वभौमीकरण के लिए सुझाव
1. 3 से 6 साल के बच्चों को निशुल्क अनिवार्य ईसीई सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त सरकारी प्रारंभिक लागत निवेश की जरूरत है।
2. फंड के फ्लो और यूटिलाईज़ेशन पर निगरानी रखने के लिए एक मजबूत प्रणाली।
3. ईसीई का क्षेत्रीय विश्लेषण किया जाना समय की मांग है।
4. शासन के हर स्तर पर भौतिक और वित्तीय डेटा की अलग-अलग उपलब्धता बनाने की जरूरत।
5. गुणवत्तायुक्त ईसीई सुनिश्चित करने के लिए व्यवसायिक रूप से प्रशिक्षित नियमित कैडर के कार्यबल की जरूरत।
6. प्रशिक्षण एवं मॉनिटरिंग में निवेश को प्राथमिकता दिया जाना।
7. केंद्रीय स्तर पर चयनित तत्वों के लिए मानकीकृत वित्तीय नियम बनाए जाने की जरूरत है।
8. ईसीई हस्तक्षेपों से जुड़े तत्वों की यूनिट लागत में संशोधन कर उसे बढ़ाए जाने की जरूरत है।
9. ईसीई संस्थानों का क्षमता निर्माण किए जाने व उसे मजबूत किए जाने की जरूरत है।
10.ईसीई कार्यक्रमों को नियमाधीन किए जाने की जरूरत है।
11.ईसीई कार्यक्रमों के लिए आईसीटी एकीकरण जरूरी है।

गुणवत्तायुक्त ईसीई की पब्लिक प्रोविज़निंग में समानता लाने की शक्ति है। निर्धारित समयसीमा में एसडीजी लक्ष्य 4.2 को प्राप्त करने के लिए गुणवत्तायुक्त ईसीसीई कार्यक्रम के लिए पर्याप्त फाईनेंसिंग एक आवश्यक निवेश है, जो भारत में होना चाहिए। इस रिपोर्ट में विश्लेषण से इस सेक्टर में संसाधनों की जरूरत और मौजूदा आवंटन में अंतर साफ हो जाता है। इसलिए सरकार के अंदर और बाहर वैकल्पिक स्रोतों से सतत वित्तीय कार्ययोजनाओं की जरूरत है।

निर्विवाद तथ्य है कि एक सार्वभौम ईसीई कार्यक्रम के लिए जीडीपी के 1.5 प्रतिशत तक पहुँचने के लिए सबसे पहले सकल बजटीय सहयोग (जीबीएस) में भारी वृद्धि करते हुए नीति बनाकर कार्रवाई किए जाने की जरूरत है। राज्य व केंद्र सरकार के सीमित संसाधनों को देखते हुए जीबीएस में होने वाली इस वृद्धि को देश के टैक्स राजस्व में वृद्धि करके फंड दिए जाने की जरूरत है। इसके लिए संभावित दीर्घकालिक समाधान प्रत्यक्ष कर से जीडीपी14 अनुपात में वृद्धि या ऋण द्वारा डेफिसिट फाईनेंसिंग हैं। हालाँकि, संसाधनों के आवंटन और कार्यक्रमों के क्रियान्वयन की प्रक्रिया तत्काल शुरू की जानी चाहिए।

About CBGA
Centre for Budget and Governance Accountability (CBGA) is an independent, non-profit policy research organization based in Delhi. It carries out rigorous analysis of policies and budgets for facilitating improvements in fiscal governance in the country.

About Save the Children India
Save the Children works across 18 states of India and in 120 countries, on issues related to education, health, protection and humanitarian/DRR needs of children, especially for those who are the most deprived and marginalized. Save the Children’s association with India is more than 80 years old. Visit www.savethechildren.in for more information.

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प्रारंभिक लागत

स्थितियों की मॉनीटरिंग और दोष निदान का इतिहास उतना ही पुराना है जितना कि प्रेरण मोटर। प्रेरण मोटर्स ने शुरू में सुरक्षित संचालन सुनिश्चित करने के लिए ओवर-करंट और ओवर-वोल्टेज जैसे सरल सुरक्षा पर भरोसा किया। इन उपकरणों के बावजूद, कई उद्योगों को अप्रत्याशित प्रणाली विफलताओं का सामना करना पड़ रहा है जिससे मोटर का जीवनकाल कम हो गया है। प्रेरण मोटर्स का उपयोग तेजी से जटिल होता जा रहा है, इन मोटरों की स्थिति की मॉनीटरिंग और दोष निदान अनिवार्य हो रहा है। एक दोष-सहिष्णु नियंत्रण ड्राइव सुनिश्चित करने के लिए उल्लेखनीय नैदानिक रणनीतियों और नियंत्रण योजनाओं को तैयार किया गया था। विभिन्न प्रकार के दोषों के खिलाफ प्रेरण मोटर ड्राइव प्रणाली की विश्वसनीयता में सुधार के लिए अतिरेक और रूढ़िवादी डिज़ाइन तकनीकों को अपनाया गया है और इसका कार्यान्वयन महँगा है। प्रेरण मोटर्स की प्रारंभिक दोष पहचान और अनुमान के कारण स्थिति की मॉनीटरिंग ने कई शोधकर्ताओं को आकर्षित किया है प्रारंभिक दोषों का शीघ्र पता लगाने और सही निदान करने से निवारक रखरखाव किया जा सकता है और प्रभावित प्रक्रिया को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त समय प्रदान किया जा सकता है। वे वित्तीय नुकसान को कम कर सकते हैं और विनाशकारी परिणामों से बच सकते हैं।

उद्देश्‍य

सीएसआईओ चेन्‍नै केन्‍द्र ने प्रेरण मोटर स्वास्थ्य की मॉनीटरिंग के लिए लागत प्रभावी, गैर-अंतर्वेधी मोटर स्टेथोस्कोप विकसित करने और यंत्रीकरण की नवीनतम कला का उपयोग करके दोष का निदान करने का प्रस्ताव दिया। यह प्रणाली साइट पर और ऑनलाइन प्रेरण मोटर्स के स्वास्थ्य की मॉनीटरिंग के लिए प्रभावी और विश्वसनीय होगी।

कार्यप्रणाली

स्‍वचालन के व्यापक उपयोग और मोटर ड्राइव प्रणाली परिचालन की मॉनीटरिंग के लिए प्रत्यक्ष मानव-मशीन पारस्‍परिक क्रिया में परिणामी कमी के कारण हाल ही में अभियांत्रिकी संयंत्र की स्थिति की मॉनीटरिंग और दोष निदान में वृद्धि हुई है। इसकी कम लागत, यथोचित छोटे आकार, और आसानी से उपलब्ध बिजली की आपूर्ति के साथ संचालन के कारण, प्रेरण मोटर व्यापक रूप से उद्योगों जैसे मोटर वाहन, वांतरिक्ष, और औद्योगिक उपकरण में उपयोग किया जाता है। हालाँकि, परिचालन पर्यावरण, शुल्‍क, और प्रतिष्‍ठापन मुद्दों को डिज़ाइन मोटर के जीवनकाल की तुलना में प्रेरण मोटर की असफलता को तेज करने के लिए जोड़ सकते हैं। दोष स्टेटर, रोटर, वहन, या प्रेरण मोटर से जुड़ी बाहरी प्रणाली में हो सकते हैं। ये दोष निम्‍नलिखित एक या अधिक लक्षण उत्पन्न कर सकते हैं:

लागत-प्रभावी गैर-अंतर्वेधी का डिज़ाइन और विकास

  • असंतुलित वोल्टेज और लाइन धाराएँ
  • कम्‍पन और शोर
  • टॉर्क स्‍पंदन
  • अत्‍यधिक ताप
  • रिसाव प्रवाह
  • अन्‍य लक्षण

एक आदर्श मॉनीटरिंग निगरानी और दोष निदान योजना को एक मोटर से न्यूनतम माप लेना चाहिए और विश्लेषण द्वारा संकेतों की सुविधा को निकालना चाहिए। एक स्थिति को कम से कम समय में प्रारंभिक गलती मोड के स्पष्ट संकेत देने के लिए अनुमान लगाया जा सकता है। स्थिति मॉनीटरिंग के लिए मोटर स्थिति के इनपुट संकेतों और आउटपुट संकेतों के बीच एक मानचित्र बनाना होगा। विकसित प्रोटोटाइप दिखाया गया है और परीक्षण जारी है।

फरीदाबाद : लागत बढ़ी, 80.5 करोड़ रुपये का काम अधर में

जिला प्रशासन के सूत्रों ने बताया कि इस कारण से प्रभावित पीडब्ल्यूडी परियोजनाओं में मिनी सचिवालय भवन, सरकारी गर्ल्स कॉलेज, नगर निगम सभागार (सभी बल्लभगढ़ अनुमंडल में) और शहर में सरकारी नेहरू कॉलेज के नए भवन का निर्माण शामिल है।

मिनी सचिवालय का बजट जहां 10.7 करोड़ रुपये से संशोधित कर 13.5 करोड़ रुपये कर दिया गया है, वहीं फरीदाबाद में गर्ल्स कॉलेज, ऑडिटोरियम और कॉलेज की परियोजना लागत को संशोधित कर 15.5 करोड़ रुपये, 17 करोड़ रुपये और प्रारंभिक लागत 35 करोड़ रुपये कर दिया गया है। सूत्रों ने कहा कि क्रमशः, जो प्रारंभिक आवंटित बजट के 10 प्रतिशत से अधिक है। इसने कार्यों को रोक दिया है और तीन साल तक की अवधि के लिए उनके पूरा होने में देरी की है।

हालांकि मिनी-सचिवालय परिसर की आधारशिला 2019 में रखी गई थी, लेकिन यह पहले ही दिसंबर 2021 की समय सीमा से चूक गई है। सभागार पर काम, जिसे 2018 में 6.75 करोड़ रुपये की लागत से लॉन्च किया गया था और इसे 18 के भीतर पूरा किया जाना था। महीने, पाँच समय सीमा से चूक गए हैं और अभी भी अधूरे पड़े हैं। इसका बजट बढ़कर 17 करोड़ रुपये हो गया है। अनुमंडल में पहले शासकीय कन्या महाविद्यालय के भवन का लोकार्पण वर्ष 2018 में 11.5 करोड़ रुपये की लागत से किया गया था। जुलाई 2020 में बनकर तैयार होने के कारण इसकी लागत भी 15 करोड़ रुपये हो गई है। चौथा बड़ा प्रोजेक्ट जो अटका हुआ है वह है शासकीय नेहरू कॉलेज का नया भवन। अधिकारियों ने कहा कि इसकी लागत 25 करोड़ रुपये से बढ़कर 35 करोड़ रुपये हो गई है।

पीडब्ल्यूडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'बजट वृद्धि के बाद इन कार्यों को जारी रखने की मंजूरी का इंतजार है।'

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