मुख्य मॉडल

छत्तीसगढ़ मॉडल का प्रदर्शन : मुख्य सचिवों के राष्ट्रीय सम्मेलन में दिया गया प्रस्तुतिकरण
मुख्य सचिव अमिताभ जैन ने शिक्षा, कृषि और नगरीय विकास के बारे में दी जानकारी। विकास के छत्तीसगढ़ मॉडल की नीति आयोग मुख्य मॉडल ने भी की है सराहना. पढ़िए पूरी खबर.
रायपुर। देश की राजधानी नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आयोजित मुख्य सचिवों के राष्ट्रीय सम्मेलन में छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव अमिताभ जैन ने छत्तीसगढ़ मुख्य मॉडल मॉडल के बारे में प्रस्तुतिकरण दिया। उन्होंने शिक्षा, कृषि और नगरीय विकास के छत्तीसगढ़ मॉडल के बारे में विस्तार से बताया। उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ मॉडल की नीति आयोग ने भी सराहना की है।
सम्मेलन में छत्तीसगढ़ के कृषि उत्पादन आयुक्त डॉ. कमलप्रीत सिंह, नगरीय प्रशासन मुख्य मॉडल विभाग की सचिव अलरमेल मंगई डी, स्कूल शिक्षा विभाग के सचिव डॉ. एस. भारतीदासन, कलेक्टर दंतेवाड़ा दीपक सोनी, कलेक्टर गरियाबंद प्रभात मलिक भी मुख्य सचिव के साथ थे।
नियोजित विकास की राजनीति
भारत ने शुरूआती दौर में विकास की जो नीति अपनाई उसमें निम्नलिखित में से कौन-सा विचार 'शामिल नहीं था?
निम्नलिखित का मेल करें
A. चरणसिंह | (i) औद्योगिकरण |
B. पी०सी० महालनोबिस | (ii) जोनिंग |
C. बिहार का अकाल | (iii) किसान |
D. वर्गीज कूरियन | (iv) सहकारी डेयरी |
'बॉम्बे प्लान' के बारे में निम्नलिखित में कौन-सा बयान सही नहीं है?
यह भारत के आर्थिक भविष्य का एक ब्लू-प्रिंट था।
इसमें उद्योगों के ऊपर राज्य के स्वामित्व का समर्थन किया गया था।
इसकी रचना कुछ अग्रणी उद्योगपतियों ने की थी।
इसमें नियोजन के विचार का पुरज़ोर समर्थन किया गया था।
इसमें उद्योगों के ऊपर राज्य के स्वामित्व का समर्थन किया गया था।
आज़ादी के समय विकास के सवाल पर प्रमुख मतभेद क्या थे? क्या इन मतभेदों को सुलझा लिया गया?
राष्ट्रवादी नेताओं के मन में यह बात बिलकुल साफ थी कि आज़ाद भारत की सरकार के मुख्य मॉडल आर्थिक सरोकार अंग्रेजी हुकूमत के आर्थिक सरोकारों से एकदम अलग होंगे तथा वे उनको पूरा करने के लिए आर्थिक प्रणालियाँ अपनाएँगे। विकास के मॉडल को लेकर भारतीय नेताओं में मतभेद था कि विकास का कौन-सा मॉडल अपनाया जाए। आजादी के वक्त हिंदुस्तान के सामने विकास के दो मॉडल थे। पहला उदारवादी-पूंजीवादी मॉडल था। यूरोप के अधिकतर हिस्सों और संयुक्त राज्य अमरीका में यही मॉडल अपनाया गया था और वहाँ यह मॉडल कारगर साबित हुआ। इस मॉडल एक मुख्य विशेषता यह होती हैं की आर्थिक क्रियाओं में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता। अत:भारत के कई राजनेता व विचारक भारत को आधुनिक बनाने के लिए विकास के इसी मॉडल को अपनाने के पक्ष में थे।
इसके विपरीत दूसरा मॉडल था: समाजवादी मॉडल, यह मॉडल समाजवादी मार्क्सवादी विचारधारा पर आधारित था। इसमें आर्थिक क्रियाओं में राज्य या सरकार का हस्तक्षेप होता है। इसे सोवियत संघ ने अपनाया था। भारतीय नेतृत्व में इस बात को लेकर मतभेद था कि विकास के किस मॉडल को अपनाया जाए। कुछ लोग पश्चिमी देशों की तरह आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को अपनाने के पक्ष में थे तो कुछ लोग समाजवादी मॉडल को अपनाने के पक्ष में थे। इस प्रकार कुछ लोग औद्योगीकरण को उचित रास्ता मानते थे और इसके माध्यम से भारत को विकास की दशा की और मोड़ना चाहते थे। और कुछ लोगों की नजर में कृषि का विकास करना और ग्रामीण क्षेत्र की गरीबी को दूर करना सर्वाधिक जरूरी था।
भारतीय नेतृत्व में दूसरा मतभेद निजी क्षेत्र तथा सार्वजनिक क्षेत्र की प्राथमिकताओं को लेकर था। कुछ लोग निजी क्षेत्र को तथा कुछ लोग सार्वजनिक क्षेत्र को प्राथमिकता देने मुख्य मॉडल मुख्य मॉडल के पक्ष में थे। इन सभी विचारों को लेकर सरकार असमंजस में थी कि विकास के किस मॉडल मुख्य मॉडल को और किस क्षेत्र को पहले प्राथमिकता दी जाए। अंत में इन मतभेदों को बातचीत के द्वारा हल लिया गया। फलस्वरूप भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था के मॉडल को अपनाया गया है जिसमें निजी व सार्वजनिक क्षेत्र दोनों आते हैं। औद्योगीकरण और कृषि दोनों को समान मुख्य मॉडल रूप से महत्त्व देने का निर्णय लिया गया।
संप्रेषण के विभिन्न मॉडल | sampreshan ke vibhinn model
इस मॉडल के अनुसार संप्रेषण एक गतिशील प्रक्रिया है जिसमें किसी विशेष उद्देश्य या लक्ष्य प्राप्ति से सम्बन्धित क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं की एक श्रृंखला समाहित होती है। अतः संप्रेषण एक द्विमार्गी प्रक्रिया है जहाँ संप्रेषक की संप्रेषण क्षमता व प्राप्तकर्त्ता की ग्राह्य क्षमता दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं। सफल संप्रेषण प्रक्रिया के लिये प्रतिपुष्टि (फीडबैक) की अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है क्योंकि इसके बिना संप्रेषण प्रक्रिया अधूरी रहती है।
गौशालाओं के लिए इकोनामिक मॉडल बनेगा
कमिश्नर डॉ.राज शेखर ने मंडे को भौंती स्थित कानपुर गौशाला सोसाइटी की मुख्य गौशाला का निरीक्षण किया. इस दौरान सीडीओ, एसडीएम सदर, पशुपालन विभाग के डिप्टी डायरेक्टर व चीफ वेटनरी आफिसर समेत गौशाला सोसाइटी के पदाधिकारी मौजूद रहे. निरीक्षण के दौरान कमिश्नर ने गौशाला को संचालित करने के मॉडल को समझा. यहां एक हजार मवेशियों के आश्रय की क्षमता है.
कानपुर (ब्यूरो) 480 मवेशी अभी रह रहे हैं। सोसाइटी में 650 सदस्य हैं। इस गोशाला का महीने का खर्च 15 लाख के करीब है। गौशाला में दूध से ढाई लाख रुपए, गाय के गोबर, मूत्र, दूध से बने लगभग दो दर्जन उत्पादों की बिक्री से ढाई लाख की कमाई, संपत्तियों के किराए से 2 लाख व खाद की बिक्री से 70 हजार रुपए प्रति महीने की कमाई होती मुख्य मॉडल है। यहां 3 गोबर गैस प्लांट भी हैं। निरीक्षण के बाद कमिश्नर ने गौशाला के अनुभव के आधार पर एक हफ्ते में 100 मवेशियों के मैनेजमेंट के लिए एक प्रैक्टिकल इकोनामिक मॉडल तैयार करने के निर्देश मुख्य मॉडल दिए। इसके लिए सीडीओ, नगर आयुक्त और मुख्य पशु चिकित्साधिकारी की कमेटी भी बनाई है। जोकि एक हफ्ते में अपनी रिपोर्ट देगी। इस मॉडल कोजिले व मंडल में गौशालाओं के लिए भी लागू किया जा सकता है।