समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार

विदेशी मुद्रा भंडार और स्वर्ण भंडार में इस बार भी दर्ज हुई बढ़त
राज एक्सप्रेस। देश में जमा होने वाले विदेशी मुद्रा भंडार और स्वर्ण भंडार जमा के आंकड़े समय-समय पर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) जारी करता आया हैं। इस साल इन आंकड़ों में ज्यादातर गिरावट ही देखने को मिलती रही है। इस साल की शुरुआत में 2 बार बढ़त के बाद इसमें लगातार गिरावट बनी हुई है।वहीँ, पिछली बार दर्ज हुई बढ़त के बाद इस बार इसमें फिर से बढ़त दर्ज हुई है। इसके अलावा यदि समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार स्वर्ण भंडार की बात की जाए तो उसका हाल भी कुछ कुछ विदेशी मुद्रा भंडार जैसा ही रहा है। इस बार RBI द्वारा जारी हुए आंकड़ो के मुताबिक, विदेशी समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार मुद्रा भंडार और स्वर्ण भंडार दोनों में बढ़त दर्ज हुई है।
RBI के ताजा आंकड़े :
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा शुक्रवार को जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, भारत का विदेशी समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार मुद्रा भंडार 11 नवंबर 2022 को समाप्त सप्ताह में 14.73 अरब डॅालर बढ़कर 544.72 अरब डॅालर पर पहुंच गया है। जबकि, 4 नवंबर को खत्म हुए सप्ताह में 529.99 अरब डॅालर पर था। उससे पिछले सप्ताह यानी 28 अक्टूबर 2022 को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 6.56 अरब डॉलर बढ़कर 561.08 अरब डॉलर पर पहुंच गया था।विदेशी मुद्रा भंडार में यह बढ़त लगभग लगातार दर्ज हो रही है,गिरावट के बाद पहली बार बढ़त दर्ज हुई। उस समय दर्ज हुई बढ़त से पहले दर्ज हुई गिरावट पर विदेशी मुद्रा भंडार 2 साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया था।
गोल्ड रिजर्व की वैल्यू :
बताते चलें, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, भारत के गोल्ड रिजर्व की वैल्यू में भी पिछले कुछ समय से गिरावट दर्ज की गई थी, वहीं, अब समीक्षाधीन सप्ताह में गोल्ड रिजर्व की वैल्यू समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार 2.64 अरब डॅालर बढ़कर 39.70 अरब डॅालर पर जा पहुंची हैं। रिजर्व बैंक ने बताया कि, आलोच्य सप्ताह के दौरान IMF के पास मौजूद भारत के भंडार में मामूली वृद्धि हुई। बता दें, विदेशी मुद्रा संपत्तियों (FCA) में आई गिरावट के चलते विदेशी मुद्रा भंडार में भी गिरावट दर्ज होती है, लेकिन अब जब FCA में बढ़त दर्ज हुई है तो विदेशी मुद्रा भंडार भी बढ़ा है। RBI के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी मुद्रा परिस्थितियों में बढ़त दर्ज होने की वजह से कुल विदेशी विनिमय भंडार में बढ़त हुई है और विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां, कुल विदेशी मुद्रा भंडार का एक अहम भाग मानी जाती है।
आंकड़ों के अनुसार FCA और SDR :
रिजर्व बैंक (RBI) के साप्ताहिक आंकड़ों पर नजर डालें तो, विदेशीमुद्रा परिसंपत्तियां, कुल विदेशी मुद्रा भंडार का अहम हिस्सा होती हैं। बता दें, विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में बढ़त होने की वजह से मुद्रा भंडार में बढ़त दर्ज की गई है। FCA को डॉलर में दर्शाया जाता है, लेकिन इसमें यूरो, पौंड और येन जैसी अन्य विदेशी मुद्रा सम्पत्ति भी शामिल होती हैं। आंकड़ों के अनुसार, समीक्षाधीन सप्ताह में विदेशी मुद्रा आस्तियां (FCA) 11.8 अरब डॅालर बढ़कर 482.53 अरब डॅालर रह गई है।
क्या है विदेशी मुद्रा भंडार ?
विदेशी मुद्रा भंडार देश के रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां होती हैं, जिनका उपयोग जरूरत पड़ने पर देनदारियों का भुगतान करने में किया जाता है। पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। इसका उपयोग आयात को समर्थन देने के लिए आर्थिक संकट की स्थिति में भी किया जाता है। कई लोगों को विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी का मतलब नहीं पता होगा तो, हम उन्हें बता दें, किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी अच्छी बात होती है, इसमें करंसी के तौर पर ज्यादातर डॉलर होता है, यानि डॉलर के आधार पर ही दुनियाभर में कारोबार किया जाता है। बता दें, इसमें IMF में विदेशी मुद्रा असेट्स, स्वर्ण भंडार और अन्य रिजर्व शामिल होते हैं, जिनमें से विदेशी मुद्रा असेट्स सोने के बाद सबसे बड़ा हिस्सा रखते हैं।
विदेशी मुद्रा भंडार के फायदे :
विदेशी मुद्रा भंडार से एक साल से अधिक के आयात खर्च की पूर्ति आसानी से की जा सकती है।
अच्छा विदेशी मुद्रा आरक्षित रखने वाला देश विदेशी व्यापार का अच्छा हिस्सा आकर्षित करता है।
यदि भारत के पास भुगतान के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा उपलब्ध है तो, सरकार जरूरी सैन्य सामान को तत्काल खरीदने का निर्णय ले सकती है।
विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता को कम करने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार की प्रभाव पूर्ण भूमिका होती है।
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भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती देगा बढ़ता विदेशी मुद्रा भंडार, जानें इसके 5 फायदे
देश का विदेशी मुद्रा भंडार 3.074 अरब डॉलर बढ़कर 608.081 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। इसके साथ ही भारत ने रूस को पीछे छोड़ते हुए विदेशी मुद्रा रखने वाले दुनिया के देशों में चौथे स्थान पर.
देश का विदेशी मुद्रा भंडार 3.074 अरब डॉलर बढ़कर 608.081 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। इसके साथ ही भारत ने रूस को पीछे छोड़ते हुए विदेशी मुद्रा रखने वाले दुनिया के देशों में चौथे स्थान पर पहुंच गया है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और निजी निवेशकों द्वारा शेयर बाजार में रिकॉर्ड निवेश से विदेशी मुद्रा भंडार में उछाल आया है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यह सुस्त पड़ी भारतीय इकोनॉमी के लिए राहत की खबर है। आइए जानते हैं मुद्रा भंडार बढ़ने के मायने।
विदेशी मुद्रा भंडार के पांच बड़े फायदे
1. विदेशी मुद्रा भंडार का बढ़ना किसी देश की अर्थव्यवस्था में मजबूती का संकेते होता है। साल 1991 में देश को सिर्फ 40 करोड़ डॉलर जुटाने के लिए 47 टन सोना इंग्लैंड के पास गिरवी रखना पड़ा था। लेकिन मौजूदा स्तर पर, भारत के पास एक वर्ष से अधिक के आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त मुद्रा भंडार है। यानी इससे एक साल से अधिक के आयात खर्च का बोझ उठाया जा सकता है।
2. बड़ा विदेशी मुद्रा रखने वाला देश विदेशी व्यापार को आकर्षित करता है और व्यापारिक साझेदारों का विश्वास अर्जित करता है। इससे वैश्विक निवेशक देश में और अधिक निवेश के लिए प्रोत्साहित हो सकते हैं।
3. सरकार जरूरी सैन्य सामान की तत्काल खरीदी का निर्णय भी ले सकती है क्योंकि भुगतान के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा उपलब्ध है। इसके साथ कच्चा तेल, दूसरी जरूरी सामान की आयत में बढ़ा नहीं आती है।
4. अतिरिक्त विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता को कम करने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार प्रभावी भूमिका निभा सकता है।
5. विदेशी मुद्रा बढ़ने से आम लोगों को भी फायदा मिलता है। इससे सरकारी योजनाओं में खर्च करने के लिए पैसा मिलता है।
विदेशी मुद्रा भंडार का घटक
देशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा घटक विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति, बॉन्ड, बैंक जमा, सोना और वित्तीय एसेट होते हैं। भारत के मुद्रा भंडार में विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति 563.46 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। इसक साथ ही स्वर्ण भंडार बढ़कर 38.10 अरब डॉलर का हो गया। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के पास आरक्षित निधि 5.01 अरब डॉलर पर पहुंच गई है। इसके चलिते विदेशी मुद्रा भंडार रिकॉर्ड 608.081 अरब डॉलर पर पहुंच गया है।
इस तरह बढ़ा मुद्रा भंडार
साल 1991 में भारत का कुल विदेशी मुद्रा भंडार 1.2 अरब डॉलर था जो बीते 20 साल में बढ़कर 604.80 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। भारत का मौजूदा विदेशी मुद्रा भंडार देश के 15 महीने के आयात बिल को संभालने का मद्दा रखता है। लगातार बढ़ता विदेशी मुद्रा भंडार देश की मजबूत होती स्थिति का इशारा कर रहा है। वित्तीय विशेषज्ञों का कहना है कि आगे भी यह रफ्तार बने रहने की उम्मीद है।
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Rupee: डॉलर के मुकाबले लगातार कमज़ोर हो रहा है रुपया, आपके लिए क्या समझना है जरूरी?
Rupee Dollar: $1 की कीमत ₹80 के बराबर हो चुकी है. यह भारतीय इतिहास का सबसे सबसे न्यूनतम स्तर है. पिछली सरकार (यूपीए 2004- 2014) की तुलना में देखें तो डॉलर के मुकाबले रुपए में तकरीबन ₹20 की गिरावट आई है. 2014 की शुरुआत में एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा का मूल्य ₹61.8 हुआ करता था.समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार
वर्तमान समय में $1 की कीमत ₹80 के बराबर हो चुकी है. यह भारतीय इतिहास का सबसे सबसे न्यूनतम स्तर है. पिछली सरकार (यूपीए 2004- 2014) की तुलना में देखें तो डॉलर के मुकाबले रुपए में तकरीबन ₹20 की गिरावट आई है. 2014 की शुरुआत में एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा का मूल्य ₹61.8 हुआ करता था.
कमज़ोर होते रुपए के आर्थिक नुकसान क्या हैं?
भारतीय अर्थव्यवस्था एक आयात आधारित अर्थव्यवस्था है. हमेशा से ही निर्यात के मुकाबले आयात का हिस्सा ज्यादा रहा है. इसलिए गिरते रुपए का पहला नुकसान तो यह होगा कि भारत के इंपोर्ट बिल पर पहले की तुलना में अत्यधिक भार बढ़ेगा, जिसके परिणामस्वरूप विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आयेगी. पिछले 8 वर्षों में भारत के लिए अप्रत्याशित विदेशी मुद्रा भंडार एक बड़ी कामयाबी रही है. लेकिन पहले ही निवेशकों के जरिए भारत से पैसे बाहर निकालने की वजह से विदेशी मुद्रा भंडार पर नकरात्मक असर पड़ रहा था और अब कमज़ोर होते रुपए के रुप में दोहरी मार पड़ेगी.
विदेशी मुद्रा भंडार घटेगा
पिछले वर्ष 3 सितंबर 2021 को पहली बार विदेशी मुद्रा भंडार 642.5 अरब डॉलर के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया था. लेकिन वर्तमान समय में भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों से पता चलता है कि 1 जुलाई को विदेशी मुद्रा भंडार घटकर 588.314 अरब डॉलर रह गया था. डॉलर के मुकाबले रूपये में आ रही तेज गिरावट की वजह से देश का व्यापार घाटा भी बढ़ रहा है. बीते जून में देश का व्यापार घाटा 26.18 अरब डॉलर रहा था, जबकि जून 2021 में यह महज 9.60 अरब डॉलर ही था.
महंगाई की मार
कमजोर होते रुपए की एक मार महंगाई के रुप में भी दिखाई पड़ती है. भारत के कुल विदेश व्यापार को देखें तो पता चलता है कि हम सबसे अधिक आयात पेट्रोलियम उत्पादों का करते हैं. इसलिए सबसे ज्यादा असर भी इसी पर दिखाई पड़ने वाला है. रुपए की कमज़ोरी की वजह से महंगे आयात भुगतान की स्थिति में कंपनियां पहले से महंगे डीजल और पेट्रोल के दामों में एक बार फ़िर बढ़ोत्तरी करेगी. जिसका असर सीधे तौर पर आम जनता समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार पर दिखाई पड़ेगा. इसके साथ ही भारत खाद्य तेल और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का भी आयात बड़े स्तर पर करता है. इसलिए यहां भी दामों में उछाल देखी जाएगी. ऐसी स्तिथि में पहले से महंगाई की मर झेल रही भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए और भी बुरे दिन आ जायेंगे.
रुपए में गिरावट से क्या निर्यात में फायदा मिलेगा?
एक आर्थिक आकलन यह जरूर कहता है कि निर्यात बढ़ाने के लिए मुद्रा के मूल्य में गिरावट फायदेमंद हो सकती है, लेकिन भारत के दृष्टिकोण से देखें तो यह आकलन समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार बहुत सटीक नज़र नहीं आता है. उदाहरण के लिए जून महीने में भले ही देश का एक्सपोर्ट 23.5% तक बढ़ा हो लेकिन इसके मुकाबले में आयात दोगुने दर से भी अधिक का रहा है. जून 2022 में देश का आयात सालाना आधार पर 57.55% बढ़ा है. अब ऐसी स्थिति में निष्कर्ष यही निकलता है कि रुपए में गिरावट के बावजूद भी भारत का व्यापार घाटा (India's Trade Deficit) बढ़ा है.
रुपए की गिरावट के क्या कारण हैं?
इस प्रश्न का उत्तर जानने से पहले हमें यह समझना होगी कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में सिर्फ रुपया ही एक मात्र करेंसी नहीं है जो डॉलर के मुकाबले कमजोर हुई है. बल्कि दुनिया के संपन्न आर्थिक देशों की करेंसी भी कमज़ोर हुई है. इन सभी के पीछे के कारण भी लगभग एक से ही दिखाई पड़ते हैं. सबसे पहला कारण तो यूक्रेन-रूस के बीच जारी युद्ध को माना जा सकता है. इन दो देशों की लड़ाई ने वैश्वीक अस्थिरता पैदा की है, जिसकी वज़ह से आर्थिक नुकसान देखने को मिल रहे हैं. कोविड-19 की वजह से जारी आर्थिक सुस्ती भी इसका एक मुख्य कारण है. लेकिन भारतीय रुपए में गिरावट का एक अतिरिक्त कारण निवेशकों का भारत से मोहभंग होना भी है.
कुछ दिनों में संभलेगी स्थिति
भारत के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार प्रो० के वी सुब्रह्मण्यम की मानें तो रुपए में आई गिरावट अल्पकालिक है. उनके अनुसार जब वैश्विक अस्थिरता बढ़ती है तो 'फ्लाइट टू सेफ्टी' जैसी आर्थिक घटना की वजह से करेंसी में गिरावट आती है. भारतीय रुपए के लिए भी यही कारण दिखाई पड़ता है. बकौल सुब्रह्मण्यम भारतीय रुपए में आई गिरावट बहुत से देशों के मुकाबले अभी कम है. यूक्रेन और रूस के बीच जंग की शुरुआत से आकलन करें तो यूरो करेंसी डॉलर के मुकाबले 11.2% समाचार के लिए पूर्व स्थिति विदेशी मुद्रा व्यापार कमज़ोर हुई है तो वहीं जापानी येन 18.8% कमज़ोर हुआ है. जबकि इसकी तुलना में भारतीय करेंसी की गिरावट 5.3% ही है. इसलिए आने वाले समय में रुपया एक बार फिर बेहतर स्थिति में आ जायेगा.
डॉलर की मजबूती की वजह
केंद्र सरकार भी स्तिथियों को भांपते हुए आयात भुगतान के अन्य माध्यमों पर काम कर रही है. चूंकि भारत विदेशी मुद्रा के रुप में डॉलर का भुगतान अधिकांश आयात के लिए करता है, इसलिए भारत के ऊपर डॉलर मुद्रा का एक विशेष दबाव हमेशा से बना रहता है. हाल की परिस्थितियों में भारत ने बहुत से देशों के साथ भारतीय रुपए में ही व्यापार करने की संधि की है, जिसमें प्रमुख रुप से रूस और ईरान जैसे देश शामिल हैं. इन देशों से एक फायदा यह है कि पेट्रोलियम उत्पादों के आयात में सुविधा मिल जाएगी. वैश्विक अर्थव्यवस्था का समीकरण भी अब यही कहता है कि दुनिया को डॉलर के अलावा अन्य करेंसी को भी व्यापार के लिए अधिक से अधिक इस्तेमाल करने की जरूरत है. डॉलर के एकाधिकार को चुनौती देना ही विश्व व्यापार में अन्य देशों को स्थापित करेगा.
(लेखक बीएचयू के फाइनेंस एंड इकोनॉमिक्स थिंक काउंसिल के संस्थापक एवं अध्यक्ष हैं. यहां व्यक्त विचार निजी हैं.)