अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें

आर्थिक असमानता को करना होगा दूर
हालांकि यह तथ्य कोई नया नहीं है और न ही चौंकाता है. इससे पहले भी समय-समय पर अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट में यह तथ्य उजागर होता रहा है कि दुनियाभर में अमीर और गरीब के बीच भारी असमानता है. कोरोना ने इसे और बढ़ा दिया है. वर्ल्ड इनइक्वलिटी रिपोर्ट हर साल अपनी रिपोर्ट जारी करती है, जिसमें नीति निर्धारकों को जानकारी दी जाती है कि उनके देश के विभिन्न तबकों की माली हालत कैसी है?
हाल में जारी उसकी रिपोर्ट में कहा गया है अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें कि देश व दुनिया के लोगों के बीच असमानता की खाई और चौड़ी हो गयी है. यह किसी भी देश व समाज के लिए अच्छी खबर नहीं है. यह तथ्य सर्वविदित है कि आर्थिक असमानता के कारण समाज में असंतोष पनपता है. रिपोर्ट में बताया गया अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें है कि दुनिया के 10 प्रतिशत लोगों के पास 76 प्रतिशत धन संपदा है. दुनिया के सबसे ज्यादा 34 प्रतिशत अमीर एशिया में रहते हैं. यूरोप में 21 फीसदी और अमेरिका में 18 प्रतिशत अमीर रहते हैं.
सबसे कम धनी एक प्रतिशत सब-सहारन अफ्रीका में रहते हैं. भारत भी इससे अछूता नहीं है. रिपोर्ट के अनुसार भारत में भारी असमानता है और गरीब व अमीर के बीच खाई चौड़ी हुई है. आप अपने आसपास नजर दौड़ाएं, तो आपको यह फर्क स्पष्ट नजर आयेगा. वर्ल्ड इनइक्वलिटी रिपोर्ट के अनुसार पिछले 40 वर्षों में देश में चंद लोग तो अमीर होते चले गये, लेकिन अर्थव्यवस्था उस हिसाब से नहीं मजबूत हुई है. रिपोर्ट के अनुसार, देश में 10 फीसदी अमीरों के पास देश की कुल संपत्ति का 57 फीसदी है.
देश की कुल कमाई में मध्य वर्ग का हिस्सा 29.5 प्रतिशत है. वहीं 10 फीसदी अमीर लोगों के हाथों में 33 प्रतिशत दौलत है. कमाई में सबसे अमीर एक प्रतिशत लोगों की 65 प्रतिशत हिस्सेदारी है. देश के युवाओं की सालाना कमाई औसतन 2 लाख 4 हजार 200 रुपये है, जबकि 50 फीसदी लोगों की औसत कमाई महज 53 हजार 610 रुपये है. भारत सबसे युवाओं का देश माना जा रहा है, लेकिन देश के 50 फीसदी युवाओं की मासिक आय पांच हजार रुपये से भी कम है.
साफ नजर आ रहा है कि उदारीकरण व आर्थिक सुधार के फैसलों के बाद लोगों की आय में बढ़ोत्तरी तो हुई, लेकिन इसके साथ ही असमानता भी बढ़ती चली गयी. यह अफसोस की बात है कि आजादी के 75 साल बाद भी समाज में भारी आर्थिक असमानताएं हैं. बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं हों अथवा शिक्षा के अवसर, अब भी ये अमीरों के पक्ष में हैं.
उदारवादी नीतियों का सबसे ज्यादा फायदा देश के एक फीसदी अमीर लोगों को हुआ है, जबकि गरीब व मध्य वर्ग की दशा में सुधार बेहद धीमा रहा है. यह वाकई चिंताजनक स्थिति है कि भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आर्थिक असमानता वाला देश बन गया है. पुराना अनुभव रहा है कि ऐसी असमानता समाज में असंतोष को जन्म देती है.
यह सही है कि आर्थिक असमानता की स्थिति केवल भारत में ही नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया में है. जब देश में आर्थिक सुधारों का दौर आया, तो कहा गया था कि इसका लाभ गरीब तबके को भी मिलेगा, लेकिन धीरे-धीरे यह स्पष्ट होता जा रहा है कि आर्थिक सुधारों की मलाई अमीर तबके के हाथ लगी है. मध्य वर्ग और गरीब तबके तक इसका अपेक्षित लाभ नहीं पहुंचा है. कुछ समय पहले मशहूर पत्रिका फोर्ब्स ने दुनिया के अरबपतियों की सूची जारी की थी.
उस दौरान कोरोना का दूसरा दौर चरम पर था और पूरी दुनिया उससे जूझ रही थी. लोगों की नौकरियां चली गयी थीं और छोटे काम धंधे ठप पड़ गये थे, लेकिन इस दौर में दुनियाभर में अरबपतियों की संख्या बढ़ रही थी. फोर्ब्स के संपादक ए डोलान का कहना था कि महामारी के बावजूद दुनिया के सबसे रईस लोगों के लिए यह साल एक रिकॉर्ड की तरह रहा है.
इस दौर में उनकी दौलत में पांच खरब डॉलर का इजाफा हुआ है और नये अरबपतियों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गयी है. फोर्ब्स की दुनियाभर के अरबपतियों की सूची में 2755 लोग शामिल किये गये हैं, जो पिछले साल की संख्या से 600 अधिक हैं. इनमें से 86 फीसदी लोगों ने कोरोना महामारी के दौर में अपनी आर्थिक हैसियत को और बेहतर किया है. दुनिया में सबसे ज्यादा 724 अरबपति अमेरिका में हैं, जबकि पिछले साल अमेरिका में अरबपतियों की संख्या 614 थी.
एक साल में इस सूची में 110 नये लोग जुड़ गये हैं. दूसरे स्थान पर चीन है, जहां अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें अरबपतियों की संख्या अब 698 हो गयी है, जो पिछले साल 456 थी. भारत भी कोई पीछे नहीं है और यह तीसरा सबसे अधिक अरबपतियों वाला देश है.
इस साल इनकी संख्या 140 हो गयी है, जबकि पिछले साल भारत में अरबपतियों की संख्या 102 थी. दूसरी ओर दुनिया में गरीबों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हुई है. विश्व बैंक का अनुमान है कि कोरोना महामारी के दौरान दुनियाभर में 11.5 करोड़ लोग अत्यंत निर्धन की श्रेणी में पहुंच गये है. ये आंकड़े भी इस बात को रेखांकित करते हैं कि दुनियाभर में आय व संपत्ति का वितरण पूरी तरह से असंतुलित है.
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने कुछ समय पहले अखिल भारतीय ऋण और निवेश सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी की थी. उसके अनुसार देश के 10 प्रतिशत शहरी परिवारों के पास औसतन 1.5 करोड़ रुपये की अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें संपत्ति है, जबकि निचले वर्ग के परिवारों के पास औसतन केवल 2,000 रुपये की संपत्ति है. सर्वे के अनुसार ग्रामीण इलाकों में स्थिति शहरों की तुलना में थोड़ी बेहतर है. ग्रामीण इलाकों में शीर्ष 10 फीसदी परिवारों के पास औसतन 81.17 लाख रुपये की संपत्ति है, जबकि कमजोर तबके के पास औसतन केवल 41 हजार रुपये की संपत्ति है.
यह सर्वे जनवरी-दिसंबर, 2019 के बीच किया गया था. इस ऋण और निवेश सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य परिवारों की संपत्ति और देनदारियों को लेकर बुनियादी तथ्य जुटाना था. एनएसओ सर्वे अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें से जो चौंकाने वाली बात सामने आयी कि खेती-बाड़ी करने वाले आधे से अधिक परिवार कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं. सर्वे के अनुसार 2019 में 50 फीसदी से अधिक किसान परिवारों पर कर्ज था.
उन पर प्रति परिवार औसतन 74,121 रुपये कर्ज था. सर्वे में जानकारी दी गयी है कि कर्ज में से केवल 69.6 फीसदी बैंक, सहकारी समितियों और सरकारी एजेंसियों जैसे संस्थागत स्रोतों से लिया गया था, जबकि 20.5 फीसदी कर्ज सूदखोरों से लिया गया था. इसके अनुसार कुल कर्ज में से 57.5 फीसदी ऋण कृषि उद्देश्य से लिये गये थे. सर्वे के अनुसार फसल के दौरान प्रति कृषि परिवार की औसत मासिक आय 10,218 रुपये थी. इसमें से मजदूरी से प्राप्त प्रति परिवार औसत आय 4,063 रुपये, फसल उत्पादन से 3,798 रुपये, पशुपालन से 1,582 रुपये, गैर-कृषि व्यवसाय से 641 रुपये और भूमि पट्टे से 134 रुपये की आय हुई थी.
सर्वे से पता चलता है कि 83.5 फीसदी ग्रामीण परिवार के पास एक हेक्टेयर से कम जमीन है, जबकि केवल 0.2 फीसदी के पास 10 हेक्टेयर से अधिक जमीन थी. ये सारे तथ्य इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि देश के नीति निर्धारकों को इस विषय में गंभीरता से विचार करना होगा कि अमीर और गरीबी की बढ़ती खाई को कैसे कम किया जा सकता है. आर्थिक विषमता में बढ़ोतरी देश अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें व समाज के हित में नहीं है.
अगहन कृष्ण पक्ष अष्टमी, बुधवार, 16 नवम्बर 2022 का दिन आपके लिए कैसा रहेगा
मेष राशि :- आज का दिन मिला-जुला रहेगा. कठिन परिश्रम से कार्यों में सफलता मिलेगी, जिससे मन में उत्साह रहेगा, लेकिन कार्यक्षेत्र में थोड़ा सरल व समझौतावादी बने रहने का प्रयास करें. सोच समझकर कोई निर्णय लें, तो ही बेहतर होगा. जल्दबाजी में उठाए गए कदम नुकसान पहुंचा सकते हैं. कोई भी नया काम शुरू न करें. परिवार के साथ धर्म ध्यान में समय बिताएं. मित्रों से मुलाकात अच्छी रहेगी.
वृषभ राशि :- आज का दिन सामान्य रहेगा. कार्यक्षेत्र में कठिन परिश्रम के बावजूद सफलता कम मिलेगी. क्रोध पर नियंत्रण एवं वाणी पर संयम रखें, अन्यथा किसी विवाद में फंस सकते हैं. परिवारिक समस्याएं परेशान करेंगी. ऐसी स्थिति में पूर्ण विवेक से काम लेना होगा. परिजनों का पूरा सहयोग मिलेगा, लेकिन किसी बात को लेकर बहस होने के आसार रहेंगे, जिससे मानकि परेशानी बढ़ेगी. सेहत अच्छी रहेगी.
मिथुन राशि :- आज का दिन अच्छा रहेगा. कार्यक्षेत्र में आर्थिक लाभ के योग रहेंगे. किसी महत्वपूर्ण कार्य की सार्थकता के लिए प्रयत्नशील होगा. कठिन परिश्म से रचनात्मक योजनाओं को सार्थक करने में सफल रहेंगे. कोई नया काम शुरू करने के लिए दिन अच्छा है. पुराना अटका धन भी मिल सकता है. परिवार के साथ समय बिताएं, मानसिक सुख और शांति मिलेगी. खान-पान का ध्यान रखना होगा.
कर्क राशि :- आज का दिन मिला-जुला रहेगा. कारोबार में अड़चनें आएंगी और कार्यों में सफलता कम मिलेगी. संतान संबंधी दायित्वों के प्रति मन चिंतित होगा. भविष्य के प्रति नकारात्मक विचार उत्साह में कमी ला सकते हैं. कोई नया काम शुरू करना चाहते हैं या निवेश की योजना बना रहे हैं, तो उसे टालें, अन्यथा नुकसान हो सकता है. धर्म ध्यान और परिवार के साथ समय बिताएं, सेहत का ख्याल रखें.
सिंह राशि :- आज का दिन सामान्य रहेगा. किसी कार्य को सिद्ध करने के लिए आज ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी. कारोबार में आर्थिक लाभ तो रहेगा, लेकिन अनावश्यक खर्च अधिक होने से आर्थिक स्थिति सामान्य रहेगी. मन में किसी प्रकार की शंका न पालें, गलतियों को स्वीकार कर सगे-संबंधियों के बीच अपने रिश्तों को सुधारें. किसी पुराने मित्र या रिश्तेदार से मुलाकात होने पर खुशी मिलेगी.
कन्या राशि :- आज का दिन मिला-जुला रहेगा. कारोबार सामान्य रहेगा. अनावश्यक खर्च बढऩे से आर्थिक स्थिति कमजोर हो सकती है. नकारात्मक विचारों को त्याग अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग करें. भविष्य को लेकर योजनाएं बना सकते हैं. नये काम की शुरूआत कर रहे हैं, तो दूसरी को सलाह न लें. अपनों से धोखा मिल सकता है. रोजगार और शिक्षा के क्षेत्र में कोई शुभ समाचार मिल सकता है.
तुला राशि :- आज का दिन शुभ फलदायी रहेगा. कार्यक्षेत्र में आर्थिक लाभ मिलने के योग रहेंगे. परिश्रम से सभी कार्यों में सफलता मिलेगी और सृजनात्मक विचारों का भरपूर लाभ उठाएंगे. स्वाभिमानी स्वभाव लोकप्रियता दिलाने में सहायक होगा. बेरोजगार को रोजगार के अवसर और नौकरी में तरक्की मिलने के आसार रहेंगे. शारीरिक और मानसिक रूप से थकान का अनुभव करेंगे. सेहत का ख्याल रखें.
वृश्चिक राशि :- आज का दिन शुभ रहेगा. कारोबार विस्तार की योजना बना सकते हैं. कार्यक्षेत्र में कठिन परिश्रम से अपने काम को नई पहचान दिलाएंगे. व्यवसाय में नये निवेश का अवसर मिलेगा. करीबियों से पुराने गिले-शिकवे दूर होंगे. पुरानी बातें भूलकर वर्तमान के साथ समझौता करें, छोटी-छोटी बातों को लेकर परिवार में तनाव की स्थिति पैदा न होने दें. परिवार के साथ समय बिताएंगे. सेहत का ख्याल रखें.
धनु राशि :- आज का दिन अच्छा रहेगा. कारोबार में आकस्मिक लाभ और नौकरी में तरक्की के योग रहेंगे. हालांकि, कुछ अड़चनें आ सकती हैं, लेकिन कठिन परिश्रम से कार्यों में सफलता मिलेगी. परिस्थितियों के हिसाब से अपने आप को ढालने की कोशिश करें. परिवार के साथ समय बिताएंगे तो संबंध भी मधुर होंगे. पुराने मित्रों से मुलाकात हो सकती है. यात्रा को टालें. सेहत अच्छी रहेगी.
मकर राशि :- आज का दिन मिला-जुला रहेगा. व्यापार-धंधा अच्छा चलेगा. कार्यक्षेत्र में कुछ नई योजनाओं को सार्थक करेंगे. व्यक्तिगत संबंध परिवार में विवाद का कारण बन सकते हैं. कोर्ट में कोई पुराना लंबित मामला चल रहा है तो वह सुलझ सकता है. अनावश्यक खर्चे पर नियंत्रण रखना होगा. परिवार में कलह हो सकती है. खान-पान का ध्यान रखें और क्रोध पर नियंत्रण रखें.
कुम्भ राशि :- आज का दिन सामान्य रहेगा. शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में कोई अच्छी खबर मिल सकती है. बेरोजगारों को रोजगार के अवसर मिलने के आसार हैं. विद्यार्थियों के लिए समय अच्छा रहेगा और उन्हें परिश्रम के सकारात्मक परिणाम मिलेंगे. धार्मिक कार्यों में भाग ले सकते हैं. कारोबार मध्यम रहेगा. परिवार का पूरा सहयोग मिलेगा और घर में माहौल अच्छा रहेगा. सेहत को लेकर सतर्क रहें.
मीन राशि :- आज का दिन अच्छा रहेगा. कार्यक्षेत्र में कुछ परेशानियां आ सकती हैं, लेकिन अपनी बुद्धिमत्ता से समस्याओं का समाधान करने में सक्षम होंगे और उत्साह पूर्वक नई योजनाओं को क्रियान्वित कर सकेंगे. रोजगार और व्यवसाय के क्षेत्र में लाभ मिलेगा. कारोबार में नए निवेश के अवसर खुलेंगे. नौकरी में स्थान परिवर्तन हो सकता है. दाम्पत्य जीवन खुशहाल रहेगा. सेहत का ध्यान रखें.
चुनाव आयोग के ताजा कदम से ‘रेवड़ी संस्कृति’ पर बहस तेज
आयोग ने अपने प्रस्ताव पर जोर दिया है कि राजनीतिक दलों के घोषणापत्र में वादों के वित्तीय प्रभावों का खुलासा करने का विषय मुफ्त उपहारों की बहस से जुड़ा नहीं है, लेकिन इसका उद्देश्य मौजूदा दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन में सुधार करना है.
राकेश दीक्षित | Edited By: अम्बर बाजपेयी
Updated on: Oct 07, 2022 | 11:00 AM
जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल जुलाई में “रेवड़ी संस्कृति” या कथित मुफ्त उपहारों को देश के विकास के लिए खतरनाक बताया, तब से मीडिया, राजनीतिक दल, सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय बहस का विषय बना दिया है.
सत्ताधारी बीजेपी मुफ्त में मिलने वाली सुविधाओं को खत्म करने की मांग में प्रधानमंत्री के पीछे मजबूती से खड़ी है. लेकिन विपक्ष इसे लोकतांत्रिक राजनीति के एक अविभाज्य अंग के रूप में देखता है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री की चिंता के साथ सुर में सुर मिलाया है लेकिन इस संबंध में दायर की गई एक याचिका पर उसके फैसले की अभी प्रतीक्षा है. दूसरी ओर, चुनाव आयोग का कहना है कि उसके पास ऐसे अधिकार नहीं हैं जिनसे वह राजनीतिक दलों को मुफ्त उपहारों का वादा करने से रोक सके.
मुफ्त उपहारों की परिभाषा स्पष्ट नहीं
ऐसे में जब “रेवड़ी” पर बहस छिड़ गई है, अभी भी इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं है कि मुफ्त उपहार की श्रेणी में किन्हें शामिल किया जाए. और किस तरह से राजनीतिक दलों को अपने चुनावी घोषणापत्र में उन्हें शामिल करने से मना किया जा सकता है.हालांकि, दो घटनाक्रम बताते हैं कि प्रधानमंत्री की इच्छा को पूरी करने के लिए चुनाव आयोग और मोदी सरकार, कानूनी रूप से इस दिशा में आगे बढ़ रही है.
चुनाव आयोग ने मंगलवार को मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य पार्टियों के प्रमुखों को पत्र लिखकर इस प्रस्ताव पर उनकी राय मांगी कि पार्टियां चुनाव के दौरान किए गए वादों की कीमत और उनके प्रभाव का ब्यौरा प्रदान करें.
आरपीए में संशोधन विचाराधीन
इसके एक दिन बाद केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि सरकार इस संबंध में पोल वॉचडॉग (चुनाव आयोग) के साथ चर्चा कर रही है और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (आरपीए) में संशोधन के माध्यम से “प्रमुख चुनावी सुधारों” को विधायी रूप देने पर विचार कर रही है.हालांकि, रिजिजू ने यह नहीं बताया कि क्या आरपीए में प्रस्तावित संशोधन भारत के चुनाव आयोग को इतनी शक्ति प्रदान करेगा कि वह राजनीतिक दलों के मुफ्त उपहारों के वादों पर अंकुश लगा पाए? लेकिन उनका यह कहना कि “बदलती स्थिति” में कुछ चुनावी कानूनों में बदलाव समय की मांग है, यह दर्शाता है कि “रेवड़ी संस्कृति” से निपटना सरकार के चुनाव सुधार के एजेंडे में शामिल है.
केन्द्रीय मंत्री की बातों से यह उभर कर सामने आता है कि सरकार और चुनाव आयोग चुनावी प्रक्रिया में व्यापक बदलाव लाने और इन परिवर्तनों को आवश्यक विधायी स्वरूप देने के लिए आरपीए में संशोधन का काम कर रहे हैं.
अव्यावहारिक अपेक्षा
चुनाव आयोग का मंगलवार का फैसला इसी दिशा में एक कदम है. आयोग एक परामर्श पत्र अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें जारी करने की योजना बना रहा है, जिसमें प्रस्ताव दिया गया है कि राजनीतिक दल विधानसभा या लोकसभा चुनावों से पहले किए गए वादों की लागत का विवरण दें और अपनी आर्थिक स्थिति को भी देखें, जिससे मतदाताओं को यह पता चल सके कि मुफ्त उपहारों की घोषणा की कैसे फंडिंग की जाएगी.
लेकिन बुनियादी सवाल यह है कि मुफ्त उपहार क्या होंगे और वैध चुनावी वादे क्या होंगे? कई विपक्षी दलों ने पहले ही मुफ्त उपहारों पर बहस के मूल आधार पर सवाल उठाया है. उनका कहना है कि राजनीतिक दलों का यह वैध अधिकार है कि वे विभिन्न वादों के जरिए मतदाताओं से अपील करें. और कोई भी संवैधानिक संस्था ऐसा नहीं करने से उन्हें नहीं रोक सकती, इस पर फैसले करने का अधिकार केवल मतदाताओं को ही है. राजनीतिक दलों से अपने वित्तीय वादों का अनुमान तैयार करने के लिए कहने से सार्थक जानकारी मिलने की संभावना नहीं है. वैसे भी, प्रचार मोड में पार्टियों के पास यथार्थवादी जानकारी नहीं होती. इसलिए, राजनीतिक दलों से चुनावी वादों के बारे में अधिक जानकारी का खुलासा करने के लिए कहना एक सार्थक अभ्यास होने की संभावना नहीं है.
मतदाता को है जानकारी हासिल करने का अधिकार
आयोग का विचार है कि जहां राजनीतिक दलों को वादे करने से नहीं रोका जा सकता है, वहीं मतदाता को भी जानकारी हासिल करने का अधिकार है ताकि वह सही विकल्प चुन सकें. आयोग को यह भी पता है कि कोई भी विधायी संस्था मुफ्त या कल्याणकारी योजनाओं को परिभाषित नहीं कर सकती.
आयोग ने अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट को दिए एक हलफनामे में कहा था कि वह राजनीतिक दलों के नीतिगत फैसलों पर नियंत्रण नहीं कर सकता और ऐसा करना उसकी शक्तियों का अतिक्रमण होगा.
प्रस्ताव रेवड़ी कल्चर की बहस से जुड़ा नहीं है
आयोग ने अपने प्रस्ताव पर जोर दिया है कि राजनीतिक दलों के घोषणापत्र में वादों के वित्तीय प्रभावों का खुलासा करने का विषय मुफ्त उपहारों की बहस से जुड़ा नहीं है, लेकिन इसका उद्देश्य मौजूदा दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन में सुधार करना है.हालांकि, चुनावी वादों को नियंत्रित करने वाला कोई मौजूदा कानून नहीं है, लेकिन सुब्रमण्यम बालाजी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्देश दिए जाने पर 2015 में चुनाव आयोग ने घोषणापत्र पर दिशानिर्देशों को आदर्श आचार संहिता में शामिल किया था. इन दिशानिर्देशों के तहत, पार्टियां को अपने वादों के औचित्य बताने और वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने के तरीकों और साधनों का ब्यौरा देने की आवश्यकता होती है.
चुनाव आयोग के प्रोफार्मा में राज्य या केंद्र सरकार की आय और व्यय का विवरण भी शामिल होगा जिसे मुख्य सचिव या केंद्रीय वित्त सचिव द्वारा भरा जाएगा.पार्टियों को पत्र लिखने का निर्णय आयोग की पिछले सप्ताह एक बैठक में लिया गया था. इस बैठक में मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार और चुनाव आयुक्त अनूप चंद्र पांडे शामिल थे. चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों द्वारा अपना जवाब देने के लिए 19 अक्टूबर की समय सीमा निर्धारित की है. हालांकि कई पार्टियों ने इस पर अपनी नाराजगी जाहिर की है.
स्वैच्छिक प्रकृति
पार्टियों के साथ विचार-विमर्श खत्म होने के बाद चुनाव आयोग नए दिशानिर्देश जारी करेगा. इसमें कुछ समय लग सकता है क्योंकि पार्टियां अक्सर अपनी राय देने के लिए चुनाव आयोग से और समय मांगती हैं.
इन प्रारूपों को आदर्श आचार संहिता में शामिल किया जाएगा, जो स्वैच्छिक प्रकृति का है. हालांकि, चुनावी वादों के लिए राजनीतिक दलों को वित्तीय रूप अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें से जवाबदेह बनाने के लिए चुनाव आयोग के इस कदम से वांछित परिणाम नहीं मिल सकते और चुनावी वादों का मुद्दा बहस का विषय बना रहेगा,लेकिन चुनाव आयोग या अदालतें रेवड़ी कल्चर पर लगाम लगाने के लिए सही संस्थाएं नहीं हैं. हालांकि, राजनीतिक दल चाहें तो यह काम कर सकते हैं.
क्या पुरानी पेंशन स्कीम सरकारी खजाने पर बोझ है? जानिए यह क्या और इस पर विवाद क्यों है
कांग्रेस ने राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इस योजना को लागू करने के बाद अब गुजरात और हिमाचल प्रदेश में भी इसे लागू करने का वादा किया है. वहीं, आम आदमी पार्टी ने पंजाब और झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने भी इसे लागू करने की घोषणा कर दी है.
गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों ने पिछले कई सालों से सरकारी कर्मचारियों द्वारा मांग की जा रही पुरानी पेंशन योजना (OPS) पर एक बार फिर से बहस छेड़ दी है. हिमाचल प्रदेश में बीते 12 नवंबर को मतदान हुए हैं, जबकि गुजरात में 1 और 5 दिसंबर को मतदान होना है.
कांग्रेस ने राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इस योजना को लागू करने के बाद अब गुजरात और हिमाचल प्रदेश में भी इसे लागू करने का वादा किया है. वहीं, आम आदमी पार्टी ने पंजाब और झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने भी इसे लागू करने की घोषणा कर दी है.
हालांकि, साल 2004 में इस योजना को समाप्त करने वाली एनडीए सरकार इसके खिलाफ है. वहीं, देश की कई वित्तीय संस्थाएं और देश के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) इसके आर्थिक बोझ को लेकर चिंताएं जाहिर कर रहे हैं.
दरअसल, पुरानी पेंशन योजना (OPS) पर जारी बहस के बीच भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) गिरीश चंद्र मुर्मू ने गुरुवार को राज्यों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करने वाले रिस्क फैक्टर्स पर प्रकाश डाला है.
मुर्मू ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और 15वें वित्त आयोग ने राज्यों के लिए राजकोषीय जोखिमों के संभावित स्रोत पर ध्यान दिया है, जिसमें कुछ राज्यों में पुरानी पेंशन योजना को फिर से शुरू करना शामिल है. मुर्मू ने कहा कि भारतीय राज्यों की राजकोषीय स्थिति एक प्रासंगिक मुद्दा है, जिसका सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया जाना चाहिए.
पुरानी पेंशन योजना (OPS) क्या है?
पुरानी पेंशन योजना के तहत केंद्र और राज्यों के सरकारी कर्मचारियों के लिए पेंशन उनके आखिरी मूल मासिक वेतन (बेसिक पे) का 50 फीसदी तय था. पुरानी पेंशन योजना या 'ओपीएस' इसलिए आकर्षक है क्योंकि यह किसी रिटायर कर्मचारी को एक सुनिश्चित या 'परिभाषित' लाभ देती है. इसलिए इसे 'परिभाषित लाभ योजना' कहा जाता अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें था.
उदाहरण के लिए, यदि रिटायरमेंट के समय एक सरकारी कर्मचारी का मूल मासिक वेतन 10,000 रुपये था, तो उसे गारंटी के साथ 5,000 रुपये की पेंशन मिलती थी. साथ ही, सरकारी कर्मचारियों के वेतन की तरह, सरकार द्वारा सेवारत कर्मचारियों के लिए घोषित महंगाई भत्ते या डीए में बढ़ोतरी के साथ पेंशनभोगियों के मासिक भुगतान में भी वृद्धि होती है.
महंगाई भत्ता या डीए एक प्रकार का एडजस्टमेंट है जो सरकार अपने कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को रहने की लागत (कॉस्ट ऑफ लिविंग) में लगातार वृद्धि के लिए देती है. डीए बढ़ोतरी की घोषणा साल में दो बार आम तौर पर जनवरी और जुलाई में की जाती है. 4 प्रतिशत डीए बढ़ोतरी का मतलब होगा कि 5,000 रुपये प्रति माह की पेंशन वाले एक सेवानिवृत्त व्यक्ति की मासिक आय बढ़कर 5,200 रुपये प्रति माह हो जाएगी.
आज तक, सरकार द्वारा भुगतान की जाने वाली न्यूनतम पेंशन 9,000 रुपये प्रति माह है और अधिकतम 62,500 रुपये है (केंद्र सरकार में उच्चतम वेतन का 50 प्रतिशत, जो कि 1,25,000 रुपये प्रति माह है).
OPS को लेकर समस्या क्या थी?
OPS के साथ सबसे बड़ी समस्या यह थी कि पेंशन के लिए विशेष तौर पर कोई फंड नहीं था. भारत सरकार हर साल पेंशन के लिए बजट देती है. हालांकि, भविष्य में साल दर साल पेमेंट का कोई रोडमैप नहीं था. इसके साथ ही हर पेंशन पाने वाले की पेंशन राशि भी हर साल मौजूदा कर्मचारियों की सैलरी की तरह बढ़ जाती है.
वहीं, हर साल बजट से पहले सरकार रिटायर कर्मचारियों के लिए पेमेंट का अनुमान लगाती है और मौजूदा टैक्सपेयर्स को अभी तक के सभी पेँशनरों के लिए टैक्स पे करना होता है. इस तरह मौजूदा पीढ़ी को लगातार बढ़ रहे पेंशन का बोझ उठाना पड़ रहा था.
पिछले तीन दशकों में, केंद्र और राज्यों के लिए पेंशन देनदारियां कई गुना बढ़ गई हैं. 1990-91 में, केंद्र का पेंशन बिल 3,272 करोड़ रुपये था और सभी राज्यों के लिए कुल व्यय 3,131 करोड़ रुपये था. 2020-21 तक, केंद्र का बिल 58 गुना बढ़कर 1,90,886 करोड़ रुपये हो गया था; राज्यों के लिए, यह 125 गुना बढ़कर 3,86,001 करोड़ रुपये हो गया था.
इस समस्या के समाधान के लिए क्या कदम उठाए गए?
1998 में, केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने वृद्धावस्था सामाजिक और आय सुरक्षा (OASIS) परियोजना के लिए एक रिपोर्ट मांगी. सेबी और यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष एसए दवे के तहत एक विशेषज्ञ समिति ने जनवरी 2000 में रिपोर्ट प्रस्तुत की.
OASIS परियोजना सरकारी पेंशन प्रणाली में सुधार के लिए नहीं थी. इसका प्राथमिक उद्देश्य असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को लेकर था, जिनके पास कोई वृद्धावस्था आय सुरक्षा नहीं थी.
1991 की जनगणना के आंकड़ों को लेते हुए, समिति ने पाया कि सिर्फ 3.4 करोड़ लोगों, या 31.4 करोड़ की अनुमानित कुल कामकाजी आबादी के 11 प्रतिशत से भी कम लोगों के पास सेवानिवृत्ति के बाद की कुछ आय सुरक्षा थी. उनके पास सरकारी पेंशन, कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) या कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) थी. बाकी की कामकाजी जनसंख्या के पास रिटायरमेंट के बाद की आर्थिक सुरक्षा का कोई साधन नहीं था.
OASIS रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि कर्मचारी तीन प्रकार के फंडों में निवेश कर सकते हैं. पहला सुरक्षित (इक्विटी में 10 प्रतिशत तक निवेश की अनुमति), संतुलित (इक्विटी में 30 प्रतिशत तक), और विकास (इक्विटी में 50 प्रतिशत तक). इसे छह फंड प्रबंधकों द्वारा जारी किया जाएगा. शेष राशि का निवेश कॉर्पोरेट बॉन्ड या सरकारी प्रतिभूतियों में किया जाएगा. व्यक्तियों के पास अलग से रिटायरमेंट खाते होंगे और उन्हें कम से कम 500 रुपये प्रति वर्ष निवेश करने की आवश्यकता होगी.
नई पेंशन स्कीम कैसे लागू हुई?
प्रोजेक्ट OASIS द्वारा प्रस्तावित नया पेंशन सिस्टम ही पेंशन सुधार का आधार बना. इस तरह असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए प्रस्तावित योजना को सरकारी कर्मचारियों के लिए अपना लिया गया.
केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए नई पेंशन योजना (एनपीएस) को 22 दिसंबर, 2003 को अधिसूचित किया गया था. कुछ अन्य देशों के विपरीत, एनपीएस स्वैच्छिक कर्मचारियों के लिए था. इसे 1 जनवरी, 2004 से सरकारी सेवा में शामिल होने वाले सभी नए भर्ती के लिए अनिवार्य कर दिया गया था.
परिभाषित योगदान में कर्मचारी द्वारा मूल वेतन और महंगाई भत्ते का 10 प्रतिशत और सरकार द्वारा एक समान योगदान शामिल किया गया. जनवरी 2019 में सरकार ने अपना योगदान बढ़ाकर मूल वेतन और महंगाई भत्ते का 14 फीसदी कर दिया.
31 अक्टूबर, 2022 तक, केंद्र सरकार के पास 23,32,774 सब्सक्राइबर्स थे और राज्यों में 58,99,162 सब्सक्राइबर्स थे. कॉरपोरेट क्षेत्र में 15,92,134 सब्सक्राइबर्स और असंगठित क्षेत्र में 25,45,771 सब्सक्राइबर्स थे.
एनपीएस स्वावलंबन योजना के तहत 41,77,978 सब्सक्राइबर्स थे. 31 अक्टूबर, 2022 तक इन सभी सब्सक्राइबर्स के प्रबंधन के तहत कुल संपत्ति 7,94,870 करोड़ रुपये थी.
UPA सरकार ने NDA की नई पेंशन स्कीम को दी थी मंजूरी
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने ही पेंशन सुधार का बीड़ा उठाया था. 1 जनवरी, 2004 से एनपीएस सरकार में नई भर्तियों के लिए प्रभावी हो गया और उस वर्ष सत्ता में आई कांग्रेस की अगुआई वाली नई सरकार ने पूरी तरह से सुधारों को स्वीकार कर लिया.
21 मार्च, 2005 को, यूपीए सरकार ने एनपीएस के नियामक पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण को वैधानिक समर्थन देने के लिए लोकसभा में एक विधेयक पेश किया. विधेयक को भाजपा के बीसी खंडूरी की अध्यक्षता वाली वित्त संबंधी स्थायी समिति के पास भेजा गया था.
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अपनी आर्थिक स्तिथि को कैसे सुधारें
निवेश मित्र (सिंगल विंडो क्लीयरेंस)
“निवेश मित्र” की परिकल्पना एक सरल, उपयोक्ता अनुकूल तथा उद्यमी केन्द्रित वेब एप्लीकेशन के रूप में की गई थी जो विद्यमान एवं आगामी निवेशकों तथा उद्यमियों को संबन्धित विभाग से ऑनलाइन अनापत्ति प्रमाणपत्र/क्लीयरेंस न्यूनतम प्रयास व “भागदौड़” के प्राप्त करने में सक्षम बनाता है ।
जो उद्यमी लघु, मध्यम एवं वृहद पैमाने का उद्योग स्थापित कर रहे हैं, उन्हें इस माध्यम से आवेदन अवश्य प्रस्तुत करना होगा । उद्यमी अपने आवेदनों के प्रक्रिया शुल्क के रूप में इंटेरनैट बैंकिंग, राजकोष तथा अन्य ऑनलाइन माध्यमों से भुगतान कर सकते हैं । यह एप्लिकेशन एक निश्चित समय सीमा के भीतर आवेदकों को उनके आवेदन की वर्तमान स्थिति देखने में भी सहायता करती है । यह पोर्टल क्रमागत तथा समयबद्ध रूप से विभिन्न विभागों से बिना वास्तविक भ्रमण के ही क्लीयरेंस प्राप्त में सहायता प्रदान करता है | निवेश मित्र पोर्टल सभी संबन्धित विभागों के विषय में सूचनाएँ, शासनादेश, प्रोसेस फ़्लो उनके नियमावलियों व दिशानिर्देश सहित प्रदान करता है | निवेश मित्र सम्पूर्ण राज्य में लागू है |