शुरुआती लोगों की मुख्य गलतियाँ

फिक्स्ड डिपॉजिट बनाम इक्विटी

फिक्स्ड डिपॉजिट बनाम इक्विटी
यहां मिलती है सेविंग अकाउंट जैसी सुविधा और ज्‍यादा रिटर्न, कोई भी लगा सकता है पैसे

गलत जगह कर बैठे हैं निवेश तो ये खबर आपके काम की है, क्लिक कर पढ़ें- काम की बात

अगर आपको भी कोई फाइनेंशियल प्रोडक्ट गलत तरीके से बेचा गया है और आप इसे लेकर फंस गए हैं तो परेशान होने की जरूरत नहीं है। जानें, वो तरीके जो आपके काम आ सकते हैं।

By: ABP Ganga | Updated at : 04 Oct 2019 07:17 AM (IST)

नई दिल्ली, एबीपी गंगा। निवेश करते वक्त क्या हम पूरी तरह से रिसर्च करते हैं। ये वो सवाल है जिसका जवाब न में ही सुनने को मिलता है। फाइनेंशियल प्रोडक्ट खरीदते हुए अक्सर लोग उन बातों को नजरअंदाज कर जाते हैं जो बेहद अहम साबित हो सकती हैं। लोग बीमा कंपनियों के एजेंट या बैंक के रिलेशनशिप मैनेजर के झांसे में आ जाते हैं और वहां निवेश कर देते हैं जहां से बाद में उन्हें निराश होना पड़ता है। अगर आपको भी कोई फाइनेंशियल प्रोडक्ट गलत तरीके से बेचा गया है और आप इसे लेकर फंस गए हैं तो परेशान होने की जरूरत नहीं है। हम आपको उन तरीकों के बारे में बता रहे हैं जो आपकी मदद कर सकते हैं।

इंश्योरेंस पॉसिली इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदते समय विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है। अक्सर एजेंट गलत जानकारी देकर ग्राहकों को पॉलिसी बेच देते हैं। लेकिन, थोड़ी सा सावधान रहकर आप आसानी से सही जानकारी हासिल कर सकते हैं। बीमा नियामक इरडा ने बीमा पॉलिसी को समझने के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट बनाम इक्विटी 15 दिन की अवधि रखी है। कुछ कंपनियां इसके लिए 30 दिन का समय देती हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि 'फ्री लुक पीरियड' यानी पॉलिसी को देखने-समझने की अवधि आवेदन की तारीख से शुरू नहीं होती है। बजाय इसके यह अवधि तब से शुरू होती है जब से पॉलिसी दस्तावेज ग्राहक को मिलते हैं। अगर आपको पॉलिसी, मसलन यूलिप या एंडावमेंट प्लान को गलत तरीके से बेचा गया फिक्स्ड डिपॉजिट बनाम इक्विटी है तो फ्री लुक पीरियड के अंदर इसे लौटाया जा सकता है।

बैंक/एनबीएफसी के फिक्स्ड डिपॉजिट अगर आपको फिक्स्ड डिपॉजिट प्लान गलत ढंग से बेचा गया है, तो मैच्योरिटी से पहले निकासी सबसे अच्छा समाधान है। चूंकि ज्यादातर बैंक ब्याज पर बहुत मामूली पेनाल्टी लगाते हैं। इसलिए आपको अनुबंध में तय से थोड़ा कम ब्याज मिलेगा। इसमें पूंजी का नुकसान होने की आशंका कम रहेगी। हालांकि, आपने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के डिपॉजिट में पैसा लगा दिया है तो आप फंसे रहेंगे। कारण है कि ज्यादातर एनबीएफसी मैच्योरिटी से पहले निकासी की अनुमति नहीं देती हैं। जो देती भी हैं वे 1-3 फीसदी तक एफडी क्लोजर पेनाल्टी फिक्स्ड डिपॉजिट बनाम इक्विटी चार्ज करती हैं।

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बैंलेंस्ड फंड यदि आपको गलत बैलेंस्ड फंड बेचा गया है तो तुरंत भुनाने पर समस्या हो सकती है। कारण यह है कि इस स्थिति में ज्यादातर फंड आपसे 1 फीसदी का एक्जिट लोड वसूल करेंगे। ज्यादातर म्यूचुअल फंड एक साल के अंदर निवेश को भुनाने पर 1 फीसदी का एक्जिट लोड रखते हैं। हालांकि, बैलेंस्ड फंड के कारण इक्विटी निवेश काफी ज्यादा बढ़ जाने पर आपके पास भुनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता है। याद रखें कि एक्जिट लोड से नुकसान होता है।

Published at : 03 Oct 2019 09:54 PM (IST) Tags: investment Plan money saving plan saving and investment हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: States News in Hindi

FD और SIP में कौन सा विकल्प है निवेश के लिए बेस्ट? यहां दूर करिए कंफ्यूजन

जब बात निवेश की आती है, तो ज्यादातर लोग इस बात को लेकर कंफ्यूज रहते हैं कि निवेश कहां किया जाए? वो ये भी चाहते हैं कि जहां भी निवेश किया जाए वो सुरक्षित हो और रिटर्न भी अच्छा मिले.

  • FD और SIP में कौन सा विकल्प चुनें?
  • SIP और FD निवेश में क्या अंतर है?
  • कहां निवेश करने से बनेगा ज्यादा पैसा?

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FD और SIP में कौन सा विकल्प है निवेश के लिए बेस्ट? यहां दूर करिए कंफ्यूजन

नई दिल्ली: जब बात निवेश की आती है, तो ज्यादातर लोग इस बात को लेकर कंफ्यूज रहते हैं कि निवेश कहां किया जाए? वो ये भी चाहते हैं कि जहां भी निवेश किया जाए वो सुरक्षित हो और रिटर्न भी अच्छा मिले. कोई कहता है फिक्स्ड डिपॉजिट कर लो, निश्चिंत रहेंगे तो कहेगा म्यूचुअल फंड में SIP कर लो, बढ़िया रिटर्न मिलेगा. हालांकि इन दोनों विकल्पों में कोई बुराई नहीं है. फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) एक अलग निवेश का जरिया है और म्यूचुअल फंड में SIP अलग तरीका है. तो सबसे पहले इन दोनों को लेकर अगर कोई कंफ्यूजन आपके दिमाग में है तो उसे दूर कर देते हैं.

FD क्या होता है?
फिक्स्ड डिपॉजिट (Fixed Deposite) में आप किसी बैंक या किसी कंपनी में एक तय समय के लिए पैसा डाल देते हैं. जब इसकी मैच्योरिटी हो जाती है तो ब्याज के साथ आपको पैसा मिल जाता है. फिक्स्ड डिपॉजिट को निवेश का एक बहुत सरल और सुरक्षित जरिया माना जाता है, जिसे आमतौर पर रिटायर्ड लोग चुनते हैं, क्योंकि उनकी Risk Capacity यानि निवेश में खतरा लेने की क्षमता कम होती है. ये ऐसे लोगों के लिए एक तय आमदनी का यह अच्छा जरिया होता है. इसमें आप अपनी सहूलियत और जरूरत के हिसाब से ब्याज को एकसाथ बाद में भी ले सकते हैं और हर महीने भी ले सकते हैं.

SIP क्या होता है?
Systematic Investment plan या SIP म्यूचुअल फंड में निवेश का एक जरिया है. इसमें आप अपनी क्षमता के मुताबिक हर महीने कुछ पैसा म्यूचुअल फंड्स में लगाते हैं. ये एक लक्ष्य निर्धारित निवेश होता है, जैसे किसी को अगर 5 साल बाद करोड़पति बनना है तो उसे आज से ही कितना पैसा SIP के जरिए निवेश करना होगा, ये पहले से तैयारी करके चलता है. घर खरीदना, गाड़ी खरीदना, पढ़ाई के लक्ष्यों के हिसाब से अलग अलग SIP होती हैं. इसकी सबसे खास बात ये होती है कि रिस्क क्षमता के हिसाब से आप कैटेगरी भी चुनते हैं. अगर ज्यादा रिस्क लेने की क्षमता है तो इक्विटी फंड्स, कम रिस्क क्षमता है तो फिक्स्ड डिपॉजिट बनाम इक्विटी डेट फंड्स और हल्की रिस्क क्षमता है तो हाइब्रिड फंड्स चुनते हैं.

इसलिए आपको FD या SIP में से कौन सा निवेश विकल्प चुनना है, ये आप अपनी रिस्क क्षमता और लक्ष्यों के आधार पर तय कर सकते हैं.

न्यूनतम निवेश
SIP में कोई भी व्यक्ति 500 रुपये महीना से निवेश शुरू कर सकता है, ताकि पॉकेट पर बोझ न पड़े. आप इसे मासिक की बजाय तिमाही आधार पर चुन सकते हैं.
FD में न्यूनत निवेश की शुरुआत 1,000 रुपये से लेकर 1 लाख रुपये तक होती है. चूंकि ये निवेश एकमुश्त होता है, इसलिए लोगों को हर महीने पैसे नहीं जमा करना पड़ता. अमूमन फिक्स्ड डिपॉजिट बनाम इक्विटी लोग FD का विकल्प तभी चुनते हैं जब उनके पास एक बड़ी एकमुश्त रकम हो और वो उसे सुरक्षित कहीं रखना चाहते हैं.

निवेश की अवधि
फिक्स्ड डिपॉजिट एक पारंपरिक निवेश का औजार है, इसे शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म दोनों तरह से सोचा जा सकता है. FD 7 दिन से लेकर 45 दिन, 1.5 साल और अधिकतम 10 साल के लिए भी होती है. जबकि इसके ठीक उलट SIP को आमतौर पर लंबी अवधि का निवेश माना जाता है, जितना लंबा निवेश होगा, उतना अच्छा रिटर्न मिलेगा.

रिटर्न कितना मिलेगा?
सौ बात की एक बात तो यही है कि किसी भी निवेश में कितना रिटर्न मिलता है? FD और SIP के रिटर्न में एक सबसे बड़ा अंतर ये है कि FD का रिटर्न तो फिक्स्ड होता है, लेकिन SIP का नहीं. फिक्स्ड डिपॉजिट का रेट एक निश्चित समय के लिए तय होता है, फिलहाल ये 5.5 परसेंट से लेकर 7.75 परसेंट के बीच चल रहा है. लेकिन SIP का रिटर्न म्यूचुअल फंड के प्रदर्शन और शेयर बाजार की चाल पर निर्भर करता है. अगर म्यूचुअल फंड में निवेश को 5 साल तक जारी रखा जाए तो 15 परसेंट तक का रिटर्न भी मिलता है. जो कि FD के रिटर्न से कहीं ज्यादा है.

टैक्सेशन
फिक्स्ड डिपॉजिट और म्यूचुअल फंड्स में टैक्सेशन बिल्कुल अलग-अलग है. फिक्स्ड डिपॉजिट में जितना भी ब्याज आप कमाते हैं आपके टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स काटा जाएगा.
जबकि म्यूचुअल फंड्स में टैक्स इस आधार पर लगता है कि आपने निवेश कितने दिन तक बनाए रखा. यहां हम सिर्फ इक्विटी म्यूचुअल फंड्स की बात करें तो टैक्स इस तरह से लगता है

इक्विटी म्यूचुअल फंड में टैक्स
12 महीने से ज्यादा अगर आपने म्यूचुअल फंड यूनिट्स में निवेश कर रखा था, तो लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस पर 10 परसेंट का टैक्स लगेगा, 1 लाख रुपये तक का लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस टैक्स फ्री नहीं है.
12 महीने से कम समय तक यूनिट्स फिक्स्ड डिपॉजिट बनाम इक्विटी रखने पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस के हिसाब से 15 परसेंट टैक्स लगेगा

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यहां मिलती है सेविंग अकाउंट जैसी सुविधा और बेहतर रिटर्न, कोई भी लगा सकता है पैसे

सेविंग्‍स अकाउंट से बेहतर रिटर्न देने वाले लिक्विड फंडों पर इंस्‍टैंट रिडेंप्‍शन की सुविधा मिल रही है। इसका उद्देश्‍य आपकी इमरजेंसी की जरूरतों को पूरा करना है।

Manish Mishra
Updated on: April 05, 2017 9:53 IST

यहां मिलती है सेविंग अकाउंट जैसी सुविधा और ज्‍यादा रिटर्न, कोई भी लगा सकता है पैसे- India TV Hindi

यहां मिलती है सेविंग अकाउंट जैसी सुविधा और ज्‍यादा रिटर्न, कोई भी लगा सकता है पैसे

नई दिल्‍ली। कहते हैं न कि कुछ पैसे हमेशा अपने हाथ में होने चाहिए। भविष्‍य को किसने देखा है। कब परिवार का कोई सदस्‍य बीमार हो जाए या फिक्स्ड डिपॉजिट बनाम इक्विटी कुछ अर्जेंट जरूरत ही आ जाए। तो, हम अपनी इन्‍हीं जरूरतों के लिए बैंकों के सेविंग्‍स अकाउंट या फिर आलमीरा में कुछ कैश हमेशा रखते हैं।

बैंक आपको 4-6 फीसदी सालाना रिटर्न देते हैं। लेकिन, आज हम आपको एक ऐसे विकल्‍प के बारे में बताएंगे जहां पैसे लगाना कैश इन हैंड जैसा ही है लेकिन रिटर्न बैंकों के सेविंग्‍स अकाउंट से कहीं बेहतर मिलेगा। क्‍या आप नहीं चाहेंगे कि आपको लिक्विडिटी के साथ बेहतर रिटर्न मिले?

यह भी पढ़ें :सरकार लाने वाली है आसान नियमों वाली यह इक्विटी सेविंग्‍स स्‍कीम, टैक्‍स बेनिफिट भी मिलेगा ज्‍यादा

लिक्विड फंडों में मिलती है इंस्‍टैंट रिडेंप्‍शन की सुविधा

भारतीय म्‍यूचुअल उद्योग अल्‍ट्रा शॉर्ट टर्म फंडों या लिक्विड फंडों में इंस्‍टैंट रिडेंप्‍शन की सुविधा दे रहा है। इसका उद्देश्‍य आपकी इमरजेंसी की जरूरतों को पूरा करना है। पहले लिक्विड फंडों से आप एक दिन के भीतर अपने पैसे निकाल सकते थे। इसके लिए 3 बजे से पहले आवेदन करना होता था। अब नियम बदल गए हैं। आप अपने पैसे इन फंडों से एक बटन क्लिक कर निकाल सकते हैं। इसके अलावा रिटर्न भी सेविंग्‍स अकाउंट से बेहतर पा सकते हैं। आपको बता दें कि ज्‍यादातर लिक्विड फंडों ने एक साल में 7 फीसदी से अधिक का रिटर्न दिया है।

लिक्विड फंडों के रिटर्न

लिक्विड फंड बनाम शॉर्ट टर्म फिक्‍स्‍ड डिपॉजिट

आपका तर्क हो सकता है कि लिक्विड फंडों के बदले क्‍यों ने पैसों का निवेश शॉर्ट टर्म के फिक्‍स्‍ड डिपॉजिट में किया जाए। इसमें कोई बुराई नहीं लेकिन कुछ बातों को समझिए। फिक्‍स्‍ड डिपॉजिट में ज्‍यादा लचीलापन नहीं होता है। हो सकता है कि आप कम अवधि के लिए अपने पैसे फिक्‍स कर रहे हों लेकिन अगर समय से पहले निकासी करने जाएंगे तो बैंक पेनाल्‍टी लगा सकते हैं।

यह भी पढ़ें : SBI ने सेविंग अकाउंट पर अब बढ़ाए ये शुल्क, चेक बुक और लॉकर के लिए भी देने होंगे अधिक पैसे

लिक्विड फंडों के हो सकते हैं कुछ शर्त

तत्‍काल पैसों की निकासी मामले में लिक्विड फंड कुछ शर्त लगा सकते हैं। जैसे एक तय सीमा से ज्‍यादा रकम आप शॉर्ट नोटिस पर नहीं निकाल सकते। निकासी की रकम आपके कुल निवेश का एक तय प्रतिशत हो सकती है। इसके बावजूद, लिक्विड फंड सुविधाजनक तो हैं ही, रिटर्न के मामले में भी बेहतर हैं।

चाहते हैं पैसे बचाना, इन विकल्पों का करें इस्तेमाल टैक्स की भी होगी बचत

टाइम्स नाउ डिजिटल

PPF vs NPS vs ULIP vs ELSS vs NSC vs FD: अगर आप टैक्स बचाने के लिए निवेश करना चाहते हैं तो आपके पास कई विकल्प मौजूद हैं। आप इनमें से किसी एक का चयन कर सकते हैं।

PPF, NPS, ULIP, ELSS, NSC, FD

PPF, NPS, ULIP, ELSS, NSC, FD: इन विकल्पों में निवेश कर बचा सकते हैं फिक्स्ड डिपॉजिट बनाम इक्विटी टैक्स  |  तस्वीर साभार: Getty Images

एक असरदार टैक्स सेविंग स्ट्रेटेजी अपनाने से आपको सिर्फ अपने टैक्स के बोझ को कम करने में ही नहीं बल्कि अपने इन्वेस्टमेंट रिटर्न को अनुकूल बनाने, लिक्विडिटी को मैनेज करने, और जोखिम को कम करने में भी मदद मिलती है। मार्केट में कई तरह के टैक्स सेविंग प्रोडक्ट्स मिलते हैं लेकिन हर तरह का प्रोडक्ट हर टैक्सपेयर के लिए सही नहीं भी हो सकता है।

टैक्स सेविंग, टैक्सपेयर के वित्तीय लक्ष्यों के साथ बहुत करीब से जुड़ा होना चाहिए; इसलिए व्यक्ति को अपनी उम्र, जोखिम उठाने की चाहत, और अपने लक्ष्यों के आधार पर, सही टैक्स सेविंग प्रोडक्ट का चुनाव करना चाहिए। उदाहरण के लिए, एक टैक्स सेविंग प्रोडक्ट जो एक नौजवान टैक्सपेयर के लिए सूटेबल है वह एक रिटायर्ड टैक्सपेयर के लिए सूटेबल नहीं भी हो सकता है, और इसके विपरीत भी हो सकता है।

इसलिए, सही टैक्स सेविंग प्रोडक्ट्स का चुनाव करते समय, टैक्सपेयर अक्सर इस उलझन में पड़ जाते हैं कि उसे कौन-सा प्रोडक्ट चुनना चाहिए और क्यों। जब दो टैक्स सेविंग प्रोडक्ट्स के बेनिफिट्स एक जैसे होते हैं या जब वे एक ही एसेट केटेगरी के होते हैं तो उलझन और बढ़ सकती है। चूंकि वित्तीय वर्ष 19-20 अब खत्म होने वाला है इसलिए आइए कुछ टैक्स सेविंग से जुड़े उलझनों पर गौर करते हैं जिनसे बचने की कोशिश करनी चाहिए।

1. यूलिप बनाम ईएलएसएस

कई लोग अक्सर यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान्स (ULIP) और इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम्स (ELSS) को लेकर उलझन में पड़ जाते हैं क्योंकि इन दोनों प्रोडक्ट्स पर इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80C के तहत 1.5 लाख रुपये तक का टैक्स बेनिफिट मिलता है। लेकिन इनकी समानता यहीं खत्म हो जाती है। यूलिप एक इंश्योरेंस-सह-इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट है जबकि ईएलएसएस एक शुद्ध इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट है।

यूलिप के चार्ज आम तौर पर ईएलएसएस से अधिक होते हैं। यूलिप और ईएलएसएस का मिनिमम लॉक-इन पीरियड क्रमशः 5 साल और 3 साल होता है। यूलिप के लिए एक लॉन्ग टर्म कमिटमेंट करना पड़ता है, यानी, इसमें इन्वेस्ट करना शुरू करने के बाद, आपको इसमें हर साल निवेश करना पड़ता है; दूसरी तरफ, आप ईएलएसएस में अपनी मनचाही अवधि के लिए एक मंथली सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) शुरू कर सकते हैं या एक बार में एक लम्प सम अमाउंट निवेश कर सकते हैं।

यूलिप में आपको इक्विटी और डेब्ट दोनों तरह के एसेट्स में निवेश करने का मौका मिलता है जबकि ईएलएसएस में आपको सिर्फ इक्विटी क्लास में ही इन्वेस्टमेंट करने की इजाजत मिलती है। इसलिए, यदि आप एक इंश्योरेंस प्लस इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट की तलाश कर रहे हैं और आप एक लॉन्ग टर्म कमिटमेंट के लिए तैयार हैं, तो आप यूलिप का चुनाव कर सकते हैं, लेकिन यदि आप अधिक रिस्क और रिटर्न की उम्मीद के साथ एक शुद्ध इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट की तलाश कर रहे हैं तो ईएलएसएस आपके लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है।

2. एनपीएस बनाम पीपीएफ

नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) और पब्लिक प्रोविडेंट फंड (PPF) दोनों लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट्स हैं लेकिन ये अपने इन्वेस्टरों को अलग-अलग प्रकार के बेनिफिट्स देते हैं। एनपीएस एक ऐसा प्रोडक्ट है जो रिटायरमेंट प्लानिंग पर फोकस करता है। एनपीएस फंड तब मैच्योर होता है जब इन्वेस्टर, रिटायर होने की उम्र तक पहुंच जाता है, और रिटायरमेंट के समय, मिलने वाले फंड का 60% अमाउंट टैक्स फ्री होता है जबकि बाकी का 40% अमाउंट एक एन्युटी प्लान खरीदने के लिए निवेश करना पड़ता है।

बाद में एन्युटी इनकम पर उस इनकम के मिलने वाले साल में लाभार्थी पर लागू होने वाले टैक्स स्लैब रेट के हिसाब से टैक्स लिया जाता है। इस तरह देखा जा सकता है कि एनपीएस से होने वाला इनकम पूरी तरह टैक्स फ्री नहीं होता है। दूसरी तरफ, पीपीएफ आपको ईईई बेनिफिट देता है, कहने का मतलब है कि सेक्शन 80C के तहत 1.5 लाख रुपये तक का इन्वेस्टमेंट, मैच्योरिटी अमाउंट और ऐसे इन्वेस्टमेंट पर मिलने वाला इंटरेस्ट तीनों टैक्स फ्री होता है। पीपीएफ इन्वेस्टमेंट पर मिलने वाले इंटरेस्ट की दर हर तीन महीने में बदलती रहती है और इसमें 15 साल का लॉक-इन पीरियड भी होता है।

दूसरी तरफ, एनपीएस आपको सेक्शन 80CCD के तहत 50,000 रुपये तक का एक्स्ट्रा टैक्स बेनिफिट देता है, इसलिए यदि आप 80C लिमिट के अलावा एक्स्ट्रा टैक्स बेनिफिट का लाभ उठाना चाहते हैं तो आप इसमें निवेश कर सकते हैं। लेकिन, यदि आप एक पेंशन प्रोडक्ट की तलाश में हैं, एक सुरक्षित रिटर्न पाना चाहते हैं, और एक लम्बे फिक्स्ड डिपॉजिट बनाम इक्विटी लॉक-इन पीरियड तक इंतजार करने के लिए तैयार हैं तो पीपीएफ एक बहुत आकर्षक टैक्स सेविंग इन्वेस्टमेंट है जिसे आप छोड़ना नहीं चाहेंगे।

3. एनएससी बनाम टैक्स सेविंग एफडी

यदि आप एक ऐसे टैक्स सेविंग प्रोडक्ट की तलाश कर रहे हैं जिसमें कम से कम लॉक-इन पीरियड के साथ सुरक्षित रिटर्न मिलता हो तो आप नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट (NSC) और 5-इयर टैक्स सेविंग फिक्स्ड डिपोजिट के तहत मिलने वाले लाभों का पता लगा सकते हैं। एनएससी और 5-इयर टैक्स सेविंग एफडी दोनों में 5 साल का लॉक-इन होता है। आप एनएससी या टैक्स सेविंग एफडी में निवेश करके सेक्शन 80C के तहत टैक्स बेनिफिट के लिए क्लेम कर सकते हैं।

एनएससी पर मिलने वाले इंटरेस्ट का रेट सरकार द्वारा हर तीन महीने में बदल दिया जाता है, जबकि टैक्स सेविंग एफडी का इंटरेस्ट रेट तरह-तरह के आर्थिक कारकों को ध्यान में रखते हुए बैंकों द्वारा तय किया जाता है। वर्तमान में, एनएससी के तहत दिए जाने वाले इंटरेस्ट का रेट 7.9% है जबकि टैक्स सेविंग एफडी का इंटरेस्ट रेट 6.7% से 7% प्रति वर्ष के आसपास है। एनएससी में किए जाने वाले इन्वेस्टमेंट पर टीडीएस नहीं कटता है जबकि बैंक एफडी पर टीडीएस कट सकता है।

एनएससी में किए गए इन्वेस्टमेंट को लोन के लिए गिरवी रखा जा सकता है, लेकिन टैक्स सेविंग एफडी का इस्तेमाल किसी लोन के लिए जमानत के तौर पर करने की इजाजत नहीं है। इसलिए, आखिरी समय में टैक्स सेविंग उपायों को अंतिम रूप देते समय, अपने वित्तीय सलाहकार से बात करने में संकोच न करें फिक्स्ड डिपॉजिट बनाम इक्विटी यदि आप यह तय करने में असमर्थ हैं कि आपके लिए कौन-सा प्रोडक्ट बेहतर है। एक टैक्स सेविंग प्रोडक्ट में इन्वेस्ट करने से पहले पूरी जानकारी हासिल करना और पूरी सावधानी बरतना जरूरी है, क्योंकि बाद में आपको अपने पैसे वापस पाने के लिए लॉक-इन पीरियड के पूरा होने तक इंतजार करना पड़ सकता है।

अंत में, वित्तीय वर्ष 20-21 से टैक्सपेयरों को मौजूदा टैक्स सिस्टम को चालू रखने या नए डिस्काउंटेड टैक्स स्लैब रेट्स को चुनने का विकल्प मिलेगा। डिस्काउंटेड टैक्स स्लैब रेट्स का लाभ तभी मिल सकता है यदि आप अधिकांश मौजूदा टैक्स डिडक्शन बेनिफिट्स को छोड़ने के इच्छुक हैं। यह ऑप्शनल टैक्स सिस्टम, फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण द्वारा अपने बजट 2020 के भाषण में प्रस्तावित किया गया है।

एक टैक्सपेयर होने के नाते, आपको अगले साल से अपने टैक्स सेविंग उपायों का हिसाब लगाना चाहिए और उसी सिस्टम को चुनना चाहिए फिक्स्ड डिपॉजिट बनाम इक्विटी जिससे आपकी टैक्स देनदारी कम होती हो। इसके अलावा, यदि आप नए सिस्टम को चुनना चाहते हैं तो यह जरूर देख लें कि कहीं आप सिर्फ इसलिए अपने इन्वेस्टमेंट और जरूरी इंश्योरेंस खरीद को बंद तो नहीं कर रहे हैं क्योंकि अब उस पर आपको कोई टैक्स बेनिफिट मिलने वाला नहीं है। असल में, इस नए सिस्टम से आपको अपने वित्तीय लक्ष्यों और जिम्मेदारियों के अनुसार निवेश करने और इंश्योरेंस लेने की ज्यादा आजादी मिलनी चाहिए।

(इस लेख के लेखक, BankBazaar.com के CEO आदिल शेट्टी हैं)
(डिस्क्लेमर: यह जानकारी एक्सपर्ट की रिपोर्ट के आधार पर दी जा रही है। बाजार जोखिमों के अधीन फिक्स्ड डिपॉजिट बनाम इक्विटी होते हैं, इसलिए निवेश के पहले अपने स्तर पर सलाह लें।)

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