वित्तीय साधन कैसे काम करते हैं

प्रबन्ध क्या है? | prabandh kya hai
प्रबन्ध को प्रभावशीलता एवं कार्यक्षमता से लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु कार्य कराने की प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इस का उद्देश्य सर्वमान्य लक्ष्यों/उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु किए जाने वाले प्रयासों के सम्बन्ध में मार्गदर्शन करना होता है।
प्रबन्ध का इतिहास उतना ही पुराना है, जितनी की मानव सभ्यता क्योकि स्वयं मानव सभ्यता के विकास में कही न कही और किसी न किसी रूप मे प्रबन्ध का भी योगदान रहा है। इस प्रकार प्रबन्ध की अवधारणा मानवीय सभ्यता के साथ विकसित होती चली गयी जो आज आधुनिक प्रबन्ध के नाम से जानी जाती है। और वास्तव मे आज 'प्रबन्ध' ही व्यवसाय तथा उद्योग रूपी शरीर का मस्तिष्क अथवा उसकी जीवनदायी शक्ति है। यही वह जीवनवटी है जो संगठन को शक्ति देती है, संचालित करती है और नियंत्रण मे रखती है। अतः 'प्रबन्ध' आधुनिक व्यवस्थाओं, वित्तीय साधन कैसे काम करते हैं संगठनों को अपने लक्ष्य प्राप्ति की एक युक्ति है जिसके कुशल संचालन पर ही व्यवसाय की सफलता निर्भर करती है। इसलिए पीटर ड्रकर कहते है कि "प्रबन्ध ही प्रत्येक व्यापार का गतिशील एवं जीवनदायक तत्व होता है, उसके नेतृत्व के अभाव मे उत्पादन के साधन केवल, 'साधन' मात्रा रह जाते है, कभी उत्पादक नही बन पाते।"
प्रबन्ध से तात्पर्य है कि कोई भी कार्य, कुशलता व मितव्ययिता पूर्वक कैसे किया जाये। वर्तमान जटिल वित्तीय साधन कैसे काम करते हैं व्यावसायिक युग में प्रबन्ध को अनेक अर्थो में प्रयुक्त किया जाता है। वास्तव मे प्रबन्ध दूसरो से काम लेने की एक युक्ति है। किसी उपक्रम मे श्रमिक कार्य करते है, इसमें प्रबन्ध को यह सोचना पड़ता है वित्तीय साधन कैसे काम करते हैं कि किस प्रकार श्रमिको से अच्छे ढंग से काम लिया जा सकता है। प्रबन्ध को यह निर्णय लेना पड़ता है कि वास्तव में क्या करना है और उसको करने का उत्तम तरीका क्या है कुछ व्यक्तियों ने इसे संकीर्ण अर्थ मे लिया है। जबकि बहुमान्य धारणा व्यापक अर्थ के पक्ष में है। संकीर्ण अर्थ में प्रबन्ध दूसरे व्यक्तियों से कार्य कराने की युक्ति है और वह व्यक्ति जो दूसरे व्यक्ति से कार्य करा सकता है, प्रबन्ध कहलाता है। विस्तृत अर्थ में प्रबन्ध कला और विज्ञान दोनों है और यह निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए विभिन्न मानवीय प्रयासों से सम्बंध रखता है। जबकि थियों हेमेन ने प्रबंध को तीन अर्थो यथा प्रबन्ध अधिकारियों के अर्थ में, प्रबन्ध विज्ञान के अर्थ में एवं, प्रबन्ध प्रक्रिया के अर्थ में प्रयुक्त किया है।
"प्रथम दृष्टिकोण के अनुसार प्रबन्ध का अभिप्राय सामान्यतः प्रबन्ध अधिकारियों से होता है। जिसके अंतर्गत संबंधित इकाई मे कार्य करने वाले लोगों के कार्यो पर नियंत्रण स्थापित किया जाता है। द्वितीय दृष्टिकोण के अनुसार प्रबन्ध का अभिप्रायः एक ऐसे विज्ञान से है जिसमें व्यवसायिक नियोजन संगठन, संचालन, समन्वय, प्रेरणा, नियंत्रण आदि से संबंधित सिद्धांतों का वैज्ञानिक विश्लेषण होता है। तृतीय दृष्टिकोण के अनुसार प्रबन्ध का आशय एक प्रक्रिया से है। जिसके अंतर्गत दूसरे लोगों के साथ मिल-जुलकर कार्य किया जाता है।"
- किम्बॉल एवं किम्बॉल- के शब्दों में, "व्यापक रूप में प्रबन्ध का आशय उस कला से है। जिसके द्वारा किसी उद्योग मे मानव और माल को नियंत्रित करने के लिए अधिक सिद्धांतों को व्यवहार में लाया जाता है।"
- जेम्स एवं लुण्डी के अनुसार- "प्रबन्ध मुख्य रूप से विशिष्ट उद्देश्यो की प्राप्ति के लिए दूसरों के प्रयत्नों को नियोजित, समन्वित, प्रेरित तथा नियंत्रित करने का कार्य है।"
- हेनरी फेयोल के अनुसार- "प्रबन्ध को एक प्रक्रिया मानते हुए कहते है कि प्रबन्ध से आशय पूर्वानुमान लगाना, योजना बनाना, संगठन करना, आदेश देना, समन्वय करना व नियंत्रण स्थापित करना आदि है।"
- प्रभावशीलता गुणात्मक है जबकि कार्यक्षमता मात्रात्मक।
- सही कार्य करना प्रभावशीलता को दर्शाता है जबकि कार्यों को सही से करना कार्यक्षमता को दर्शाता है।
- एक व्यवसाय के लिए दोनो ही आवश्यक होते है तथा इन में संतुलन बनाये रखना भी अनिवार्य है जिससे प्रबन्ध लक्ष्यों (प्रभावशीलता) को न्यूनतम संसाधनों (कार्यक्षमता) से प्राप्त कर सकें।
प्रबन्ध की विशेषताएँ/लक्षण
इसका अर्थ है कि प्रबन्ध की आवश्यकता सभी प्रकार के संगठनों में होती है चाहे वे व्यावसायिक संगठन हों या सामाजिक अथवा राजनीतिक, छोटे हों या बड़े। प्रबन्ध की आवश्यकता विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय, अस्पताल, बड़े संगठनों जैसे कि रिलाइन्स इन्डस्ट्रीज लिमिटेड या फिर आपके इलाके की छोटी-सी पंसारी की दुकान में भी होती है। अतः यह एक सार्वभौमिक क्रिया है जो कि सभी संगठनों में समान आवश्यक तत्व के रूप में है।
प्रत्येक संगठन की स्थापना कुछ उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए की जाती है। उदाहरण के लिए, एक व्यावसायिक संगठन का मुख्य उद्देश्य अधिकतम लाभोपार्जन एवं/या उत्तम स्तर की वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन हो सकता है। संगठन का प्रबंध सदैव संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति पर केन्द्रित होता है। प्रबंध की सफलता इन उद्देश्यों की प्राप्ति से ही आंकी जाती है।
प्रबन्ध लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। जब तक संगठन रहता है, प्रबंध की प्रक्रिया सतत् रूप से चलती रहती है। प्रबन्ध के बिना संगठन का कोई कार्य नहीं हो सकता। उत्पादन, बिक्री, संग्रहण इत्यादि क्रियाएँ सभी के लिए प्रबन्ध
सभी कार्य, क्रियाएं एवं प्रक्रियाएं परस्परमिश्रित हैं। प्रबंधा का कार्य है उन्हें एकत्रित कर समन्वय द्वारा इच्छित उद्देश्यों की पूर्ति करना। मनुष्यों, मशीनों एवं समूह के रूप में वैयक्तिक प्रयासों के समन्वय के अभाव में
प्रबन्धा न तो वह स्थान है जहाँ बोर्ड की मीटिंग दिखाई जा रही है और न ही वह स्थान जहां प्रधानाचार्य को अपने कार्यालय में बैठे हुए दिखाया जा रहा है। प्रबंध एक ऐसी शक्ति है जिसे देखा नहीं जा सकता। उसकी उपस्थिति को केवल नियमों, उत्पाद, कार्य के वातावरण, आदि वित्तीय साधन कैसे काम करते हैं से महसूस किया जा सकता है।
प्रबंध के लिए संगठन में बहुत प्रकार के क्षेत्रों का ज्ञान आवश्यक है क्योंकि उसमें मनुष्य, मशीनों, माल के अतिरिक्त उत्पादन, वितरण, लेखा एवं अन्य कई कार्यों का समावेश है। इसलिए वित्तीय साधन कैसे काम करते हैं हम पाते हैं कि प्रबंध के सिद्धांत एवं तकनीक अध्ययन के बहुत-से क्षेत्रों जैसे कि इंजीनियरिंग, अर्थशास्त्र, समाज विज्ञान, मनोशास्त्र, मानव विज्ञान, गणित एवं संस्कृति, इत्यादि से लिए गए हैं।
प्रबंधा का सबसे प्रमुख अंग है समूह में कार्य कर रहे लोगों से व्यवहार। इसमें सम्मिलित हैं कार्य पर लगे लोगों का विकास एवं अभिप्रेरण एवं एक सामाजिक इकाई के रूप में उनकी संतुष्टि का ध्यान रखना। प्रबन्ध के सभी कार्य मुख्यतः मानवीय संबंधों से जुड़े हैं इसलिए उसे सामाजिक क्रिया कहना उचित है।
प्रबन्धा में सलता परिस्थिति पर निर्भर है। अत:परिस्थिति अनुसार सफलता के स्तर बदलते रहते हैं। प्रबंध का कोई एक निश्चित सर्वोत्तम तरीका नहीं है। प्रबंधा की तकनीक एवं उसके सिद्धांत सापेक्ष हैं और सभी परिस्थितियों में समान रूप से सही नहीं हैं।
आज की खास खबर एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य की थीम, आज, भारत की जी20 की अध्यक्षता की पारी शुरू
जी20 की पिछली 17 अध्यक्षताओं के दौरान वृहद आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने, अंतरराष्ट्रीय कराधान को तर्कसंगत बनाने और विभिन्न देशों के सिर से कर्ज के बोझ को कम करने समेत कई महत्वपूर्ण परिणाम सामने आए. अब, जबकि भारत ने इस महत्वपूर्ण पद को ग्रहण किया है, मैं अपने आपसे यह पूछता हूं- क्या जी20 अभी भी और आगे बढ़ सकता है? क्या हम समग्र मानवता के कल्याण के लिए मानसिकता में मूलभूत बदलाव को उत्प्रेरित कर सकते हैं?
मेरा विश्वास है कि हम ऐसा कर सकते हैं. हमारी परिस्थितियां ही हमारी मानसिकता को आकार देती हैं. दुर्भाग्य से, हम आज भी उसी शून्य-योग की मानसिकता में अटके हुए हैं. हम इसे तब देखते हैं जब विभिन्न देश क्षेत्र या संसाधनों के लिए आपस में लड़ते हैं. जब कुछ लोगों द्वारा टीकों की जमाखोरी की जाती है, भले ही अरबों लोग बीमारियों से असुरक्षित हों.
कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि टकराव और लालच मानवीय स्वभाव है. मैं इससे असहमत हूं. अगर मनुष्य स्वाभाविक रूप से स्वार्थी है, तो हम सभी में मूलभूत एकात्मता की हिमायत करने वाली इतनी सारी आध्यात्मिक परंपराओं के स्थायी आकर्षण को कैसे समझा जाए?
भारत में प्रचलित ऐसी ही एक परंपरा है जो सभी जीवित प्राणियों और यहां तक कि निर्जीव चीजों को भी एक समान ही पांच मूल तत्वों- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश के पंचतत्व से बना हुआ मानती है. इन तत्वों का सामंजस्य आवश्यक है. भारत की जी-20 की अध्यक्षता दुनिया में एकता की इस सार्वभौमिक भावना को बढ़ावा देने की ओर काम करेगी. इसलिए हमारी थम- ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ है. आज हमारे पास दुनिया के सभी लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त उत्पादन करने के साधन हैं.
युद्ध हरगिज न हो
आज, हमें अपने अस्तित्व के वित्तीय साधन कैसे काम करते हैं लिए लड़ने की जरूरत नहीं है- हमारे युग को युद्ध का युग होने की जरूरत नहीं है. ऐसा बिलकुल नहीं होना चाहिए. आज हम जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और महामारी जैसी जिन सबसे बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, उनका समाधान आपस में लड़कर नहीं बल्कि मिलकर काम करके ही निकाला जा सकता है. आज हम जिस विशाल वर्चुअल दुनिया में रहते हैं, वह डिजिटल प्रौद्योगिकियों की मापनीयता को प्रदर्शित करती है. सामूहिक निर्णय लेने की सबसे पुरानी ज्ञात परंपराओं वाली सभ्यता होने के नाते भारत दुनिया में लोकतंत्र के मूलभूत डीएनए में योगदान देता है.
तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था
आज, भारत सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है. हमारे प्रतिभाशाली युवाओं की रचनात्मक प्रतिभा का पोषण करते हुए, हमारा नागरिक-केंद्रित शासन मॉडल एकदम हाशिए पर पड़े नागरिकों का भी ख्याल रखता है. हमने राष्ट्रीय विकास को ऊपर से नीचे की ओर के शासन की कवायद नहीं, बल्कि एक नागरिक-नेतृत्व वाला ‘जन आंदोलन) बनाने की कोशिश की है. हमने ऐसी डिजिटल जन उपयोगिताएं निर्मित करने के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाया है जो खुली, समावेशी और अंतर-संचालनीय हैं. इनके कारण सामाजिक सुरक्षिा, वित्तीय समावेशन और इलेक्ट्रॉनिक भुगतान जैसे विविध क्षेत्रों में क्रांतिकारी प्रगति हुई है.
जी20 अध्यक्षता के दौरान, हम भारत के अनुभव, ज्ञान और प्रारूप को दूसरों के लिए, विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए एक संभावित टेम्प्लेट के रूप में प्रस्तुत करेंगे. हमारी प्राथमिकताएं, हमारी ‘एक पृथ्वी’ को संरक्षित करने, हमारे ‘एक परिवार’ में सद्भाव पैदा करने और हमारे ‘एक भविष्य’ को शान्वित करने पर केंद्रित होंगी. भारत का जी20 एजेंडा समावेशी, महत्वाकांक्षी, कार्रवाई-उन्मुख और निर्णायक होगा. आइए, हम भारत की जी20 अध्यक्षता को संरक्षण, सद्भाव और उम्मीद की अध्यक्षता बनाने के लिए एकजुट हों और मानव-केंद्रित वैश्वीकरण के एक नए प्रतिमान को स्वरुप देने के लिए साथ मिलकर काम करें.
समावेशी व निर्णायक होगा भारत का जी20 एजेंडा
जी-20 की पिछली 17 अध्यक्षताओं के दौरान वृहद आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने, अंतर्राष्ट्रीय कराधान को तर्कसंगत बनाने और विभिन्न देशों के सिर से कर्ज के बोझ को कम करने समेत कई महत्वपूर्ण परिणाम सामने आए। हम इन उपलब्धियों से लाभान्वित होंगे तथा यहां से और आगे की ओर बढ़ेंगे।
अब, जबकि भारत ने इस महत्वपूर्ण पद को ग्रहण किया है, मैं अपने आपसे यह पूछता वित्तीय साधन कैसे काम करते हैं हूं- क्या जी-20 अभी भी और आगे बढ़ सकता है? क्या हम समग्र मानवता के कल्याण के लिए मानसिकता में मूलभूत बदलाव लाने की पहल कर सकते हैं?
मेरा विश्वास है कि हां, हम ऐसा कर सकते वित्तीय साधन कैसे काम करते हैं हैं। हमारी परिस्थितियां ही हमारी मानसिकता को आकार देती हैं। पूरे इतिहास के दौरान मानवता का जो स्वरूप होना चाहिए था, उसमें एक प्रकार की कमी दिखी। हम सीमित संसाधनों के लिए लड़े, क्योंकि हमारा अस्तित्व दूसरों को उन संसाधनों से वंचित कर देने पर निर्भर था। विभिन्न विचारों, विचारधाराओं और पहचानों के बीच टकराव और प्रतिस्पर्धा को ही जैसे आदर्श मान बैठे।
दुर्भाग्य से, हम आज भी उसी शून्य-योग की मानसिकता में अटके हुए हैं। हम इसे तब देखते हैं, जब विभिन्न देश, क्षेत्र या संसाधनों के लिए आपस में लड़ते हैं। हम इसे तब देखते हैं, जब आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति को हथियार बनाया जाता है। हम इसे तब देखते हैं, जब कुछ लोगों द्वारा टीकों की जमाखोरी की जाती है, भले ही अरबों लोग बीमारियों से असुरक्षित हों।
कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि टकराव और लालच मानवीय स्वभाव है। मैं इससे असहमत हूं। अगर मनुष्य स्वाभाविक रूप से स्वार्थी है, तो हम सभी में मूलभूत एकात्मता की हिमायत करने वाली इतनी सारी आध्यात्मिक परंपराओं के स्थायी आकर्षण को कैसे समझा जाए? भारत में प्रचलित ऐसी ही एक परंपरा है जो सभी जीवित प्राणियों और यहां तक कि निर्जीव चीजों को भी एक समान ही पांच मूल तत्वों- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश के पंचतत्व- से बना हुआ मानती है। इन तत्वों का सामंजस्य -हमारे भीतर और हमारे बीच भी- हमारे भौतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय कल्याण के लिए आवश्यक है।
भारत की जी-20 की अध्यक्षता दुनिया में एकता की इस सार्वभौमिक भावना को बढ़ावा देने की ओर काम करेगी। इसलिए हमारी थीम - ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ है। ये सिर्फ एक नारा नहीं है। ये मानवीय परिस्थितियों में उन हालिया बदलावों को ध्यान में रखता है, जिनकी सराहना करने में हम सामूहिक रूप से विफल रहे हैं।
आज हमारे पास दुनिया के सभी लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त उत्पादन करने के साधन हैं। आज, हमें अपने अस्तित्व के लिए लड़ने की जरूरत नहीं है - हमारे युग को युद्ध का युग होने की जरूरत नहीं है। ऐसा बिलकुल नहीं होना चाहिए! आज हम जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और महामारी जैसी जिन सबसे बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, उनका समाधान आपस में लड़कर नहीं, बल्कि मिलकर काम करके ही निकाला जा सकता है।
सौभाग्य से, आज की जो तकनीक है, वह हमें मानवता के व्यापक पैमाने पर समस्याओं का समाधान करने का साधन भी प्रदान करती है। आज हम जिस विशाल वर्चुअल दुनिया में रहते हैं, उससे हमें डिजिटल प्रौद्योगिकियों की व्यापकता का भी पता चलता है।
भारत इस सकल विश्व का सूक्ष्म जगत है, जहां विश्व की आबादी का छठा हिस्सा रहता है और जहां भाषाओं, धर्मों, रीति-रिवाजों और विश्वासों की विशाल विविधता है। सामूहिक निर्णय लेने की सबसे पुरानी ज्ञात परंपराओं वाली सभ्यता होने के नाते भारत दुनिया में लोकतंत्र के मूलभूत डीएनए में योगदान देता है। लोकतंत्र की जननी के रूप में भारत की राष्ट्रीय सहमति किसी आदेश से नहीं, बल्कि करोड़ों स्वतंत्र आवाजों को एक सुरीले स्वर में मिला कर बनाई गई है।
आज, भारत सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है। हमारे प्रतिभाशाली युवाओं की रचनात्मक प्रतिभा का पोषण करते हुए, हमारा नागरिक-केंद्रित शासन मॉडल एकदम हाशिये पर खड़े लोगों का भी ख्याल रखता है।
हमने राष्ट्रीय विकास को ऊपर से नीचे की ओर के शासन की कवायद नहीं, बल्कि एक नागरिक-नेतृत्व वाला ‘जन आंदोलन’ बनाने की कोशिश की है। हमने ऐसी डिजिटल जन उपयोगिताएं निर्मित करने के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाया है जो खुली, समावेशी और अंतर-संचालनीय हैं। इनके कारण सामाजिक सुरक्षा, वित्तीय समावेशन और इलेक्ट्रॉनिक भुगतान जैसे विविध क्षेत्रों में क्रांतिकारी प्रगति हुई है।
इन सभी कारणों से भारत के अनुभव संभावित वैश्विक समाधानों के लिए अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं। जी-20 अध्यक्षता के दौरान, हम भारत के अनुभव, ज्ञान और प्रारूप को दूसरों के लिए, विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए एक संभावित टेम्पलेट के रूप में प्रस्तुत करेंगे।
हमारी जी-20 प्राथमिकताओं को, न केवल हमारे जी-20 भागीदारों, बल्कि दुनिया के दक्षिणी हिस्से में हमारे साथ चलने वाले देशों, जिनकी बातें अक्सर अनसुनी कर दी जाती हैं, के परामर्श से निर्धारित किया जाएगा।
हमारी प्राथमिकताएं हमारी ‘एक पृथ्वी’ को संरक्षित करने, हमारे ‘एक परिवार’ में सद्भाव पैदा करने और हमारे ‘एक भविष्य’ को आशान्वित करने पर केंद्रित होंगी।
अपने प्लेनेट को पोषित करने के लिए, हम भारत की प्रकृति की देखभाल करने की परंपरा के आधार पर स्थायी और पर्यावरण-अनुकूल जीवन शैली को प्रोत्साहित करेंगे।
मानव परिवार के भीतर सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए हम खाद्य, उर्वरक और चिकित्सा उत्पादों की वैश्विक आपूर्ति को गैर-राजनीतिक बनाने की कोशिश करेंगे, ताकि भू-राजनीतिक तनाव मानवीय संकट का कारण न बनें। जैसा हमारे अपने परिवारों में होता है, जिनकी जरूरतें सबसे ज्यादा होती हैं, हमें उनकी चिंता सबसे पहले करनी चाहिए।
हमारी आने वाली पीढ़ियों में उम्मीद जगाने के लिए, हम बड़े पैमाने पर विनाश के हथियारों से पैदा होने वाले जोखिमों को कम करने और वैश्विक सुरक्षा बढ़ाने पर सर्वाधिक शक्तिशाली देशों के बीच एक ईमानदार बातचीत को प्रोत्साहन प्रदान करेंगे।
भारत का जी-20 एजेंडा समावेशी, महत्वाकांक्षी, कार्रवाई-उन्मुख और निर्णायक होगा। आइए, हम भारत की जी-20 अध्यक्षता को संरक्षण, सद्भाव और उम्मीद की अध्यक्षता बनाने के लिए एकजुट हों। आइए, हम मानव-केंद्रित वैश्वीकरण के एक नये प्रतिमान को स्वरूप देने के लिए साथ मिलकर काम करें।
G20 India: आज से भारत के हाथों में जी-20 की अध्यक्षता- पीएम नरेंद्र मोदी का लेख
भारत की जी-20 की अध्यक्षता दुनिया में एकता वित्तीय साधन कैसे काम करते हैं की इस सार्वभौमिक भावना को बढ़ावा देने की ओर काम करेगी।
सांकेतिक फोटो।
नरेंद्र मोदी
इसलिए हमारा थीम- ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ है। यह सिर्फ एक नारा नहीं है। यह मानवीय परिस्थितियों में उन हालिया बदलावों को ध्यान में रखता है, जिनकी सराहना करने में हम सामूहिक रूप से विफल रहे हैं।
जी-20 की पिछली सत्रह अध्यक्षताओं के दौरान वृहद आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने, अंतरराष्ट्रीय कराधान को तर्कसंगत बनाने और विभिन्न देशों के सिर से कर्ज के बोझ को कम करने समेत कई महत्त्वपूर्ण परिणाम सामने आए। हम इन उपलब्धियों से लाभान्वित होंगे तथा यहां से और आगे की ओर बढ़ेंगे।
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अब, जबकि भारत ने इस महत्त्वपूर्ण पद को ग्रहण किया है, मैं अपने आपसे यह पूछता हूं- क्या जी-20 अभी भी और आगे बढ़ सकता है? क्या हम समग्र मानवता के कल्याण के लिए मानसिकता में मूलभूत बदलाव लाने की पहल कर सकते हैं? मेरा विश्वास है कि हां, हम ऐसा कर सकते हैं।
हमारी परिस्थितियां ही हमारी मानसिकता को आकार देती हैं। पूरे इतिहास के दौरान मानवता का जो स्वरूप होना चाहिए था, उसमें एक प्रकार की कमी दिखी। हम सीमित संसाधनों के लिए लड़े, क्योंकि हमारा अस्तित्व दूसरों को उन संसाधनों से वंचित कर देने पर निर्भर था। विभिन्न विचारों, विचारधाराओं और पहचानों के बीच, टकराव और प्रतिस्पर्धा को ही जैसे आदर्श मान बैठे।
दुर्भाग्य से, हम आज भी उसी शून्य-योग की मानसिकता में अटके हुए हैं। हम इसे तब देखते हैं, जब विभिन्न देश, क्षेत्र या संसाधनों के लिए आपस में लड़ते हैं। हम इसे तब देखते हैं, जब आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति को हथियार बनाया जाता है। हम इसे तब देखते हैं, जब कुछ लोगों द्वारा टीकों की जमाखोरी की वित्तीय साधन कैसे काम करते हैं जाती है, भले ही अरबों लोग बीमारियों से असुरक्षित हों।
कुछ लोग यह तर्क दे सकते हैं कि टकराव और लालच मानवीय स्वभाव है। मैं इससे असहमत हूं। अगर मनुष्य स्वाभाविक रूप से स्वार्थी है, तो हम सभी में मूलभूत एकात्मता की हिमायत करने वाली इतनी सारी आध्यात्मिक परंपराओं के स्थायी आकर्षण को कैसे समझा जाए?
भारत में प्रचलित ऐसी ही एक परंपरा है जो सभी जीवित प्राणियों और यहां तक कि निर्जीव चीजों को भी एक समान ही पांच मूल तत्त्वों- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश के पंचतत्त्व से बना हुआ मानती है। इन तत्त्वों का सामंजस्य- हमारे भीतर और हमारे बीच भी- हमारे भौतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय कल्याण के लिए आवश्यक है।
भारत की जी-20 की अध्यक्षता दुनिया में एकता की इस सार्वभौमिक भावना को बढ़ावा देने की ओर काम करेगी। इसलिए हमारा थीम- ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ है। यह सिर्फ एक नारा नहीं है। यह मानवीय परिस्थितियों में उन हालिया बदलावों को ध्यान में रखता है, जिनकी सराहना करने में हम सामूहिक रूप से विफल रहे हैं।
आज हमारे पास दुनिया के सभी लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त उत्पादन करने के साधन हैं। आज हमें अपने अस्तित्व के लिए लड़ने की जरूरत नहीं है- हमारे युग को युद्ध का युग होने की जरूरत नहीं है। ऐसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए! आज हम जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और महामारी जैसी जिन सबसे बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, उनका समाधान आपस में लड़कर नहीं, बल्कि मिलकर काम करके ही निकाला जा सकता है।
सौभाग्य से, आज की जो तकनीक है, वह हमें मानवता के व्यापक पैमाने पर समस्याओं का समाधान करने का साधन भी प्रदान करती है। आज हम जिस विशाल वर्चुअल दुनिया में रहते हैं, उससे हमें डिजिटल प्रौद्योगिकियों की व्यापकता का भी पता चलता है। भारत इस सकल विश्व का सूक्ष्म जगत है, जहां विश्व की आबादी का छठा हिस्सा रहता है और जहां भाषाओं, धर्मों, रीति-रिवाजों और विश्वासों की विशाल विविधता है।
सामूहिक निर्णय लेने की सबसे पुरानी ज्ञात परंपराओं वित्तीय साधन कैसे काम करते हैं वाली सभ्यता होने के नाते भारत दुनिया में लोकतंत्र के मूलभूत डीएनए में योगदान देता है। लोकतंत्र की जननी के रूप में भारत की राष्ट्रीय सहमति किसी आदेश से नहीं, बल्कि करोड़ों स्वतंत्र आवाजों को एक सुरीले स्वर में मिला कर बनाई गई है।
आज, भारत सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था है। हमारे प्रतिभाशाली युवाओं की रचनात्मक प्रतिभा का पोषण करते हुए, हमारा नागरिक-केंद्रित शासन माडल एकदम हाशिए पर खड़े लोगों का भी खयाल रखता है। हमने राष्ट्रीय विकास को ऊपर से नीचे की ओर के शासन की कवायद नहीं, बल्कि एक नागरिक-नेतृत्व वाला ‘जन आंदोलन’ बनाने की कोशिश की है।
हमने ऐसी डिजिटल जन उपयोगिताएं निर्मित करने के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाया है जो खुली, समावेशी और अंतर-संचालनीय हैं। इनके कारण सामाजिक सुरक्षा, वित्तीय समावेशन और इलेक्ट्रानिक भुगतान जैसे विविध क्षेत्रों में क्रांतिकारी प्रगति हुई है। इन सभी कारणों से भारत के अनुभव संभावित वैश्विक समाधानों के लिए अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं।
जी-20 अध्यक्षता के दौरान, हम भारत के अनुभव, ज्ञान और प्रारूप को दूसरों के लिए, विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए एक संभावित टेम्प्लेट (सांचे) के रूप में प्रस्तुत करेंगे। हमारी जी-20 प्राथमिकताओं को न केवल हमारे जी-20 भागीदारों, बल्कि दुनिया के दक्षिणी हिस्से में हमारे साथ चलने वाले देशों, जिनकी बातें अक्सर अनसुनी कर दी जाती है, के परामर्श से निर्धारित किया जाएगा।
हमारी प्राथमिकताएं हमारी ‘एक पृथ्वी’ को संरक्षित करने, हमारे ‘एक परिवार’ में सद्भाव पैदा करने और हमारे ‘एक भविष्य’ को आशान्वित करने पर केंद्रित होंगी।अपने प्लेनेट (ग्रह) को पोषित करने के लिए, हम भारत की प्रकृति की देख-भाल करने की परंपरा के आधार पर स्थायी और पर्यावरण-अनुकूल जीवन शैली को प्रोत्साहित करेंगे।
मानव परिवार के भीतर सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए हम खाद्य, उर्वरक और चिकित्सा उत्पादों की वैश्विक आपूर्ति को गैर-राजनीतिक बनाने की कोशिश वित्तीय साधन कैसे काम करते हैं करेंगे, ताकि भू-राजनीतिक तनाव मानवीय संकट का कारण न बनें। जैसा हमारे अपने परिवारों में होता है, जिनकी जरूरतें सबसे ज्यादा होती हैं, हमें उनकी चिंता सबसे पहले करनी चाहिए।
हमारी आने वाली पीढ़ियों में उम्मीद जगाने के लिए, हम बड़े पैमाने पर विनाश के हथियारों से पैदा होने वाले जोखिमों को कम करने और वैश्विक सुरक्षा बढ़ाने पर सर्वाधिक शक्तिशाली देशों के बीच एक ईमानदार बातचीत को प्रोत्साहन प्रदान करेंगे।भारत का जी-20 एजंडा समावेशी, महत्त्वाकांक्षी, कार्रवाई-उन्मुख और निर्णायक होगा।
आइए, हम भारत की जी-20 अध्यक्षता को संरक्षण, सद्भाव और उम्मीद की अध्यक्षता बनाने के लिए एकजुट हों।आइए, हम मानव-केंद्रित वैश्वीकरण के एक नए प्रतिमान को स्वरूप देने के लिए साथ मिलकरकाम करें।