घाटे का सौदा

किसान लहसुन का दाम कम होने से विरोध प्रर्दशन भी करते रहे हैं। रतलाम में तो दाम को लेकर जबरदस्त किसानों ने विरोध जताया था। किसानों का आरोप था कि व्यापारी मनमर्जी से दाम तय कर रहे हैं। उज्जैन में कृषि मंत्री का पुतला दहन किसानों ने किया था तो वहीं देवास में लहसुन की शव यात्रा निकाल चुके है। कुछ इसी तरह के हाल अन्य मंडियों में भी रहे हैं।
बड़े घाटे का सौदा है ये सांस लेना भी बढी है उम्र | Nojoto
बड़े घाटे का सौदा है ये सांस लेना भी बढी है उम्र ज्यों ज्यों, जिंदगी कम होती जाती है!!
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घाटे का सौदा साबित हो रही लहसुन की खेती, लागत भी नहीं निकाल पा रहा अन्नदाता
उत्पादन कम, लागत बढऩे व बाजार भाव अन्य सालों की अपेक्षा कम होने के कारण किसानों को इस साल लहसुन की खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है। किसानों ने मांग की है कि गत वर्ष की अपेक्षा इस साल भी बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत कम से कम 4 हजार रुपए प्रति क्विंटल के भाव में लहसुन की खरीद जल्द से जल्द शुरू होनी चाहिए।
4 बीघा में 65 कट्टे लहसुन का उत्पादन, खर्चा 90 हजार
मंडी में उपज बेचने आए सांगोद के किसान निजामुद्दीन ने बताया कि उन्होंने पुश्तैनी 4 बीघा जमीन में लहसुन की खेती की। सालभर पूरा परिवार खेती में लगा रहा। अब तक 90 हजार रुपए खर्च हो चुके हैं। वहीं मंडी में लहसुन 1825 रुपए प्रति क्विंटल के भाव में बिका। 65 हजार का लहसुन निकला है। ऐसे में मुनाफा निकलना तो दूर लागत भी पूरी नहीं निकल पाई है।
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2012 व 17 में हुई थी लहसुन की खरीद
सूत्रों ने बताया कि वर्ष 2012 में लहसुन के भाव औंधे मुंह गिरने पर बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत 1600 रुपए प्रति क्विंटल के भाव में लहसुन की खरीद हुई थ्ीा। गत वर्ष भी बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत राजफेड के माध्यम से 3200 रुपए प्रति क्विंटल के भाव में लहसुन खरीदा गया था।
MP: घाटे का सौदा बनी किसानों के लिए लहसुन, फेंक रहे नदियों में, कहा 1 रूपये किलो मिल रहे दाम, भाड़ा भी नहीं मिल रहा
MP Latest News: आम तौर पर 100 से 150 रूपये किलो के दाम से बिकने वाली लहसुन के दाम (Lahsun Price) न के बराबर होने से किसान इसे घाटे का सौदा बताते हुए नदियों में फेंक रहे हैं। खबरों के तहत एमपी के मालवा-निमाड़ के किसान मंडियों में लहसुन ला रहे और इसे वहीं छोड़कर जाना बेहतर समझ रहे हैं। धार के बदनावर में आहत तीन किसानों ने नागदा गांव के पास चामला नदी में 100 कट्टे लहसुन फेंक दिये।
75 पैसे से 1 रूपये किलो मिल रहा दाम
धार के किसानों को कहना है कि वे इंदौर मंडी में लहसुन बेचने गए थे। वहां 20 क्विंटल लहसुन के सिर्फ 2000 रुपए ही मिले। यानी 1 रुपए किलो। 1800 रुपए तो भाड़ा और हम्माली में ही खर्च हो गए। इसके अलावा लहसुन की साफ-सफाई का अलग खर्च। ऐसे में उनकी लागत तक नही निकल पाई। उनका कहना है कि बारिश से लहसुन खराब हो रही और दाम मिलने की उम्मीद भी नजर नही आ रही। जिससे लहसुन को फेंकना ही उन्होने उचित समझा।
मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार में घाटे का सौदा यह है किसानो की स्थिति और किसानो की आय दोगुनी करने के दावे का सच…
किसान को उसकी उपज का उचित दाम नहीं मिल पा रहा है और वो निरंतर क़र्ज़ के दलदल में फँसता जा रहा है। pic.twitter.com/C17bWC9O1A
— Kamal Nath (@OfficeOfKNath) August 24, 2022मंडियों में पहुंच रही बम्पर लहसुन
जानकारी के तहत इन दिनों मंडियों में बम्पर लहसुन पहुंच रही हैं। खबरों के तहत 5 से 23 अगस्त तक एमपी की मंडियों में 2 लाख 50 हजार क्विंटल लहसुन पहुंची है। इसके पूर्व भी लहसुन की जबरदस्त आवक तो बढ़ी है, लेकिन कीमत घटी है।
जानकारी के तहत लहसुन के दामों की इतनी खराब हालत केवल इंदौर, मंदसौर की मंडी में नहीं है बल्कि सीहोर, जावरा, नीमच, रतलाम, पिपल्या की मंडियों की भी यही स्थिति है। जिससे यहां के किसानों के लिए इस वर्ष लहसुन घाटे का सौदा बन गया है।
घाटे का सौदा बन कर रह गई मटर की खेती, लागत मूल्य भी नहीं जुटा पा रहे किसान
ऐलनाबाद (सुरेंद्र सरदाना): एक तरफ तो सरकार किसानों की आय दोगुनी करने की मुहिम चला रही है और किसानों को सब्जी बीजने के लिए प्रेरित कर आर्थिक रूप से सहयोग कर रही है, लेकिन धरातल की तस्वीर अन्नदाता के लिए शुभ संकेत नहीं दे रही है, कुछ अलग ही रूप दिखा रही है। सब्जियों की खेती करने वाले किसान लागत मूल्य भी नहीं जुटा पा रहे हैं। इस वर्ष एकाएक ही गर्मी से मटर की फसल के उत्पादन पर पड़े विपरीत असर के चलते उत्पादन गत वर्ष के मुकाबले लगभग आधा है यानी जो उत्पादन गत वर्ष 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर था वही उत्पादन इस वर्ष घटकर 75 से 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रह गया है।
न केवल उत्पादन कम हुआ है बल्कि दो दिनों में पड़ी गर्मी से मटर की फसल के एकदम बदले रंग से प्रति किलो दाम भी मंडियों में कम मिलने से अन्नदाता मायूस हैं। गांव तलवाड़ा खुर्द के किसान रेशम सिंह ने बताया कि गत वर्ष उन्हें उन्हें मटर की फसल से काफी आर्थिक रूप से फायदा हुआ था। गत वर्ष उत्पादन व मंडी में भाव दोनों ही ठीक थे, लेकिन इस वर्ष मटर की उपज से लाभ मिलना तो दूर की बात है, लागत मूल्य भी निकालने में उन्हें काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है।
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घाटे का सौदा साबित हो रही है खेती: डीजल की बढ़ती महंगाई से किसानों की टूटी रही कमर, 5 साल में डेढ़ से दोगुनी महंगी हुई किसानी
बिहार के गोपालगंज जिले में कृषि संसाधनों के मूल्यों में लगातार हो रही वृद्धि से खेती की लागत लगातार बढ़ रही है। पिछले पांच वर्षों में डीजल, खाद, बीज, मजदूरी की दर व परिवहन खर्च में चालीस से पचास फीसदी तक इजाफा हुआ है। लेकिन, किसानों की मेहनत व पूंजी के लिहाज उत्पादित अनाज का लाभकारी मूल्य नहीं मिल पा रहा है।
इस पर तुर्रा यह कि बाढ़, ओलावृष्टि व अतिवृष्टि से फसलों के बर्बाद होने से किसानों की पूंजी भी डूब जा रही है। घाटे का सौदा पिछले पांच वर्षों में मौसम की अनियमितता व प्राकृतिक आपदाओं के प्रकोप से जिले के किसान परेशान हैं।
पांच वर्षों में डीजल की कीमत में प्रति लीटर 40 रुपए का इजाफा : पिछले पांच वर्षों के दौरान डीजल के दाम में प्रति लीटर चालीस रुपए की वृद्धि हुई है। वर्ष 2017 में डीजल की कीमत 62.77 रुपए प्रति लीटर घाटे का सौदा थी। फिलहाल 102.52 रुपए प्रति लीटर डीजल बिकने से किसानों के लिए खेत की जुताई,पंप सेट से सिंचाई,थ्रेसिंग व खेत से खलिहान व घर तक अनाज की ढुलाई खर्च भी काफी बढ़ गया है।