शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान

डिलीवरी ट्रेडिंग क्या है ? [निवेश करने के प्रक्रिया की जानकारी]
दोस्तों, क्या आप शेयर बाजार में निवेश करना चाहते है लेकिन बाजार के प्रतिदिन उतर चढ़ाव का जोखिम नहीं लेना चाहते है ? आपके लिए डिलीवरी ट्रेडिंग (Delivery Trading) एक बेहतर विकल्प है। यह निवेशकों में बहुत लोकप्रिय और सुरक्षित है।
डिलीवरी ट्रेडिंग
डिलीवरी ट्रेडिंग क्या है ?
डिलीवरी ट्रेडिंग में निवेशक शेयर को अपने डीमैट खाता में जमा करता है। डीमैट खाता (Demat Account) में निवेशक बिना किसी समय अवधि तक होल्ड करके रख सकता है और फिर इच्छानुसार कभी भी अपने शेयर को बेच सकता है। जैसे इंट्राडे ट्रेडिंग में, ट्रेडर्स को एक दिन के अंदर ही शेयर खरीदने या बेचने की प्रतिबद्धता है, लेकिन डिलीवरी ट्रेडिंग में शेयर खरीदने या बेचने के लिए कोई परिसीमा नहीं है। निवेशक दो दिन के अंदर या दो वर्षो बाद भी अपने शेयर को बेच सकता है।
निवेशक के पास पूर्ण अधिकार होता है की वह अपने इच्छा के अनुसार अपने शेयर को होल्ड या बेच सकता है। डिलीवरी आधारित ट्रेडिंग ऐसे निवेशकों के लिए अच्छा होता है जो ज्यादा जोखिम नहीं लेना चाहते है और लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट स्टॉक में मुनाफा बनाना चाहते हैं। डिलीवरी ट्रेडिंग में निवेशक को शेयर खरीदने से पहले उस कीमत के बराबर पैसे तैयार रखने होते है।
उदाहरण : यदि आप XYZ कंपनी के 100 शेयर खरीद रहे है जिसकी कीमत ₹ 15000 है तो आपके डीमैट खाता में ₹ 15000 की कैश रखना होगा। और यदि आप XYZ कंपनी के 110 शेयर बेचना (Sell) चाहते है तो 110 शेयर आपके डीमैट खाता में होना चाहिए।
डिलीवरी ट्रेडिंग में निवेशक विभिन्न प्रकार से निवेश कर सकता है जो निम्नलिखित है
- इक्विटी
- फॉरेक्स
- कमोडिटी
- डेरीवेटिव
- म्यूच्यूअल फंड्स
डिलीवरी ट्रेडिंग के नियम
आप डिलीवरी ट्रेडिंग में निवेश करना चाहते है तो आपको कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान देना आवश्यक है। यह आपको सही शेयर खरीदने में मदद करेगा। आप शेयर बाजार में नए है और किसी निपुण निवेशक सलाहकार की मदद चाहिए तो आप CapitalVIa Global Research Limited से संपर्क कर सकते है। आईये जानते है कुछ बुनियादी नियम के बारें में जिसका पालन शेयर खरीदते समय करना चाहिए।
- सबसे पहले आपको कुछ कंपनी के fundamental Analysis के अध्यन करने के बाद एक सूचि तैयार करे।
- भविष्य में उसके विकास, बैलेंस शीट आदि को ध्यान में रखकर अपने wishlist में शामिल करे।
- अपने निवेश के जोखिम के अनुसार अपने डीमैट खाता में उतना धन संचित करे।
- सही शेयर की कीमत देखकर शेयर को ख़रीदे।
- बेचने के लिए सही समय की प्रतीक्षा करे ताकि आपको नुकसान नहीं हो।
- टारगेट और स्टॉप लॉस अवश्य लगाए।
- आपको पैसे अलग -2 कंपनियों में निवेश करे जिससे आपका जोखिम काम और रिटर्न्स अच्छा प्राप्त होगा।
डिलीवरी ट्रेडिंग कैसे करें?
कोई भी निवेशक डिलीवरी ट्रेडिंग को प्रक्रिया का चयन तभी करता है जब उसको long term के लिए निवेश करना है। डिलीवरी ट्रेडिंग में अपने कंपनियों के शेयर कोई खरीदते है और अपने डीमैट खाता में होल्ड करते है। आप अपने शेयर को जब अपने डीमैट खाता में रखना चाहे तो रख सकते है और जब आपको अपने शेयर कर अच्छा रिटर्न्स मिल रहा है तो आप उसको बेच सकते है। शेयर बेचने का निर्णय आप पर निर्भर है। अन्य इंट्राडे ट्रेडिंग के तरह आप बाध्य नहीं है।
डिलीवरी ट्रेडिंग में, आपके पास पर्याप्त धनराशि होनी चाहिए तभी आप शेयर को खरीद सकते है और बेचने के लिए भी आपके पास उतने शेयर होने चाहिए। डिलीवरी ट्रेडिंग में यदि आपका रणनीत अच्छी है तो आपको एक निश्चित अंतराल के बाद अच्छा रिटर्न्स प्राप्त होगा।
यदि आप शेयर बाजार में नए और आप सही शेयर खरीदने का निर्णय नहीं सकते है तो आपको सेबी रजिस्टर्ड निवेशक सलाहकार के परामर्श से आपको शेयर को खरीदने चाहिए। इससे शेयर बाजार के जोखिम काम हो सकता है।
डिलीवरी ट्रेडिंग के फायदे
डिलीवरी आधारित ट्रेडिंग सरल और सुरक्षित निवेश है इसके साथ -2 अन्य सुविधाएं है।
लॉन्ग टर्म निवेश
डिलीवरी आधारित ट्रेडिंग का सबसे बड़ा फ़ायदा है की आप शेयर को होल्ड कर सकते है, आप किसी समय अंतराल में बाध्य नहीं है।
उदाहरण : मान लीजिए कि अपने किसी कंपनी के शेयर में निवेश किया है और इसे होल्ड रखते हैं। कुछ समय बाद वह कंपनी या व्यवसाय आपको पॉजिटिव रिटर्न्स देता है, तो शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान आप उस इन्वेस्ट में बने रह सकते हैं। लेकिन आपको कोई लाभ दिखाई नहीं देता है, तो आप उस शेयर को कभी भी बेचकर अपने पोजीशन से बाहर हो सकते हैं।
सुरक्षित
जब डिलीवरी आधारित ट्रेडिंग के माध्यम से शेयर खरीदते है तो आप वह शेयर बेचने के लिए समय के बाध्य नहीं है। यह आपके जोखिम की संभावना को काम करता है और आपके निवेश को सुरक्षित रखता है।
उदाहरण : मान लीजिए कि अपने किसी कंपनी के शेयर में निवेश किया है और किसी भी कारन से शेयर का दाम अगले दिन गिर जाता है। आप वह शेयर होल्ड रख कर सही समय का इंतज़ार कर सकते हैं। जब शेयर के दाम आपके निवेश किये राशि से ज्यादा है तो आप शेयर बेचकर मुनाफा अर्जित कर सकते है। इसलिए यह शेयर सुरक्षित है।
डिलीवरी आधारित ट्रेडिंग में, आप स्टॉक शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान खरीदने के बाद बोनस के लिए योग्य है। जब भी कंपनी कुछ बोनस शेयरों को रोल आउट करती है, तो निवेशक बोनस का दावा कर सकते हैं।
उच्च लाभ
डिलीवरी आधारित ट्रेडिंग में निवेशकों को शेयर के रिटर्न्स के साथ बोनस भी मिलता है । इसलिए कुछ शेयर में आपके रिटर्न्स से भी ज्यादा रिटर्न्स मिलता है।
डिलीवरी ट्रेडिंग के नुकसान
शेयर बाजार में ट्रेडिंग या निवेश पूर्णतः परिपक्व नहीं होता है डिलीवरी ट्रेडिंग में कुछ नुकसान भी है। आपको निवेश करने से पहले अन्य संभावना का विश्लेषण करना आवश्यक है। यहां डिलीवरी ट्रेडिंग के कुछ नुकसान निम्नलिखित हैं:
पहले से भुगतान
डिलीवरी ट्रेडिंग में, आपको शेयर खरीदने से पहले आपके पास शेयर के दाम का पर्याप्त धनराशि होना चाहिए। निवेशक के लिए कई बार उतना धनराशि रखना मुश्किल हो जाता है और आप अच्छे शेयर खरीदने से वंचित हो जाते है।
अधिक ब्रोकरेज शुल्क
डिलीवरी ट्रेडिंग में आपको ब्रोकरेज शुल्क देना होता है। हालांकि कुछ ब्रोकर कंपनियां ब्रोकरेज शुल्क नहीं लेती है।
दोस्तों, डिलीवरी ट्रेडिंग एक लॉन्ग टर्म निवेश का विकल्प है। निवेशक शेयर को खरीदकर अपने डीमैट खाता में बिना समय अवधि के होल्ड करके रख सकता है शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान और कभी भी बेच सकता है।
डिलीवरी ट्रेडिंग में निवेश करने के लिए कुछ मुलभुत नियमों का पालन करना आवश्यक है यदि आप सही शेयर खरीदने का निर्णय नहीं ले सकते है तो आपको सेबी रजिस्टर्ड निवेशक सलाहकार के परामर्श से निवेश कर सकते है। निवेशक को सदैव अलग-2 कंपनियों के शेयर में निवेश करना चाहिए यह आपके जोखिम को कम करता है।
अपने निवेश करने के चयन प्रक्रिया के बारें में जानकारी प्राप्त किया और साथ ही डिलीवरी ट्रेडिंग के फ़ायदे और नुकसान के बारें में विस्तृत रूप से समझे।
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ITR Filing: कैपिटल मार्केट से होने वाली Income की जानकारी इनकम टैक्स रिटर्न में देना जरूरी
अगर आपकी कमाई शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन है तो आपको 15 फीसदी टैक्स देना होगा, जबकि अगर आपकी कमाई लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन है तो 1 लाख से अधिक की रकम पर 10 फीसदी का टैक्स देना होगा.
Updated on: Jul 28, 2022 | 1:47 PM
शेयरों के लेन-देन से दो तरह के कैपिटल गेन होते हैं, पहला है शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन और दूसरा है लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन. एक साल से कम की अवधि में हुई कमाई को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन कहते हैं और एक साल या उससे अधिक की अवधि में हुई कमाई को शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन कहते हैं. 31 जुलाई को इनकम टैक्स रिटर्न भरने की मियाद खत्म होने जा रही है. इसलिए हम आपके लिए इससे जुड़ी काम की खबर लेकर आए हैं. मसलन, अगर आपकी कैपिटल मार्केट से इनकम होती है, तो इसकी जानकारी इनकम टैक्स रिटर्न में देनी जरूरी है.
वहीं, एक ट्रेडर के रूप में आपको लॉस हुआ है या प्रॉफिट, आपके लिए टैक्स भरना जरूरी है. ज्यादातर लोगों को लगता है कि उन्हें नुकसान हुआ है, इसलिए उनके लिए टैक्स भरना जरूरी नही है. ऐसा करने पर आपको आयकर विभाग से नोटिस मिल सकता है. ध्यान रखना चाहिए कि टैक्स पीएंडएल रिपोर्ट में स्पेकुलेटिव इक्विटी इंट्राडे ट्रेड्स, नॉन स्पेकुलेटिर एफएंडअ ट्रेड, डिलिवरी ट्रेड्स से कैपिटल गेन और चार्जेस, टैक्स आदि सब कुछ अलग-अलग होता है.
समझें शेयर बाजार की कमाई को
शेयर बाजार से हुई शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान कमाई पर लगने वाले टैक्स से पहले से समझना जरूरी है कि शेयर बाजार से कितने तरह के फायदे होते हैं. शेयरों के लेन-देन से दो तरह के कैपिटल गेन होते हैं, पहला है शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन और दूसरा है लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन. 1 साल से कम की अवधि में हुई कमाई को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन कहते हैं और एक साल या उससे अधिक की अवधि में हुई कमाई को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन कहते हैं.
अब इंट्रा-डे ट्रेडिंग के बारे में जान लेते हैं. जैसा कि नाम से ही साफ है कि ये कमाई एक ही दिन में होती है. यानी सुबह से शाम तक के वक्त में आप शेयर बाजार में पैसे लगाकर उसे बेच देते हैं और फायदा कमाते हैं, तो उसे इंट्रा-डे ट्रेडिंग कहते हैं और इससे हुआ फायदा शॉर्ट टर्म कैटिपल गेन होता है. ऐसे में उन्हें अपने मुनाफे पर 15 फीसदी का इनकम टैक्स चुकाना होगा. ध्यान रहे कि इंट्रा-डे से हुई कमाई को स्पेक्युलेटिव बिजनेस के तौर पर देखा जाता है, इसलिए आईटीआर फाइल करते वक्त आपको आईटीआर-3 फॉर्म का इस्तेमाल करना होगा.
कब भरना होता है आईटीआर-2
वहीं, अगर आप शेयर बाजार में एक दिन से अधिक के लिए शेयर खरीदते हैं तो उससे हुई कमाई के लिए आपको आईटीआर-2 फॉर्म भरना होगा. अगर आपकी कमाई शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन है तो आपको 15 फीसदी टैक्स देना होगा, जबकि अगर आपकी कमाई लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन है तो 1 लाख से अधिक की रकम पर 10 फीसदी का टैक्स देना होगा. बता दें कि 1 लाख रुपये तक के लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर आयकर में छूट दिए जाने का प्रावधान है.
कैपिटल ऐसेट्स जैसे म्यूचुअल फंड, स्टॉक्स, सोने और अचल संपत्ति से मिलने वाला लाभ कैपिटल गेन होता है. टैक्सपेयर्स को आईटीआर फॉर्म के CG शेड्यूल में कैपिटल गेन्स को भरना होता है. टैक्स एक्सपर्ट बताते हैं कि ऐसे टैक्सपेयर्स जो टैक्स के दायरे में नहीं आते हैं लेकिन उन्हें लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन मिला है और उसकी सीमा छूट की लिमिट से ज्यादा है तो उन्हें आईटीआर जरूर भरना चाहिए.
कैपिटल गेन्स कैलकुलेट करने के लिए एसेट के खरीद मूल्य से इसके बिक्री मूल्य को घटाना होगा. हालांकि यह तरीका अलग-अलग ऐसेट्स के लिए अलग हो सकता है. कैपिटल गेन्स पर टैक्स का रेट इस बात पर भी निर्भर करता है कि लाभ कम अवधि के लिए है या फिर लंबी अवधि के लिए.
Stock market: शेयर मार्केट से हुई इनकम पर कब कितना देना पड़ता है टैक्स, जानिए सबकुछ
Stock market tax rule: शेयर मार्केट में इनकम टैक्स रूल शेयर ट्रांजैक्शन पर किस तरह इनकम हुई है, उसके मुताबिक लागू होता है.
Tax rule on stock market transections: शेयर बाजार में इन्वेस्टमेंट से आप एक झटके में मोटी कमाई कर सकते हैं. इसमें सबसे बड़ा फैक्टर काम करता है कि आपके पास रिस्क लेने की क्षमता कितनी है. बहरहाल, यहां एक जरूरी बात यह जानना जरूरी है कि शेयर बाजार में शेयरों की खरीद-बिक्री और उससे होने वाली इनकम भी टैक्स के दायरे में आती है. शेयरों की बिक्री से होने वाली इनकम या लॉस ‘कैपिटल गेन्स’ के दायरे में आता है.
ब्रोकरेज फर्म एंजल ब्रोकिंग की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, शेयर मार्केट में इनकम टैक्स रूल शेयर ट्रांजैक्शन पर किस तरह इनकम हुई है, उसके मुताबिक लागू होता है. बाजार से दो तरह की इनकम, शॉर्ट टर्म कैनिटल गेन्स और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स, होती है.
शॉर्ट टर्म कैपिटेल गेन्स टैक्स ( Short term Capital gains tax)
शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स उसे कहते हैं, जब शेयर मार्केट में लिस्टेड शेयरों को खरीदने के 12 महीनों के अंदर बेच दिया जाता है. इससे होने वाली इनकम पर 15 फीसदी की दर से शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स देना होता है. इसमें चाहे आप किसी भी टैक्स स्लैब में आते हो. अगर आपको शॉर्ट टर्म कैपिटल लॉस होता है, तो आप इसे अगले 8 साल तक कैरी फॉर्वर्ड कर सकते हैं.
लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स (Long term Capital gains tax)
शेयर मार्केट में लिस्टेड शेयरों को खरीदने से 12 महीने के बाद बेचने पर लाभ होता है, तो यह लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स के दायरे में आता है. इस हालत में शेयरों की बिक्री करने वाले को इस कमाई पर उसे टैक्स देना पड़ता है. इसमें 10 फीसदी की दर से इनकम टैक्स देना पड़ता है. इसका मतलब कि अगर आप एक साल के बाद शेयर बेचते हैं और उस पर इनकम होती है तो 10 फीसदी की दर से लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स देना होगा. अगर आपको लॉन्ग टर्म कैपिटल लॉस होता है तो आप नुकसान को अगले 8 साल कैरी फॉर्वर्ड कर सकते हैं.
सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स (STT)
सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स (STT) को 2004 में इनकम टैक्स शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान रूल में शामिल किया गया था. स्टॉक एक्सचेंज में बेचे और खरीदे जाने वाले शेयरों पर सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स यानी STT लगता है. जब भी शेयर बाजार में शेयरों की खरीद-बिक्री की जाती है, इस पर यह टैक्स देना पड़ता है. दिसंबर 2017 से इक्विटी ट्रांजैक्शन (खरीद या ब्रिकी) पर 0.1 फीसदी की दर से एसटीटी देना होता है. इंट्राडे में शेयरों की बिक्री पर सेलर को 0.025 फीसदी टैक्स देना पड़ता है. हालांकि, इंट्राडे में में सिक्युरिटीज की खरीद पर कोई टैक्स नहीं देना होता है.
डिविडेंड डिस्ट्रिब्यूशन टैक्स (DDT)
बजट 2020 से पहले जो कंपनियां शेयरधारकों को डिविडेंट एलान करती थीं, उन्हें डीडीटी देना होता था. नियमों के मुताबिक 31 मार्च 2020 तक डीडीटी का रेट 20.56 फीसदी था. बजट 2020 में किए गए प्रस्ताव के मुताबिक, डिविडेंड हासिल करने वाले निवेशक को अपने टैक्स ब्रैकेट के मुताबिक टैक्स रेट से डीडीटी का भुगतान करना होता है. इसमें डिविडेंड से चाहे आपको कितनी भी रकम हासिल हुई हो. पहले, टैक्सपेयर को अगर 10 लाख रुपये से ज्यादा डिविडेंड मिलता था, तो उसे डिविडेंड पर 10 फीसदी की दर से टैक्स देना पड़ता था.
ITR-2 किसे भरना है?
इनकम टैक्स रिटर्न-2 या ITR-2 फार्म उसे भरने की जरूरत पड़ती है, अगर इंडिविजिुअल का इन्वेस्टमेंट कैश सेगमेंट में के दायरे में आता है.
ITR-3 कब भरना है?
इनकम टैक्स रिटर्न - 3 या ITR-3 फार्म उस टैक्सपेयर्स को फाइल करना है, जिसका इन्वेस्टमेंट डेरिवेटिव सेगमेंट के दायरे में आता है. एग्रेसिव इंट्राडे ट्रेडर्स इस कैटेगरी में आते हैं.
आप भी करते हैं 10 रुपये से कम वाले शेयर में निवेश, जानें- पेनी स्टॉक के रिस्क और फायदे?
बाजार में उतार-चढ़ाव के समय में सबसे ज्यादा नुकसान पेनी स्टॉक्स के निवेशकों को उठाना पड़ता है. कई बार ऐसा भी होता है कि एक बार में सारे पैसे डूब जाते हैं. साथ ही कई पेनी स्टॉक्स को ऑपरेट करने वाले भी निवेशकों का ध्यान आकर्षित करने के लिए भी शेयर खरीद कर दाम बढ़ाते हैं.
सरबजीत कौर
- नई दिल्ली,
- 19 अक्टूबर 2021,
- (अपडेटेड 19 अक्टूबर 2021, 9:18 PM IST)
- पेनी स्टॉक्स से निवेशक को दूर रहने की सलाह
- बेस्ट क्वालिटी शेयरों में निवेश करना चाहिए
- बाजार में गिरावट आने से पेनी स्टॉक्स सबसे ज्यादा प्रभावित
पिछले दो साल से शेयर बाजार में आ रही तेजी ने कई नए निवेशकों को निवेश के लिए आकर्षित किया है. ऐसे में सिर्फ लंबी अवधि के निवेशक ही नहीं, बल्कि ट्रेडिंग करने वालों को भी काफी फायदा मिल रहा है. लेकिन कई लोग जो बाजार में नए हैं उनके के पास सेविंग के ज्यादा पैसे नहीं होते हैं. ऐसे में वो लोग कम कीमत वाले शेयरों में पैसा लगाना चाहते हैं. जिनमें निवेश से उन्हें पैसे भी ज्यादा न लगाने पड़े और फायदा भी ज्यादा मिल जाए. लेकिन ऐसे शेयरों में मुनाफे से ज्यादा रिस्क बहुत होता है. इन्ही कम कीमत वाले शेयरों को जिनका मार्केट कैप भी कम होता है, उन्हें हम पेनी स्टॉक या भंगार शेयर कहते हैं. साधारण भाषा में जानें तो ज्यादातर जिन कंपनियों के शेयर 10 रुपये या उससे कम के होते हैं उन्हें पेनी स्टॉक्स कहा जाता है.
कितना रिस्क है:
पेनी स्टॉक्स सस्ते जरूर होते हैं लेकिन इनमें रिस्क बहुत ज्यादा होता है.
एस्कॉर्ट सिक्योरिटी के रिसर्च हेड- आसिफ इकबाल का मानना है कि जैसे कि-बाजार अपने नए स्तर को छू रहा है और अबतक की सबसे ज्यादा तेजी है. ऐसे में निवेशकों को संभलकर रहने की जरूरत और बेस्ट क्वालिटी शेयरों पर निवेश करना चाहिए. अगर बाजार में यहां से गिरावट आई तो पेनी स्टॉक्स में सबसे ज्यादा नुकसान होगा. ये एक तरह से बर्निंग ट्रेन में यात्रा करने के समान है. इसलिए, इससे बेहतर हैं कि आप ट्रेन में बोर्ड करने से पहले ही संभल जाएं. पेनी स्टॉक्स में निवेश से पहले कंपनी के गुड मैनेजमेंट, बिजनेस और आउटलुक को देखना बहुत जरूरी है. साथ ही ये देखना अनिवार्य होता है कि कंपनी के पास जीरो डेट या कर्ज ना के बराबर है.'
बाजार में उतार-चढ़ाव के समय में सबसे ज्यादा नुकसान पेनी स्टॉक्स के निवेशकों को उठाना पड़ता है. कई बार ऐसा भी होता है कि एक बार में सारे पैसे डूब जाते हैं. साथ ही कई पेनी स्टॉक्स को ऑपरेट करने वाले भी निवेशकों का ध्यान आकर्षित करने के लिए भी शेयर खरीद कर दाम बढ़ाते हैं. ऐसे समय में निवेशकों को बड़ी बारीकी से पेनी स्टॉक्स के रिस्क और मुनाफे को समझना होगा. बिना सही जानकारी के निवेश करने से भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है.
आसिफ के मुताबिक-‘पेनी स्टॉक्स में 5 फीसदी से ज्यादा निवेश न करें. हमेशा किसी भी स्टॉक में पोजिशन लेने से पहले अपने स्टॉप लॉस को ध्यान में रखकर ही निवेश करें’.
पेनी स्टॉक की कीमत बहुत कम होती है. जिसकी वजह से पेनी स्टॉक्स को ऑपरेट करने वाले लोग शेयर में खुद ही पैसा लगाकर उसकी कीमत बढ़ा देते हैं. जिसकी वजह से बाजार में निवेश रिटर्न और कीमत देखकर और निवेश करने लगते हैं. जिसका कारण है कि पेनी स्टॉक्स के शेयरों में तेजी आने लगती है. ऐसे समय में पेनी स्टॉक्स को ऑपरेट करने वाले शेयर को बेचकर निकल जाते हैं और मुनाफा कमा लेते हैं. इन सब बातों से कई बार नए निवेशक को भारी नुकसान उठाना पड़ता है.
कितना फायदा:
पेनी स्टॉक्स की कीमत कम होने के कारण उनमें निवेश आसान होता है. कई बार बाजार में तेजी का फायदा ज्यादा होता है.
मान लिजिए उदाहरण के तौर पर X निवेशक ने किसी कंपनी के 5 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से 10000 शेयर लिए. इन्वेस्टर ने कुल 50,000 रुपये का निवेश किया. अब शेयर की कीमत एक दिन में प्रति शेयर 10 रुपये तक गई. निवेशक को 5 रुपये प्रति शेयर का मुनाफा हुआ. कुल निवेश 50,000 रुपये का था जो बाजार में आई तेजी से बढ़कर 1,00,000 रुपये हो गया. यानी की एक दिन में 50,000 रुपये से अधिक का फायदा संभव है. बाजार में तेजी के रूख से सबसे ज्यादा फायदे की संभानवा होती है.
प्रॉफिटमार्ट सिक्योरिटी के डायरेक्टर, अविनाश गोरक्षकर के मुताबिक-‘आमतौर पर बाजार में जब तेजी का रुख आता है तो पेनी स्टॉक्स ही सबसे पहले भागते हैं और बाजार के गिरते ही लोग पेनी स्टॉक्स को भूलना शुरू कर देते हैं. ऐसा नहीं है कि सभी पेनी स्टॉक्स में निवेश करना खराब होता है. बिजनेस मॉडल कैसा है, फ्यूचर कैसा है, कितना कर्ज है ये सब पहले देख लें उसके बाद ही उस पेनी स्टॉक में निवेश करें’.
लेकिन कई बार स्थिति काफी अलग होती है. अविनाश का मानना है कि-‘पेनी स्टॉक्स जिनका बिजनेस मॉडल खराब है, जिस पर कर्ज है वो सबसे ज्यादा क्लासिक केस होते हैं जिनकी अंडरलाइंग वैल्यू बिना किसी कारण या सही तर्क के बढ़ जाती है. सबसे बेहतरीन उदाहरण है दीवान हाउसिंग, सुजलॉन, यस बैंक जैसी कंपनियां का, जहां रिटेल इन्वेस्टर्स ने अपने हिस्से को अचानक से बढ़ा दिया और इन कंपनियों के शेयर में इंस्टीट्यूशनल निवेशक आज बाहर हैं.’
अगर किसी के पास सीमित कैपिटल है और जिनके पास 100 फीसदी कैपिटल नुकसान को झेलने की शक्ति न हो तो ऐसे में उन लोगों को पेनी स्टॉक्स में निवेश नहीं करना चाहिए. इससे साफ है कि मुनाफ या रिवार्ड 5x या 20x संभव है. लेकिन, रिस्क की बात करें तो अगर पेनी स्टॉक्स सही परफॉर्म नहीं करेंगे तो निवेशक को 100 फीसदी कैपिटल नुकसान का सामना करना पड़ सकता है.
आगे अविनाश कहते हैं कि-‘जहां तक पेनी स्टॉक में रिस्क और मुनाफे का सवाल है इसमें कोई मार्जिन की सुरक्षा गारंटी नहीं होती. साथ ही शेयर से जुड़े सभी उतार-चढ़ाव बाजार की खबरों पर निर्भर करता है. बहुत ही कम देखा गया है कि पेनी स्टॉक्स मल्टी बैगर के रूप में सामने आया. सबसे बेहतरीन उदाहरण है Symphony कंपनी का शेयर. कुछ साल पहले Symphony का शेयर 10 रुपये के नीचे था और आज की तारीख में देखें तो कंपनी का शेयर 2000 रुपये का शेयर है. लेकिन, ध्यान रहे कि पेनी स्टॉक्स में सक्कसेस रेट केवल 1 से 2 फीसदी के बीच का ही होता है.’
पेनी स्टॉक्स में निवेश करने से पहले रखें ध्यान:
·पेनी स्टॉक्स में निवेश करना हमेशा जोखिम भरा होता है. इसमें निवेशकों को लाभ से ज्यादा नुकसान का रिस्क होता है.
·लो-लिक्विडिटी की वजह से खरीद-बिक्री में मुश्किल होता है. साथ ही, उतार-चढ़ाव काफी होता है जिसकी वजह से अचानक कीमत के गिरने के निवेशकों को नुकसान सा सामना करना पड़ता है. इसलिए निवेशकों के लिए इन सब बातों का ध्यान देना जरूरी है.
·कई बार निवेशकों कंपनी के बिना किसी भविष्य की योजना को देखे निवेश कर देते हैं. ऐसे में निवेशकों को कंपनी की ग्रोथ का सही अंदाजा नहीं होता है और उन्हें नुकसान झेलना पड़ता है. इसका ध्यान देना बहुत जरूरी है.
·पेनी स्टॉक्स की ऊपर जाने की सीमा नहीं इसलिए गिरावट का भी उतना खतरा रहता है.
·केवल 2-3 शेयरों में निवेश करना बुद्धिमानी, केवल शॉर्ट-टर्म के लिए करें निवेश.
·पेनी स्टॉक से जुड़े अफवाहों पर ना जाएं. साथ ही, जल्दबाजी में निवेश करने के बचें.
·याद रखें, पेनी स्टॉक "उच्च जोखिम वाले" स्टॉक की तरह. खुदरा निवेशकों के लिए,म्यूचुअल फंड्स अधिक सुरक्षित हैं.
·कई बार पेनी स्टॉक ऑपरेट करने वाले शेयर में पैसा लगाकर कीमत बढ़ाते है. जिसके कारण रिटर्न और कीमत से होते हैं निवेशक आकर्षित. इसपर ध्यान दें.
· स्टॉक ऑपरेटर तेजी का फायदा उठाकर बाद में बेच देते हैं शेयर. इसलिए स्टॉक ऑपरेटर की चाल से निवेशक रहें सावधान.
·हमेशा कंपनी की ग्रोथ, योजनाओं को ध्यान में रखकर करें निवेश. साथ ही, बिजनेस मॉडल, फ्यूचर, कर्ज देखकर करें पेनी स्टॉक में निवेश
·पेनी स्टॉक्स में अगर ट्रेडिंग कर रहें हैं तो बच कर रहें. लंबी अवधि के निवेशक हमेशा रहें दूर.
लोगों को यही सलाह है कि वो पेनी स्टॉक्स में अगर ट्रेडिंग कर रहे हैं तो बच कर रहें और कोई लालच ना करें. बिना स्टॉपलॉस के ट्रेड ना करें और अपना सौदा हमेशा टारगेट के पूरा होते ही काट लें वरना भारी नुकसान बाद में झेल सकते हैं. अच्छे निवेशकों को यही सलाह है कि पेनी स्टॉक्स में निवेश से दूर रहें और फंडामेंटल मजबूत कंपनियों में निवेश करें. कंपनी की आर्थिक, बैलेंस शीट जरूर चेक करें. सबसे अहम बात है कि बिना किसी निवेश सलाहकार के कभी निवेश न करें. अगर अधूरे ज्ञान के साथ आप निवेश करेंगे तो आपको भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. इसलिए हमेशा समझदारी से सोच-समझकर निवेश करें.
ट्रेडिंग क्या होती है? | ट्रेडिंग कैसे करें?
दोस्तों आप में से बहुत से लोग स्टॉक मार्केट में शेयर्स को खरीदने और बेचने का काम करते होंगे लेकिन क्या आपको पता है कि ट्रेडिंग क्या होती है और इसके बारे में पूरी जानकारी है अगर नही?, तो आइये आज हम आपको ट्रेडिंग के बारे में पूरी जानकारी देते है तो जो कैंडिडेट इसके बारे में पूरी जानकारी चाहते है वो हमारे इस आर्टिकल को पूरा जरुर पढ़े.
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ट्रेडिंग क्या है (What is Trading in Hindi)
ट्रेडिंग एक तरह का बिज़नस होता है किसी भी चीज़ को कम दाम में खरीदना और उसके दाम बढ़ जाने पर उसे बेच देना ट्रेडिंग कहलाता है. ट्रेडिंग का मुख्य उद्देश्य किसी भी चीज़ को खरीद कर कम समय में लाभ कमाना होता है, इसीलिए ट्रेडिंग सबसे ज्यादा शेयर मार्किट में की जाती है और लोग डेली शेयर पर ट्रेडिंग करके हजारों और लाखों रूपये कमाते है.
Stock Market Trading भी इसी तरह का होता है जहाँ हम किसी वस्तु को खरीदते और बिक्री में फायदा लेते हैं ठीक उसी तरह स्टॉक मार्केट में वस्तु की जगह कंपनियों के शेयर को खरीद और बिक्री करके प्रॉफिट कमाया जाता है, ट्रेडिंग का समय 1 साल होता है यानि कि 1 साल के अंदर शेयर को खरीदना और बेचना होता है लेकिन अगर एक साल के बाद खरीदे गये शेयर्स को बेचते हैं तो इसे निवेश कहा जाता है यह एक तरह का ऑनलाइन बेस्ड बिजनेस होता है.
उदाहरण- अगर हम शेयर मार्केट में शेयर्स खरीदते हैं तो कोई दूसरा व्यक्ति उन शेयर्स को बेच रहा होगा. मान लीजिए कि आपने किसी होलसेल स्टोर से कोई सामान 50 खरीदा और उसके बाद में उसका दाम बढ़ने पर आपने उसे 60 रूपये में बेच दिया तो इसे ट्रेडिंग कहा जायेगा. वैसे तो Trading को काफी रिस्की कहा जाता है क्योंकि इसमें किसी को ये नही पता होता है कि कुछ समय बाद शेयर के भाव में क्या उतार-चढाव आएगा.
ट्रेडिंग कैसे करें?
ट्रेडिंग करना बहुत ही आसान होता है, ट्रेडिंग करने के लिए आपके पास ट्रेडिंग अकाउंट एवं डिमैट अकाउंट होना चाहिए, क्युकी ट्रेडिंग अमाउंट एवं डिमैट अकाउंट के बिना आप ट्रेडिंग नही कर सकते हैं. उसके बाद आपको ट्रेडिंग अकाउंट की मदद से शेयर मार्केट से शेयर को कम दामों में खरीदना होता है और उस शेयर की कीमत बढ़ जाने पर उसे ज्यादा दाम में बेच कर मुनाफा कमाना होता है.
शेयर मार्केट ट्रेडिंग कितने प्रकार के होते है?
शेयर मार्केट ट्रेडिंग मुख्यतः 4 तरह की होती है?
इंट्राडे ट्रेडिंग (Intraday trading)
इंट्राडे ट्रेडिंग एक ऐसी ट्रेडिंग होती है जो एक ही दिन के अंदर की जाती है, इसमें एक ही दिन के अंदर शेयर्स को मार्केट में खरीदा और बेचा जाता हैं. एक ही दिन के अंदर की जाने वाली इस ट्रेडिंग को हम इंट्राडे ट्रेडिंग या फिर डे ट्रेडिंग भी कह सकते है.
स्विंग ट्रेडिंग (Swing trading)
स्विंग ट्रेडिंग मे शेयर्स को खरीदकर कुछ दिनो या कुछ हप्तो के अंदर बेचा जाता है इसे ट्रेडिंग किंग भी कहा जाता है. ये ट्रेडिंग इंट्राडे की तरह नही होती है लेकिन इसमे आप अपना टारगेट प्राईस लगाकर नुकसान और फायदे को आसानी से झेल सकते है, स्विंग ट्रेडिंग, इंट्राडे ट्रेडिंग और स्कैलपिंग ट्रेडिंग से काफी अलग होता है. क्योंकि स्विंग ट्रेडिंग को हम 1 दिन या 1 हफ्ते या फिर 1 महीने के लिए भी करते हैं.
शॉर्ट ट्रम ट्रेडिंग (Short term trading)
जब कोई ट्रेडिंग कुछ हप्तो से लेकर कूछ महिनो की होती है उसे शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग कहते है शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग मे एक एक्टिव ट्रेड इन्वेस्टमेंट होता है इसमें आपको अपने स्टॉक पर नजर रखनी होती है तभी आप अपने स्टॉक को मिनीमाइज कर सकते है.
लॉंग टर्म ट्रेडिंग (Long term trading)
जब कोई ट्रेडिंग एक साल या उससे ज्यादा समय में की जाती है तो उसे लॉंग टर्म ट्रेडिंग कहते है.
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आज आपने क्या सीखा?
हमे उम्मीद है कि हमारा ये (Trading kya hai in hindi) आर्टिकल आपको काफी पसन्द आया होगा और आपके लिए काफी यूजफुल भी होगा क्युकी इसमे हमने आपको ट्रेडिंग से रिलेटेड पूरी जानकारी दी है.
हमारी ये (Trading kya hai in hindi) जानकारी कैसी लगी कमेंट करके जरुर बताइयेगा और ज्यादा से ज्यादा लोगो के साथ भी जरुर शेयर कीजियेगा.