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दलाल कैसे बने?

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कोटा उत्तर वार्ड 4 : इन्दिरा मार्केट,लाल बुर्ज चौराहे के वासी समस्याओं से त्रस्त

नाले-नालियों के हालात इस कदर बदतर हैं कि सफाई के अभाव में कचरा व कीचड़ जमकर अटा पड़ा हैं। वर्षो से मुख्य सङक पर वाहनों को खङा करने के लिए पार्किंग की अच्छी व्यवस्था थी पर कुछ लोगों ने पार्किग स्थल पर अतिक्रमण कर कब्जा कर लिया हैं।

कोटा। वार्ड नम्बर 4 इन्दिरा मार्केट, लाल बुर्ज चौराहा के रहवासी मूलभूत समस्याओं से परेशान हैं। टॉयलेट को लेकर स्थिति बदतर हैं, सफाई,नालें-नालियों में गंदगी व मुख्य सड़क पर खुले डीपी के विद्युत तारों से हादसे को लेकर आमजन डरे हुए और परेशान हैं। वार्डवासियों ने बताया कि मोहल्ले में सफाई कर्मी नियमित न आकर कभी -कभार आते हैं जिससे गली मोहल्लों में कचरा बिखरा पड़ा हैं। कचरा गाड़ी भी दो-चार दिन में एक बार आती हैं,जिससे घरों के लोग कचरा निकालकर प्लास्टिक थैलियों में भरकर बाहर डाल देते हैं। अब कचरा गाड़ी तो नियमित आती नहीं व कचरा उड़-उड़कर गलियों में फैल जाता हैं ।

पार्किग स्थल पर लोगों ने किया कब्जा
वर्षो से मुख्य सङक पर वाहनों को खङा करने के लिए पार्किंग की अच्छी व्यवस्था थी पर कुछ लोगों ने पार्किग स्थल पर अतिक्रमण कर कब्जा कर लिया हैं। जिससे वाहनों की पार्किग को लेकल बङी समस्या खङी हो गई हैं। यदि मोहल्लें की गलियों या मार्केट की गलियों में भी वाहन खङा करें तो पहले से ही अतिक्रमण को लेकर गलियां संकरी पड़ी हैं।

मोहल्लें की गलियां बिखरे कचरे से बदसूरत सी दलाल कैसे बने? बनी रहती हैं।
इसकों लेकर वार्डवासियों नें कई दफा पार्षद को अवगत भी कराया पर स्थिति ज्यों की त्यों बनी हैं। अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की गई हैं। मोहल्लें की नाले-नालियों के हालात इस कदर बदतर हैं कि सफाई के अभाव में कचरा व कीचड़ जमकर अटा पड़ा हैं। जिससे दुकानों तक इसकी दुर्गन्ध सहित मच्छरों की भरमार बढने से बिना पंखे दुकानों-घरों में रूकना मुश्किल सा हो गया हैं। सङक के दोनों ओर पेयजल निकासी को लेकर बने नालों के यही हालात हैं। नालों पर लोहे के सरियों से जालीनुमा ढक्कन बनाकर लगे हैं। बस इनसे देखने पर ही पता चल पाता हैं कि नाले साफ हैं या मलबें से अटे पड़े हैं।

इन्द्रा मार्केट से सङक के उस पार विद्युत विभाग ने घोर लापरवाही दिखाई देती है। विद्युत डीपी को नीचे जमीन पर बिल्कुल घनी आबादी क्षैत्र में रख दी हैं व इससे निकले गए तार भी नंगे पड़े होने से कभी हादसा हो जाए तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।वार्ड में अतिक्रमण व वाहनों की पार्किग को लेकर बङी समस्या हैं।व सार्वजनिक टॉईलेट की हालत खराब हैं।जर्जर के साथ गंदगी व खाली शराब के पव्वें,अद्धे व खाली शिशीयां पङी रहती हैं।जिससे लघु शंका के लिए दूर-दराज जाना पड़ रहा हैं।
-मुकेश भटनागर,कैथूनीपोल व्यापार संघ मण्डल अध्यक्ष स्थानीय वार्ड वासी।

सफाई के अभाव में गली मौहल्लों मे गंदगी बनी हैं ',नाले की सफाई के अभाव में मलबे से नाले अटे पङे हैं। लोग बदबू से परेशान हैं।
-राजेन्द्र सोनी , सर्फा दुकानदार साथानीय वार्ड वासी।

इनका कहना हैं
इस वार्ड का क्षेत्रफल तीन-चार पार्षदों के अधीन आता हैं। मेरे वार्ड में टायलेट को लेकर समस्या जरूर हैं। 4-5रोज से वार्ड की तरफ मेरा जाना नहीं हआ हैं,जाकर देखता हूं व यदि समस्या हैं तो शीध्र समाधान करवाया जाएगा।
अजय कुमार सुमन, पार्षद वार्ड नम्बर 04

जानें कौन हैं वरुण धवन की होने वाली पत्नी नताशा दलाल, कैसे हुई वरुण से मुलाकात?

बॉलीवुड अभिनेता वरुण धवन आजकल अपनी शादी को लेकर काफी चर्चा में बने हुए हैं. दरअसल वरुण धवन आज नताशा दलाल के साथ शादी के बंधन में बंधने जा रहे हैं।

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नई दिल्लीः बॉलीवुड अभिनेता वरुण धवन आजकल अपनी शादी को लेकर काफी चर्चा में बने हुए हैं. दरअसल वरुण धवन जल्द ही अपनी लेडी लव नताशा दलाल के साथ शादी के बंधन में बंधने जा रहे हैं। वरुण और नताशा की शादी आज यानी 24 जनवरी को है।

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वरुण धवन संग नताशा की शादी की तैयारियां काफी पहले से चल रहीं हैं. वहीं इन दोनों की शादी का लोगों को बड़ी ही बेसब्री से इंतजार है। लेकिन इसी दलाल कैसे बने? बीच वरुण के कई फैंस ऐसे है जो नताशा के बारे में जानना चाहते है आखिर वो कौन हैं और उनकी वरुण धवन से मुलाकात कैसे हुई ? ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब हम लेकर आएं हैं।

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बता दें की नताशा दलाल एक स्थापित फैशन डिजाइनर हैं। नताशा का खुद का ब्रांड लेबल है। उन्होंने अपनी पढ़ाई न्यूयॉर्क से की है। न्यूयॉर्क से पढ़ाई पूरी करने के बाद नताशा साल 2013 में भारत लौटी थीं। वरुण और नताशा बचपन से ही दोस्त रहे हैं। इन दोनों को कई पार्टीज और बॉलीवुड की गैदरिंग्स में भी साथ देखा जाता रहा है।

परिवार पहचान पत्र में अधिकारी गंभीरता से करे कार्य: DC विक्रम यादव

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फरीदाबाद,15 नवंबर। डीसी विक्रम सिंह की अध्यक्षता में परिवार पहचान पत्र समीक्षा बारे बैठक आयोजित की। डीसी विक्रम सिंह ने बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि जिस विभाग का परिवार पहचान पत्र से संबंधित ऑनलाइन करने दलाल कैसे बने? का जो भी कार्य है, वह सुचारू रूप से करना सुनिश्चित करें। जिन विभागों की ऑनलाइन प्रक्रिया धीमी है वह उसमें तेजी लाना सुनिश्चित करें।

डीसी विक्रम सिंह ने कहा कि जिस विभाग परिवार पहचान पत्र से संबंधित जिम्मेवारी है। वह विभाग निर्धारित समय पर पूरा करना सुनिश्चित करें। व्हाट्सएप ग्रुप बनाकर उसमें अपने सुझाव भी साझा करें। जो भी मेजर इश्यू आए उसे हमारे साथ या अन्य अधिकारियों के साथ साझा जरूर कर ले। तभी इश्यु/समस्याओं का समाधान संभव है। डीसी विक्रम सिंह ने एक-एक करके विभाग वार परिवार पहचान पत्र की प्रक्रिया की अलग-अलग प्वाइंटों पर समीक्षा की। अतिरिक्त उपायुक्त अपराजिता ने जिला राजस्व अधिकारी से राजस्व विभाग से, सीएमओ से स्वास्थ्य विभाग से, शिक्षा विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग, एमसीएफ व दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम से संबंधित विभागों के अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि परिवार पहचान पत्र की ऑनलाइन प्लेट फार्म प्रक्रिया बारे जो भी समस्याएं आए। वह हमारे कार्यालय या हमसे जरूर डिस्कस कर ले।

बैठक में एडीसी अपराजिता, एसीयूटी सोनू भट्ट, डीआरओ बिजेन्द्र राणा, जिला चिकित्सा अधिकारी डॉ विनय गुप्ता, एसएमओ राजेश श्योकंद, सीडीपीओ डॉ मंजू श्योराण, दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम के अधीक्षक कार्यकारी अभियंता कुलदीप अत्री, कार्यकारी अभियंता नीरज दलाल, खंड शिक्षा अधिकारी व एमसीएफ विभाग के जिला कल्याण अधिकारी उपस्थित रहे।

ट्विटर में जल्द ही एड होगा ये नया फीचर, मस्क का ऐलान

(दलाल कैसे बने? प्रियांशी श्रीवास्तव) : जब से ट्विटर के नए सीईओ एलन मस्क बने तब से लगातार हर रोज कोई न कोई बदलाव देखने को मिल रहा है कभी ट्विटर की पॉलिसी तो कभी कंपनी के कर्मचारियों की छटनी को लेकर फैसलें लिए जा रहे है । अभी बीतें दिनों जानकारी सामने आई थी कि ब्लूटिक के लिए भुगतान करना होगा। तो वहीं आज ट्विटर से संबधित नई जानकारी सामने आई है कि ऑफिशियल अकाउंटस में नए फीचर एड किए जाएंगे। साथ ही इस बात की भी पुष्टि कर दी गई है कि नया ट्विटर ब्लू सबक्रिपशन केवल यूजर्स को अकाउंट्स पर ब्लू टिक पाने की सुविधा देगा, यह यूजर्स की पहचान को वेरिफाई नहीं करेगा।

एलन मस्क के आने के बाद से इस माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म में कई तरह के बदलाव किए जा रहे हैं। जानकारी से पता चला है कि ट्विटर जल्द कुछ वेरिफाइड अकाउंट्स को ऑफिशियल लेबल देगा। कहा जा रहा है कि प्रमुख मीडिया और सरकारी अकाउंट्स को सबसे पहले ये ऑफिशियल लेबल दिया जाएगा। लेकिन बता दें कि इस फीचर के लिए अभी थोड़ा इंतजार भी करना पड़ सकता है।

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अब ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल उठेंगे कि आईडी वेरिफिकेशन की कमी से यह कैसे साफ होगा कि कोई भी ऐसी हस्ती जो पब्लिक फिगर अकाउंट चलाती है वह अकाउंट वाकई असली है या फिर नकली। इस मामले से परिचित सूत्रों और शोधकर्ताओं का कहना है कि सरकारी अधिकारियों से जुड़े कुछ नकली अकाउंट्स विश्व स्तर पर ऐसी परेशानी है जो एक नहीं बार-बार देखने को मिलती रहती है।

भोपाल गैस त्रासदी की तरह गुजरात में भी मतदान सम्पन्न होने तक मोरबी पुल हादसे को भुला दिया जाएगा !

भोपाल गैस त्रासदी की तरह गुजरात में भी मतदान सम्पन्न होने तक मोरबी पुल हादसे को भुला दिया जाएगा !

Gujrat Election 2022 : भोपाल गैस त्रासदी के लिए अगर यूनियन कार्बाइड प्रबंधन के साथ-साथ अर्जुनसिंह सरकार भी ज़िम्मेदार थी तो मोरबी हादसे के लिए गिनाए जा रहे कारण 'भगवान की मर्ज़ी' के अलावा गुजरात सरकार और घड़ी बनाने वाली ओरेवा कंपनी के प्रबंधकों के बीच साँठगाँठ की ओर भी इशारा करते हैं.

वरिष्ठ संपादक श्रवण गर्ग सवाल कर रहे हैं क्या मोरबी में भी भोपाल होगा?

मोरबी से कौन जीतने वाला है? क्या भाजपा ही जीतेगी या मतदाता उसे इस बार हराने वाले हैं? प्रधानमंत्री अगर साहस दिखा देते कि दर्दनाक पुल हादसे की नैतिक ज़िम्मेदारी स्वीकार करते हुए भाजपा मोरबी से अपना कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा करेगी तो मतदान के पहले ही मोदी गुजरात की जनता की सहानुभूति अपने पक्ष में कर सकते थे। उन्होंने ऐसा नहीं किया। प्रधानमंत्री मोदी भावनाओं में बहकर राजनीतिक फ़ैसले नहीं लेते। वर्तमान के क्रूर राजनीतिक माहौल में इस तरह के नैतिक साहस की उम्मीद किसी भी राजनीतिक दल से नहीं की जा सकती।

स्थापित करने के लिए कि केबल पुल की देखरेख और उसका संचालन करने वाली कंपनी के प्रबंधकों के साथ पार्टी के बड़े नेताओं की कोई साँठगाँठ नहीं थी, मोरबी सीट जीतने के लिए भाजपा अपने सारे संसाधन दाव पर लगा देगी। कंपनी का एक मैनेजर पहले ही दावा कर चुका है कि हादसा 'ईश्वर की मर्ज़ी' से हुआ है। पार्टी की जीत का श्रेय प्रधानमंत्री के नेतृत्व को दिया जाने वाला है, ईश्वर की मर्ज़ी को नहीं।

भाजपा ने मोरबी से छह बार के विधायक और पिछले (2017 के) चुनावों के पहले कांग्रेस से भाजपा में भर्ती हुए बृजेश मेरजा की जगह कांतिलाल अमृतिया को टिकिट दिया है। मोरबी का 140 साल पुराना पुल अमृतिया के सामने ही ध्वस्त हुआ था। दुर्घटना के समय के वायरल हुए एक वीडियो में एक शख़्स को ट्यूब पहनकर मच्छू नदी से लोगों की जानें बचाते हुए देखा गया था। बाद में बताया गया कि वह शख़्स अमृतिया ही थे। भाजपा ने अब अमृतिया के कंधों पर मोरबी सीट को बचाने की ज़िम्मेदारी डाल दी है। अमृतिया का वीडियो अगर वायरल नहीं हुआ होता तो मोरबी से चुनाव लड़ने के लिए भाजपा को उम्मीदवार ढूँढ़ना मुश्किल हो जाता।

( चित्र में गुलशन राठौड़ मोबाइल अपने बेटों के चित्र दिखाते हुए)

लोगों की जानें बचाने वाले को तो भाजपा ने टिकट देकर पुरस्कृत कर दिया, पर सरकार द्वारा उन लोगों को दंडित किया जाना अभी बाक़ी है जिनके कारण सैकड़ों मौतें हुईं और अनेक घायल हुए। मोरबी के भयानक हादसे में 55 बच्चों सहित 143 लोगों की जानें गई हैं और सैकड़ों अभी भी घायल बताए जाते हैं। (न्यूज़ पोर्टल 'द प्रिंट' ने गुलशन राठौड़ नामक एक महिला की मार्मिक कथा जारी की थी, जिसमें बताया गया था कि इस ग़रीब माँ ने घटना के तुरंत बाद किस तरह बदहवास हालत में घर की रोज़ी-रोटी चलाने वाले अठारह और बीस साल की उम्र के अपने दो बेटों की हरेक जगह तलाश की थी।)

'मैं जब कई घंटों तक उन्हें कहीं और नहीं ढूँढ़ पाई तो मोरबी सिविल अस्पताल के मुर्दाघर पहुँची जहां पाया कि दोनों बेटे लावारिस लाशों की क़तार के बीच बेसुध पड़े हुए हैं और उनकी साँसें अभी चल रहीं हैं। मैंने तुरंत दोनों को पास के एक निजी अस्पताल में इलाज के लिए पहुँचाया। दोनों की रीढ़ की हड्डियों में चोट पहुँची है। मुझे पता नहीं अब हम क्या तो खाएँगे और कैसे मकान का भाड़ा चुकाएँगे।' गुलशन ने खबर में बताया था।

साल 1984 में दिसंबर 2 और 3 की दरम्यानी रात भोपाल में दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना यूनियन कार्बाइड के संयंत्र से ज़हरीली गैस (MIC) लीक हो जाने की हुई थी। इस दुर्घटना के कोई एक महीना पहले ही (31 अक्टूबर) प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की नई दिल्ली में हत्या हो गई थी और लोकसभा चुनावों की घोषणा कर दी गई थी। दिसंबर अंत में देश के साथ भोपाल लोकसभा सीट के लिए भी मतदान होना था। भोपाल का चुनाव स्थगित नहीं किया गया।

अर्जुनसिंह तब अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। डॉ शंकर दयाल शर्मा निवृतमान लोक सभा में भोपाल से कांग्रेस के सांसद थे। कांग्रेस ने डॉ शर्मा के स्थान पर के एन प्रधान को भोपाल से अपना उम्मीदवार बनाया था। त्रासदी के बीच ही चुनाव प्रचार भी सम्पन्न हो गया , मतदान भी हो गया और कांग्रेस ने भोपाल सहित प्रदेश की सभी चालीस सीटें भी जीत लीं। डॉ शर्मा गैस कांड के तीन साल बाद पहले उपराष्ट्रपति और फिर राष्ट्रपति निर्वाचित हो गए।

गैस कांड में जान देने वालों का सरकारी आँकड़ा 2,259 का और ग़ैर-सरकारी आठ हज़ार से ऊपर का है। अपुष्ट आँकड़े बाईस से पच्चीस हज़ार मौतों के हैं। कोई पाँच लाख से अधिक लोग घायल और हज़ारों स्थायी रूप से अपंग हो गये थे। मानवीय चूक के कारण हुई इस त्रासदी में मारे गए हज़ारों लोगों की मौत पर इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति भारी पड़ गई थी और कांग्रेस को देशभर में ऐतिहासिक जीत हासिल हुई थी।

भोपाल गैस त्रासदी के लिए अगर यूनियन कार्बाइड प्रबंधन के साथ-साथ अर्जुनसिंह सरकार भी ज़िम्मेदार थी तो मोरबी हादसे के लिए गिनाए जा रहे कारण 'भगवान की मर्ज़ी' के अलावा गुजरात दलाल कैसे बने? सरकार और घड़ी बनाने वाली ओरेवा कंपनी के प्रबंधकों के बीच साँठगाँठ की ओर भी इशारा करते हैं। मोरबी ज़िले में विधानसभा की तीन सीटें हैं। इनमें मोरबी और वांकानेर के अलावा टंकारा की वह सीट भी है, जहां आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्म हुआ था।

मोरबी की दुर्घटना के बाद भोपाल गैस त्रासदी का हवाला देते हुए चेताया गया था कि लोगों की याददाश्त कमज़ोर होती है, वे सब कुछ भूल जाएंगे! मोरबी में पुल टूटने की घटना और गुजरात में मतदान के बीच भी समय 1984 दिसंबर जितना ही रहने वाला है। तो क्या गुजरात में मतदान सम्पन्न होने तक भोपाल की तरह ही मोरबी का भी सब कुछ भुला दिया जाएगा? गुलशन राठौड़ और उनके जैसी सैकड़ों कहानियों समेत!

भोपाल गैस त्रासदी अगले महीने की दो और तीन तारीख़ को अपने आतंक के अड़तीस साल पूरे कर लेगी। त्रासदी के चार महीने बाद मार्च 1985 में जब अर्जुनसिंह के नेतृत्व में मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव हुए थे तो राज्य में फिर से कांग्रेस की हुकूमत क़ायम हो गई थी। मंत्री बदल गए थे, पर दलाल वैसे ही क़ायम रहे। त्रासदी के लिए दोषी किसी भी बड़े आरोपी को सज़ा नहीं मिली। उसके कुछ गुनहगारों की आज भी तलाश की जा सकती है।

हो सकता है मोरबी की कंपनी में बनने वाली घड़ियों की सुइयाँ साल बदलती रहें और भोपाल की तरह ही पुल दुर्घटना के असली गुनहगारों को भी क़ानून ढूँढता रह जाए! राजनीति तो संवेदनहीन हो ही चुकी है, क्या मानवीय संवेदनाओं से मतदाताओं के सरोकार भी ख़त्म हो गए हैं? अगर यही सत्य है तो फिर लोकतंत्र को भूलकर उस व्यवस्था के लिए तैयार रहना चाहिए जिसकी कि ओर मोरबी के पुल की देखरेख और संचालन करने वाली कंपनी के प्रमुख ने अपनी गुजराती पुस्तक 'समस्या अने समाधान' में इशारा किया है' चीन की तरह ही देश में चुनाव बंद कर योग्य व्यक्ति को 15-20 साल का नेतृत्व दीजिए जो हिटलर की तरह डंडा चलाये।

रेटिंग: 4.76
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 663
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