भारत में डेमो खातों के साथ दलाल

विदेशी मुद्रा मूल बातें

विदेशी मुद्रा मूल बातें
Interest Rates Hike : दुनिया के कई देशों के बाद अब भारत में भी ब्याज दर बढ़ने की पूरी उम्मीद

निकट भविष्य में कायम रहेगी डॉलर की मजबूती

जाने-माने अर्थशास्त्री बैरी आइटग्रीन ने मार्च 2011 में द वॉल स्ट्रीट जर्नल में प्रकाशित एक आलेख में कहा था, 'डॉलर का दौर समाप्त हो रहा है। मेरा मानना है कि अगले 10 वर्षों में हम एक ऐसी दुनिया की ओर बढ़ जाएंगे जहां कई मुद्राओं के बीच दबदबे की प्रतिस्पर्धा होगी।' उनकी पुस्तक एक्सोर्बिटैंट प्रिविलेज: द राइज ऐंड फाल ऑफ द डॉलर भी उसी वर्ष प्रकाशित हुई थी। इस पुस्तक में उन्होंने इसी विषय पर विस्तार से लिखा था। वास्तविक नतीजा वैसा नहीं हुआ जैसा कि उन्होंने अनुमान जताया था। हालांकि समय बीतने के साथ वैश्विक रिजर्व में अमेरिकी डॉलर की हिस्सेदारी कम हुई है और अन्य मुद्राओं को लोकप्रिय बनाने के प्रयास भी लगातार किए गए लेकिन डॉलर के दबदबे को वास्तविक चुनौती नहीं दी जा सकी।
अब एक बार फिर यह सवाल उठाया जा रहा है कि आने वाले वर्षों में अमेरिकी डॉलर की क्या स्थिति रहेगी? तात्कालिक संदर्भ है रूस पर लगाये गए असाधारण प्रतिबंधों का। यह कहा जा रहा है कि अमेरिकी नेतृत्व वाला पश्चिमी गठजोड़ वैश्विक आर्थिक तंत्र का इस्तेमाल हथियार के रूप में कर रहा है ताकि रूस को वित्तीय रूप से पूरी तरह अलग-थलग किया जा सके। इन प्रतिबंधों के कारण 300 अरब डॉलर मूल्य के विदेशी मुद्रा भंडार को भी रोक दिया गया है। ये सारी बातें इस नजरिये को पुष्ट करती हैं कि समझदारी इसी बात में है कि विदेशी मुद्रा भंडार रखने वाले देशों को अपने फंड में विविधता लानी चाहिए और इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय भुगतान को क्लियर करने की वैकल्पिक व्यवस्था विकसित करने की भी मांग उठ रही है। अगर चीन के नजरिये से देखा जाए तो ऐसा तत्काल करने की जरूरत महसूस होती है। चीन के पास एक लाख करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के अमेरिकी बॉन्ड हैं। वह यह प्रयास भी कर रहा है कि एक वैकल्पिक भुगतान प्रणाली विकसित की जा सके तथा अलग-अलग तरीकों से अपनी मुद्रा को अंतरराष्ट्रीय लेनदेन के लिए लोकप्रिय बनाया जा सके। हालांकि हाल के दशकों में चीन की अर्थव्यवस्था का आकार भी बहुत तेजी से बढ़ा है लेकिन उसमें कुछ कमजोरियां भी निहित हैं जो उसकी मुद्रा को सार्थक ढंग से अमेरिकी डॉलर को चुनौती नहीं देने देंगी।
सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उसकी मुद्रा पूर्ण परिवर्तनीय नहीं है। इस बात की संभावना भी बहुत कम है कि चीन की सरकार जल्दबाजी में पूंजी पर से नियंत्रण हटाएगी। खासतौर पर ऐसे समय में जबकि वृद्धि में भी धीमापन आ रहा है और वित्तीय व्यवस्था जोखिम में नजर आ रही है। यह जोखिम अचल संपत्ति जैसे क्षेत्रों की बदौलत उत्पन्न हुआ है। पूंजी नियंत्रण चीन के वृद्धि मॉडल का एक अनिवार्य अंग रहा है और ऐसी कोई वजह नहीं है जिसके चलते नीति निर्माता अब उसे समाप्त करेंगे। चाहे जो भी हो चीनी मुद्रा में कारोबार निपटाने में इजाफा जरूर हुआ है। चीनी मुद्रा में मुद्रा का भंडारण भी बढ़ा है।
निश्चित रूप से चीन कारोबारी दृष्टि से बहुत बड़ा मुल्क है और हाल के वर्षों में उसने कई देशों को काफी कर्ज भी दिया हैै। ऐसे में यह समझ में आता है कि चीन के कारोबारी साझेदार और कर्जदार अपने कर्ज का कुछ हिस्सा चीनी मुद्रा में रखें ताकि लेनदेन की लागत और अस्थिरता दोनों कम हो सकें। आने वाले वर्षों में अगर चीनी मुद्रा रेनमिनबी को स्वीकार्यता मिल भी जाती है तो भी यह स्पष्ट नहीं है कि चीन अमेरिकी डॉलर वाले अपने मुद्रा भंडार को कहां ले जाएगा।
डॉलर को चुनौती देने वाली दूसरी मुद्रा यूरो को माना जा रहा है। रिजर्व मुद्रा के रूप में यूरो, रेनमिनबी से बहुत अधिक लोकप्रिय है लेकिन यह भी अमेरिकी डॉलर के लिए कोई गंभीर खतरा नहीं है। वैश्विक रिजर्व में उसकी हिस्सेदारी 1999 से ही 20 फीसदी के आसपास स्थिर है। यह बात भी ध्यान देने लायक है कि यूरो क्षेत्र को जहां आकार के मामले में बढ़त हासिल है, वहीं उसके प्रतिभागी समान स्तर पर नहीं हैं। बीते दशक के डेट संकट के दौरान यह महसूस भी हुआ। इतना ही नहीं यूरो को अपनाने के पहले भी डॉयचे मार्क (2002 तक जर्मनी की आधिकारिक मुद्रा) डॉलर के बाद आरक्षित मुद्रा में सबसे बड़ी भागीदारी थी। एक अनुमान के मुताबिक सन 1979 से 1998 के बीच इसकी हिस्सेदारी 10 से 18 फीसदी के बीच रही। जर्मन प्रतिभूति बाजार अमेरिकी प्रतिभूति बाजार की तुलना में बेहद छोटा है।
भूराजनीतिक तनाव और उभरती वैश्विक व्यवस्था में चीन की स्थिति को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक नये पर्चे (जिसके सह लेखक प्रोफेसर आइटनग्रीन हैं) में डॉलर के दबदबे के ऊपर बहस की गई है। द स्टेल्थ इरोजन ऑफ डॉलर डोमिनेंस: एक्टिव डायवर्सिफायर्स ऐंड द राइज ऑफ नॉनट्रेडिशनल रिजर्व करेंसीज, में इस बात को रेखांकित किया गया है कि मुद्रा रिजर्व में सन 1999 से डॉलर की हिस्सेदारी 71 फीसदी से घटकर 59 फीसदी रह गई है। परंतु डॉलर की हिस्सेदारी का नतीजा अन्य पारंपरिक रिजर्व मुद्राओं मसलन पाउंड, यूरो या येन में इजाफे के रूप में सामने नहीं आया है। पर्चे के अनुसार अधिशेष राशि गैर पारंपरिक मुद्राओं में गई। जरूरी नहीं कि इस बदलाव का परिणाम अन्य मुद्राओं को प्राथमिकता के रूप में सामने आया हो लेकिन यह उच्च प्रतिफल के लिए यह सक्रिय विविधता तो दर्शाता ही है। बहरहाल, कुछ बड़े अधिग्रहणकर्ताओं के भंडार के कारण भी गिरावट आई। मिसाल के तौर पर अगर स्विस नैशनल बैंक को आकलन से अलग कर दिया जाए तो रिजर्व में डॉलर की हिस्सेदारी दो फीसदी बढ़ जाएगी।
ऐसे में भले ही वैश्विक रिजर्व में डॉलर की हिस्सेदारी कम हो रही हो लेकिन इसका उसकी हैसियत पर बुरा असर नहीं पड़ रहा है क्योंकि केंद्रीय बैंक चाहेंगे कि वे अपना मूल रिजर्व सर्वाधिक नकदीकृत परिसंपत्तियों में रखें। यकीनन अमेरिका को अपनी मुद्रा की स्थिति से फायदा मिलता है। अन्य बातों के अलावा दुनिया भर का पूंजी प्रवाह उसे यह मौका देता है कि वह चालू खाते के घाटे की आसानी से भरपायी कर सके तथा पूंजी की लागत कम रखे। अधिकांश देश चाहेंगे कि उनकी मुद्रा को यह दर्जा मिले। लेकिन यह जानना भी अहम है कि डॉलर को अमेरिकी अर्थव्यवस्था की मजबूती का सहारा मिला हुआ है। वह दुनिया की सर्वाधिक नकदीकृत प्रतिभूतियों वाला बाजार भी है।

जबलपुर में 'बिशप' के घर ईओडब्ल्यू की छापेमारी, विदेशी मुद्रा बरामद , 2 करोड़ से ज्यादा के गबन का आरोप

जबलपुर में बिशप के घर से भारी मात्रा में नगदी बरामद की गई है। फिलहाल कितने रुपये बरामद किए गए हैं इसका खुलासा नहीं हो सका है। बताया जा रहा है कि इंडियन करेंसी के साथ विदेशी करेंसी भी मिली है।

जबलपुर में 'बिशप' के घर ईओडब्ल्यू की छापेमारी, विदेशी मुद्रा बरामद , 2 करोड़ से ज्यादा के गबन का आरोप

मध्य प्रदेश के जबलपुर में द बोर्ड ऑफ एजुकेशन चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया के चेयरमैन के घर गुरुवार को ईओडब्ल्यू ने छापा मारा। चैयरमैन पर फर्जी दस्तावेज तैयार कर मूल सोसाइटी का नाम बदलने और करीब 2 करोड़ से ज्यादा रुपये धार्मिक संस्थाओं को ट्रांसफर कर गबन करने का आरोप है। ईओडब्ल्यू की टीम फिलहाल उनके घर पर दस्तावेजों की जांच कर रहीं हैं।

बता दें कि जबलपुर में बिशप के घर से भारी मात्रा में नगदी बरामद की गई है। फिलहाल कितने रुपये बरामद किए गए हैं इसका खुलासा नहीं हो सका है। जानकारी मिली है कि एक टीम मशीन लेकर नोटों को गिनने के लिए पहुंची है। और बताया जा रहा है कि इंडियन करेंसी के साथ ही विदेशी करेंसी भी मिली है।

दरअसल, चैयरमैन के खिलाफ ईओडब्ल्यू को शिकायत मिली थी, जिसकी जांच उप पुलिस अधीक्षक मनजीत सिंह से कराई गई। शिकायत में बिशप पीसी सिंह, चेयरमैन "द बोर्ड ऑफ एजूकेशन चर्च ऑफ नार्थ इंडिया जबलपुर डायोसिस' जबलपुर के विरूद्ध फर्जी दस्तावेजों के आधार पर मूल सोसायटी का नाम परिवर्तन करने की बात सामने आई थी।

इसी कड़ी में पीसी सिंह पर उसका चेयरमैन बनकर पद का दुरूपयोग करते हुए सोसायटी की विभिन्न शैक्षणिक संस्थाओं में प्राप्त होने वाली छात्रों की फीस का उपयोग धार्मिक संस्थाओं को चलाने का आरोप लगा।

शुरुवाती जांच में शैक्षणिक संस्थाओं से वर्ष 2004-05 से वर्ष 2011-12 के बीच करीब दो करोड़ से ज्यादा की राशि धार्मिक संस्थाओं को ट्रांसफर कर इसका दुर्विनियोग करना तथा स्वयं के उपयोग में लेकर गबन करने के आरोप प्रथम दृष्टया प्रमाणित पाए गए।

जानकारी के अनुसार इस प्रकरण की जांच उप निरीक्षक विशाखा तिवारी कर रही हैं। वहीं प्रकरण से संबंधित महत्वपूर्ण दस्तावेजों और गबन की राशि से अर्जित संपत्तियों की जानकारी जुटाने के लिए ईओडब्ल्यू ने गुरुवार सुबह बिशप पी. सी. सिंह के निवास पर तलाशी कार्रवाई शुरू की है।

वहीं शिकायत जांच में मिली जानकारी के आधार पर आरोपी बिशप पी. सी. सिंह, बी. एस. सोलंकी, तत्कालीन असिस्टेंट रजिस्ट्रार फर्म्स एण्ड संस्थाएं जबलपुर के विरूद्ध धारा 406, 420, 468, 471, 120(बी) भादंवि का प्रकरण पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया।

Explainer : तो यूं अमेरिका दूसरे देशों विदेशी मुद्रा मूल बातें में एक्सपोर्ट कर रहा महंगाई. बर्बाद हो जाएंगे छोटे देश, बड़ों की होगी बुरी हालत

Interest Rates Hike : मौजूदा वैश्विक स्थिति ने उभरते बाजारों के लिए खतरा पैदा कर दिया है। विश्व बैंक ने हाल ही में आगाह किया था कि साल 2023 में वैश्विक मंदी का खतरा बढ़ गया है। यह इसलिए है, क्योंकि दुनियाभर के केंद्रीय बैंक महंगाई को थामने के लिए लगातार ब्याज दरों में इजाफा कर रहे हैं। इससे विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के बीच वित्तीय संकटों की एक सीरीज देखने को मिल सकती है।

Global Recession

Interest Rates Hike : दुनिया के कई देशों के बाद अब भारत में भी ब्याज दर बढ़ने की पूरी उम्मीद

हाइलाइट्स

  • चीन की करेंसी युआन 14 साल के सबसे निचले स्तर पर आई
  • ब्रिटिश पाउंड सोमवार को रिकॉर्ड निचले स्तर पर चला गया था
  • मौजूदा वैश्विक स्थिति ने उभरते बाजारों के लिए पैदा किया खतरा
  • इस समय प्रेशर कूकर की तरह है वैश्विक वित्तीय प्रणाली

अमेरिका आक्रामक होकर बढ़ा रहा दरें
हाल ही में हमने देखा था कि अमेरिका में महंगाई 40 साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई थी। महंगाई दर में अभी भी कोई खास कमी नहीं आई है। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व (Federal Reserve) का पूरा फोकस इस महंगाई पर काबू पाने पर है। इसके लिए वह लगातार प्रमुख ब्याज दरों में इजाफा कर रहा है। हाल ही में यूएस फेड ने ब्याज दर में लगातार तीसरी बार 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी की थी। आगे भी फेड ने इसी तरह की बढ़ोतरी के संकेत दिये हैं। इससे अमेरिकी डॉलर बिना लगाम के घोड़े की तरह भागता चला जा रहा है और अन्य देशों की करेंसीज को नीचे धकेल रहा है। यूएस फेड साल 1980 के दशक की शुरुआत में जितना आक्रामक था, उतना ही आज है। दरों में इजाफे से होने वाली उच्च बेरोजगारी और मंदी को सहन करने के लिए यह तैयार है। लेकिन यह इंटरनेशनल ग्रोथ के लिए अच्छा नहीं है। दूसरे देशों को जबरदस्ती अपने यहां दरें बढ़ानी पड़ रही हैं।

दूसरे देशों को जबरदस्ती बढ़ानी पड़ रही दरें
अगर दुनिया के अन्य देश अमेरिका के बाद अपने यहां ब्याज दरों में बढ़ोतरी नहीं करें, तो इसके काफी बुरे परिणाम होंगे। विदेशी निवेशक उन देशों में रिटर्न कम होने के चलते अपना निवेश निकालने लगेंगे। इससे देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर बहुत विपरीत असर पड़ेगा। यूएस फेड के बाद पिछले हफ्ते स्विट्जरलैंड, यूनाइटेड किंगडम, नॉर्वे, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, ताइवान, नाइजीरिया और फिलीपींस में केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भी शुक्रवार को ब्याज दरों में बढ़ोतरी करने की पूरी उम्मीद है।
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अमेरिकियों को फायदा बाकी को नुकसान
फेड के इस रुख से डॉलर कई बड़ी करेंसीज की तुलना में दो दशक के उच्च स्तर पर पहुंच गया है। इससे विदेशों में शॉपिंग करने वाले अमेरिकियों को काफा फायदा हुआ है। अमेरिका के लिए विदेशों से वस्तुएं आयात करना सस्ता हो गया है। वहीं, यह दूसरे देशों के लिए काफी बुरी खबर है। युआन, येन, रुपया, यूरो और पाउंड जैसी करेंसीज के मूल्य में भारी गिरावट आई है। इससे कई देशों के लिए फूड और फ्यूल जैसी आवश्यक वस्तुओं का आयात करना अधिक महंगा हो गया है। यह लगातार बढ़ रहा है। यूएस फेड एक तरह से महंगाई को दूसरे देशों में एक्सपोर्ट कर रहा है। वह अन्य देशों के केंद्रीय बैंकों पर अप्रत्यक्ष रूप से दबाव डाल रहा है।

दशकों के निचले स्तर पर करेंसीज
क्योंकि डॉलर शून्य में मजबूत नहीं हो सकता। यह किसी की तुलना में मजबूत होता है। चीन की करेंसी युआन काफी लुढ़क गई है। चीनी युआन 14 साल के सबसे निचले स्तर पर है। यहां तक कि जापान को भी अपनी करेंसी येन को गिरने से बचाने के लिए डॉलर बेचकर येन खरीदने पड़े हैं। वहीं, यूरोपीय सेंट्रल बैंक के अध्यक्ष क्रिस्टीन लेगार्ड ने चेतावनी दी है कि यूरो में तेज गिरावट महंगाई को बढ़ाने का काम कर रही है। ब्रिटिश पाउंड सोमवार को डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर पर चला गया था।
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इस समय प्रेशर कूकर की तरह है वैश्विक वित्तीय प्रणाली
यूके की स्थिति दिखाती है कि कैसे वैश्विक निवेशक सरकार की आर्थिक विकास योजना को बाधित कर सकते हैं। बैंक ऑफ इंग्लैंड ने बाजारों को स्थिर करने की कोशिश में एक इमरजेंसी बांड खरीद कार्यक्रम की घोषणा की है। एक्सपर्ट्स के अनुसार, वैश्विक वित्तीय प्रणाली इस समय एक प्रेशर कूकर की तरह है। इस समय देशों के पास विश्वसनीय नीतियां होनी चाहिए और किसी भी गलत कदम पर तुरंत सुधार जरूरी है।

उभरते बाजारों के लिए खतरा
मौजूदा वैश्विक स्थिति ने उभरते बाजारों के लिए खतरा पैदा कर दिया है। विश्व बैंक ने हाल ही में आगाह किया था कि साल 2023 में वैश्विक मंदी का खतरा बढ़ गया है। यह इसलिए है, क्योंकि दुनियाभर के केंद्रीय बैंक महंगाई को थामने के लिए लगातार ब्याज दरों में इजाफा कर रहे हैं। वर्ल्ड बैंक ने कहा कि इससे विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के बीच वित्तीय संकटों की एक सीरीज देखने को मिल सकती है। जो अभी भी महामारी से जूझ रहे हैं, उन्हें स्थायी नुकसान पहुंचेगा।

जिनके पास भारी कर्ज उन्हें सबसे अधिक खतरा
सबसे बड़ा खतरा उन देशों को है, जिन्होंने डॉलर में कर्ज लिया है। लोकल करेंसीज में भारी गिरावट से इन कर्जों को वापस चुकाना काफी महंगा हो गया है। इससे सरकारों को अन्य क्षेत्रों में खर्चों में कटौती को मजबूर होना पड़ता है। इससे महंगाई बढ़ेगी और लोगों की जेब पर भारी असर पड़ेगा। विदेशी मुद्रा भंडार में कमी भी चिंता का विषय है। श्रीलंका में डॉलर की कमी ने इस देश को दिवालिया कर दिया है।

कई देशों ने बढ़ाई दरें
हालांकि, कई देशों ने ब्याज दरों में बड़ी बढ़ोतरी करके जोखिम को कम करने की कोशिश की है। ब्राजील ने इस महीने ब्याज दरों को स्थिर रखा, लेकिन लगातार 12 वृद्धि के बाद ही इसकी बेंचमार्क दर 13.75% पर बनी हुई है। नाइजीरिया के केंद्रीय बैंक ने मंगलवार को दरों में 15.5 फीसदी की बढ़ोतरी की, जो अर्थशास्त्रियों की अपेक्षा से काफी अधिक है।
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क्या है उपाय
1980 के दशक की शुरुआत में भी डॉलर ने इसी तरह रुलाया था। उस समय संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, जर्मनी, फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम के नीति निर्माताओं ने मुद्रा बाजारों में एक समन्वित हस्तक्षेप की घोषणा की थी। इसे प्लाजा समझौते के रूप में जाना जाता है। डॉलर की हालिया रैली और अन्य देशों पर आ रहे संकट ने इस बात को हवा दी है कि यह एक और प्लाजा समझौते का समय हो सकता है। लेकिन व्हाइट हाउस ने इस विचार को ठंडे बस्ते में डाल दिया है, जिससे यह अभी संभव नहीं दिखता है।

Pakistan News: पाकिस्तान की हालत कंगाल, खाली हो रहा विदेशी मुद्रा भंडार, बढ़ा कर्ज, टूटा महंगाई का रिकॉर्ड

Pakistan News: पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार करीब 2 अरब डॉलर से अधिक गिरा है। महंगाई दर में भी 13 साल में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई है।

Deepak Vyas

Written By: Deepak Vyas @deepakvyas9826
Updated on: August 13, 2022 9:48 IST

Pakistan Economy Collapse- India TV Hindi News

Image Source : INDIA TV Pakistan Economy Collapse

Highlights

  • महंगाई दर में 13 साल की सबसे बड़ी गिरावट
  • पाकिस्तान की खराब नीतियां कंगाली के लिए जिम्मेदार
  • पैसे के लिए सरकारी संपत्तियां बेचने की हद तक पहुंचा

Pakistan News: भारत के साथ विदेशी मुद्रा मूल बातें ही पाकिस्तान भी अपनी आजादी के 75 वर्ष पूरे कर रहा है। 75 वर्ष पूरे करने पर पाकिस्तान जश्न जरूर मना रहा है, पर उसके पास ऐसा कुछ खास कारण नहीं है कि वह जश्न मना सके। वहां की जनता की महंगाई ने कमर तोड़ दी है। विदेशी मुद्र भंडार इतना कम हो गया है कि कंगाली की हालत में वह कटोरा लेकर अरब देशों और अंतरराष्ट्रीय बैंकों के आगे हाथ जोड़ता नजर आ रहा है। हालात यह हैं कि वहां चाहे इमरान खान पीएम रहे हों या वर्तमान प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ हों, पाकिस्तान हर कार्यकाल में रसातल में ही गया है। शहबाज शरीफ को तो अरब देशों ने लोन देने से ही मना कर दिया, तब जाकर खुद पाकिस्तान के जनरल बाजवा ने मदद की गुहार लगाई, लेकिन उन्हें भी कोरे आश्वासन ही मिले। अभी तक देश कंगाली की हालत, कमरतोड़ महंगाई और गिरते विदेशी मुद्रा भंडार से चिंतित है। हालत यह है कि उसकी अर्थव्यवस्था कर्ज पर ही चल रही है।

महंगाई दर में 13 साल की सबसे बड़ी गिरावट

ताजा आंकड़े बताते हैं कि पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार करीब 2 अरब डॉलर से अधिक गिरा है। अहम बात यह है कि विदेशी मुद्रा भंडार अगस्त के पहले सप्ताह में 14 अरब डॉलर के स्तर से भी नीचे जा चुका है। महंगाई दर में भी 13 विदेशी मुद्रा मूल बातें साल में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई है। इस साल जून माह में महंगाई दर 21.3 फीसदी पहुंच गई थी। इससे पहले 2008 के दिसंबर माह में पाकिस्तान में महंगाई दर 23.3 फीसदी रही थी। इस समय पाकिस्तान को 39.58 अरब डॉलर का कारोबार घाटा हो रहा है। हालात ऐसे हैं कि विदेशी मुद्रा खत्म हो रही है। लेकिन आयात बिल बढ़े हैं।

पाक की खस्ता हालत के लिए क्या बातें हैं जिम्मेदार?

पाकिस्तान की खराब नीतियां और देश को साथ लेकर चलने की बजाय हुक्मरानों द्वारा 'अपनी' और 'अपने' लोगों की झोलियां भरना, राजनीतिक अस्थिरता और लोकतंत्र की बजाय सैन्य ताकत से सत्ता का निर्धारण, ये ऐसे अहम कारण हैं जो पाकिस्तान को बर्बादी की राह पर ले गए। आजादी के बाद से अब तक पाकिस्तान में एक भी सरकार अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी है। इस बात से साबित होता है कि इस देश में आतंकियों को पनाह मिल जाती है। लेकिन स्थायित्व के साथ विकास, आर्थिक तरक्की ये सबकुछ पीछे छूट जाता है।

पाकिस्तान में कमरतोड़ महंगाई से हाहाकार

पाकिस्तान में महंगाई किस कदर है इसका अंदाजा ​इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस समय एक लीटर पेट्रोल के लिए वहां 248 रुपए देना पड़ रहे हैं। वहीं डीजल के भाव 263 रुपए प्रति लीटर है।

पाकिस्तान की निगाहें लगी हैं मुद्राकोष पर

कंगाल पाकिस्तान की निगाहें अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ से लगी हुई हैं। पाकिस्तान को उम्मीद है वहां से 1.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता मिल जाएगी, लेकिन ये पैकेज भी तभी मिलेगा, जब वह इसकी शर्तों पर खरा उतरे। इन शर्तों को पूरा करना भी पाकिस्तानक के लिए मुश्किल हो रहा है।

पैसे के लिए सरकारी संपत्तियां बेचने की हद तक पहुंचा

कंगाल होने के खतरे को भांपते हुए पाकिस्तान के संघीय मंत्रिमंडल ने पिछले दिनों उस बिल को मंजूरी दे दी है, जिसमें सरकारी संपत्तियों अब दूसरे देशों को बेची जा सकेंगी। इस बिल में सभी निर्धारित प्रक्रिया और अन्य आवश्यक नियमों से अलग हटकर सरकारी संपत्तियां दूसरे देशों में बेचने का प्रावधान किया गया है। यह फैसला देश के दिवालिया होने के खतरे को टालने के लिए लिया है। जानकारी के मुताबिक इस बिल में ये व्यवस्था की गई है कि सरकार की संपत्ति की हिस्सेदारी दूसरे देशों को बेचने के खिलाफ यदि किसी ने याचिका दायर भी की तो अदालत इसकी सुनवाई नहीं कर सकेगी।

पाक इकोनॉमिस्ट दे चुके हैं चेतावनी

पाकिस्‍तानी मूल के टॉप इकोनॉमिस्‍ट आतिफ मियां ने हाल के समय में देश की स्‍थ‍िति को लेकर बड़ी चेतावनी दी। उन्‍होंने कहा कि पाकिस्तानी रुपए की कीमत गिरने के बाद स्थिति और बिगड़ने वाली है। उन्होंने बताया कि पाकिस्तानी रुपए डॉलर के मुकाबले 20 फीसदी नीचे गिर गया। उन्‍होंने कहा कि सबसे बड़ी चुनौती जो पाकिस्‍तान के सामने है, वो है विश्‍वसनीयता के साथ निवेशकों और जनता को वापस लाना। उन्‍होंने लिखा है कि विदेशों की दया पर निर्भर पाकिस्‍तान सबकुछ खो चुका है। सरकारें सत्ता बचाने या नई सरकार के सामने आर्थिक संकट खड़ा करने के प्रयासों के बीच इकोनॉमिस्ट कह रहे हैं कि राजनीतिक तबका इस पाप का सबसे बड़ा भागीदार है। देश में ऊर्जा से लेकर दवाएं यहां तक कि लिए जरूरी खाद्यान्न तक विदेशी मुद्रा खर्च करके बाहर से बुलाना पड़ रहा है।

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और कितना विदेशी मुद्रा मूल बातें रुलाएगा डॉलर?

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बहुत खामोशी है उदारीकरण के पैरोकारों और रुपए के अवमूल्यन में अनेक गुण देखने वाले अर्थशास्त्रियों में। डॉलर जब 79.37 रुपए का हो गया और रिजर्व बैंक की सारी कवायद के बाद भी अगले दिन मात्र चार पैसे सुधर पाया तो कोई भी ऐसा अर्थशास्त्री सामने नहीं आया जो रुपए के अवमूल्यन को निर्यात बढाने और जीडीपी बढने में योगदान का तर्क दे रहा था। डॉलर को चालीस रुपए पर लाने की बात करने वाले तो अब इस सवाल को छूने से भी बचने लगे हैं।

उधर बाजार के जानकार हाल फिलहाल डॉलर के 82 रुपए तक पहुंचने की भविष्यवाणी करने लगे हैं। अभी करोना के समय से ही डॉलर दो रुपए से ज्यादा महंगा हुआ है जबकि इस बीच खुद अमेरिका परेशानी में रहा है और उसके यहां भी डॉलर के भविष्य को लेकर तरह-तरह की चर्चा चलती रही है। अब यह कहने में हर्ज नहीं है कि किसी भी देश की मुद्रा की कीमत वहां की अर्थव्यवस्था की स्थिति और आर्थिक प्रतिष्ठा को बताती है और इस बुनियादी पैमाने पर हमारी स्थिति दिन ब दिन कमजोर होती दिखती है।

यह खबर ज्यादा प्रचारित नहीं हुई है कि बीते कुछ समय से हमारा रिजर्व बैंक डॉलर की बढत को थामने के लिए अपनी अंटी से काफी रकम खर्च कर रहा है। प्रसिद्ध वित्तीय संस्था बर्कले की रिपोर्ट है कि पिछले पांच महीने में रिजर्व बैंक ने डॉलर को थामने के लिए अपने पास से 41 अरब डॉलर बाजार में उतारे हैं। सौभाग्य से अभी तक देश के विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति अच्छी है।

बर्कले का अनुमान है कि रिजर्व बैंक ने वायदा और हाजिर, दोनों बाजारों में रेट रोकने में यह पैसा लगाया है। पर रिजर्व बैंक की भी अपनी सीमा है और जोर जबरदस्ती से रेट थामना बाजार में बहुत लम्बे समय तक कारगर नहीं हो सकता।

वित्त मंत्री ने भी देसी तेल कम्पनियों के बाहर तेल बेचने पर (हालांकि यह पुराने करार का उल्लंघन है) पर ‘विंडफाल टैक्स’ और सोने के आयात को महंगा करके अपनी तरफ से रुपए को मजबूती देने की कोशिश की है लेकिन इतने से विदेश व्यापार का घाटा पटेगा या मैनेज होने लायक रहेगा यह कहना मुश्किल है।

यह बात तब और सही लगती है जब हम देखते हैं कि जून में समाप्त तिमाही में हमारा विदेश व्यापार का घाटा रिकार्ड बना चुका है और आगे चीजें और बिगडती लग रही हैं। अमेरिका समेत सारे युरोप में संकट दिखने से हमारे सामान की मांग बढने की गुंजाइश नहीं दिखती और इधर आयात बेहिसाब बढता जा रहा है। सिर्फ पहली तिमाही का विदेश व्यापार का घाटा 70.25 अरब डॉलर का हो गया है।

कहना न होगा कि इसमें पेट्रोलियम आयात का बिल सबसे बडा है जबकि हम रूस से सस्ता तेल लेने का नाटक भी चलाते रहे हैं। सिर्फ तेल का बिल हमारे जीडीपी के पांच फीसदी तक आ चुका है और वह भी अस्सी डॉलर प्रति बैरल विदेशी मुद्रा मूल बातें के हिसाब पर। इस साल तो कीमतें कभी भी इस स्तर से नीचे नहीं आई हैं सो इस बार आयात का बिल और बडा होगा।

 - Satya Hindi

सोने का आयात भी बेहिसाब बढा है जिसके चलते वित्त मंत्री ने कर बढाए हैं। इसी तरह कोयले का आयात भी बहुत बढा है। अब मुश्किल यह है कि हम ऊर्जा के मामले में बहुत सख्ती करेंगे तो उसका असर पूरी अर्थव्यवस्था और सारे उत्पादन पर पडेगा। पर असली समस्या तैयार सामान, खासकर सिले कपडों से लेकर जेम-ज्वेलरी तक, का निर्यात कम होने से है। अमेरिका और युरोपीय संघ, दोनों जगह से मांग गिरी है। एक कारण यह भी है कि दूसरे देश हमसे सस्ता माल अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में बेच रहे हैं। बांग्लादेश और वियतनाम जैसे मुल्कों में सस्ते श्रम के चलते सस्ता उत्पादन होता है। उधर, चीनी सामान भारतीय बाजार में अटे पड़े हैं।

जानकार, इससे भी ज्यादा दो चीजों को लेकर डरे हैं। अभी भी फ़ेडरल रिजर्व अपने यहां बैंक रेट बढाने वाला है जिसकी आशंका से पहले ही दुनिया भर के बाजारों के प्राण सूखे हुए हैं। विदेशी मुद्रा मूल बातें हमारे यहां से भी बडी मात्रा में विदेशी पूंजी बाहर वापस हुई है-शेयर बाजारों की गिरावट उसका प्रमाण है। अर्थव्यवस्था में पूंजी का अभाव असली चोट है जो सेंसेक्स गिरने-चढने की तरह तत्काल नहीं दिखती। दूसरी चीज है विदेशी कर्ज की अदायगी का समय पास आना।

यह अनुमान है कि देश पर 621 अरब डॉलर का जो विदेशी कर्ज है उसमें से 267 अरब डॉलर की रकम अब अगले महीने में मैच्योर हो जाएगी अर्थात उसकी अदायगी करनी होगी। अगर 267 अरब डॉलर की जरूरत होगी या इतनी रकम बाहर जाएगी तो हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में जबरदस्त कमी हो सकती है (लगभग 43-44 फीसदी) और तब बाजार में डॉलर की मांग भी ज्यादा रहेगी।

अर्थव्यवस्था में जान आने से ही इस मुसीबत से छुटकारा मिल सकता है। निर्यात की कमाई बढ़ेगी तो संकट कम होगा। अभी जब दुनिया भर में गेहूं और अनाज की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है और हमारा गेहूं पहली बार बाहर लाभकारी दाम पर बिकने की स्थिति में आया है तब सरकार ने निर्यात पर रोक लगा दी। सरकारी गोदामों में छह करोड टन गेहूं का भंडार है लेकिन उसने अच्छी फसल देखने के बाद भी यह कदम उठाया। कई और कृषि उत्पादों के निर्यात पर रोक लगी है।

इस बार मुनाफे की आस में खुली मंडियों में काफी गेहूं निजी कंपनियों ने खरीदा है। लिहाज़ा इस बार सरकारी खरीद केन्द्रों पर कम आया है। सिर्फ मेक इन इंडिया का नारा लगा है काम चीन से माल मंगाने या उससे पुर्जे मंगाकर जोडने का हुआ है। इन जुमलों का हिसाब भी होना चाहिए और चालीस रुपए के डॉलर का भी।

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