विदेशी मुद्रा शिक्षा फोरम

रतलाम : 'जनता के पैसे से खिलवाड़ नहीं, निजीकरण स्वीकार नहीं'
रतलाम। सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों के प्रस्तावित निजीकरण के विरोध में यूनाइटेड फोरम आफ बैंक यूनियंस के आह्वान पर सोमवार से दो दिवसीय राष्ट्रव्यापी बैंक हड़ताल प्रारंभ हुई। इससे बैंकों में ताले लगे रहे और जानकारी के अभाव में बैंक पहुंचे ग्राहकों को परेशान होकर निराश लौटना पड़ा। उधर, बैंकें बंद रहने से एटीएम पर दिनभर नकदी निकालने वालों की भीड़ लगी रही। कई एटीएम दोपहर तो कई एटीएम शाम तक खाली हो गए।
यूनाइटेड फोरम आफ बैंक यूनियंस से संबद्ध एआईबीईए, एआइबीओसी, एनसीबीई, एआइबीओए, बीईएफआइ, आइएनबीईएफ, आइएनबीओसी, एनओबीडब्ल्यू और एनओबीओ से जुड़े विभिन्ना बैंकों में कार्यरत देशभर के लगभग दस लाख बैंक कर्मचारी और अधिकारी हड़ताल में शामिल हुए। रतलाम में भारतीय स्टेट बैंक मुख्य शाखा मित्र निवास रोड पर धरना-प्रदर्शन का आयोजन किया गया। 'साझा संघर्ष तेज करो.. तेज करो.. तेज करो. ', 'देश हमारा नीति विदेशी नहीं चलेगी.. नहीं चलेगी. ', 'जनता के पैसे से खिलवाड़ नहीं, निजीकरण स्वीकार नहीं' आदि नारे लिखी तख्तियां थामकर बैंककर्मियों ने निजीकरण के खिलाफ आवाज बुलंद की। फोरम के पदाधिकारियों ने बताया कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने आजादी से लेकर आज तक देश के चहुंमुखी विकास, उत्थान में बहुत बड़ा अभूतपूर्व योगदान दिया है। अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान की है। सरकारी बैंकों द्वारा एक मजदूर, आम व्यक्ति, किसान, छोटे व्यापारी से लेकर सभी वर्ग को सेवाएं दी गई है। इसके अलावा मुद्रा लोन, जन-धन खाते, प्रधानमंत्री स्वनिधि व अन्य सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन भी सरकारी बैंकों द्वारा विशेष रूप से किया गया है।
घातक होंगे निजीकरण के परिणाम
पदाधिकारियों ने बताया कि निजीकरण के दूरगामी परिणाम बहुत घातक होंगे। जनता व ग्रामीण अंचल बैंकिंग सुविधाओं से वंचित हो जाएंगे तथा देश में पूंजीवाद को बढ़ावा मिलेगा। जिस-जिस क्षेत्र में निजीकरण की दखलअंदाजी की गई है, वहां सेवा शुल्क व अन्य सभी प्रकार के शुल्क बहुत हद तक बढ़े हैं, जिसकी मार देश के आम आदमी पर पड़ी है। हरीश यादव, विजयकुमार सोनी, राजेश तिवारी, अश्विनी शर्मा, हितेश पंवार, अमित गुप्ता, सुरेश जेठानी, राजेश अंबोलीकर, आशीष शिकारी, रवि दुग्गड़, भरत गोयल, अविनाश यादव, प्रियेश शर्मा, अरविंद सोनी, कीर्ति शर्मा, शैलेष तिवारी, नरेंद्र कुमार सोलंकी, जितेंद्रसिंह गौड़, रमेश शर्मा, गायत्री आर्य, जयश्री पानेरी, अदिता स्टीफन, श्रद्धा अग्रवाल, नरेंद्र पुरोहित, नितिन बैरागी, आतिश बोकाड़िया, आशिता सेठिया, कपिल पंथी आदि उपस्थित थे।
भाजीबीनि कार्यालय द्वार पर किया प्रदर्शन
एलआइसी के आइपीओ और निजीकरण के विरोध में भारतीय जीवन बीमा निगम कार्यालय पर अधिकारी, कर्मचारियों और अभिकर्ताओं द्वारा द्वार प्रदर्शन किया गया। द्वार प्रदर्शन में अधिकारी यूनियन, विकास अधिकारी यूनियन, इंश्योरेंस एम्प्लाइज एसोसिएशन रतलाम यूनिट ओर अभिकर्ता संगठन लियाफी शामिल हुए। प्रदर्शन को प्रियेश शर्मा और जशुआ मोहन ने संबोधित किया। रमेश मीणा, सुनील शर्मा, रमेश कटारिया, प्रदीप गुणवत, अजय गौड़, राजकुमार जैन, श्रीराम यादव, राजेंद्र मेहता, सुशीला कोठारी, संगीता राणावत, लक्ष्मीनारायण धारवा, पुष्पेंद्रसिंह, शांतिलाल बलसौरा आदि उपस्थित थे। कर्मचारी नेता हितेंद्र उपाध्याय ने जानकारी दी।
पयर्टन क्षेत्र के तेजी से उबरते ही बढ़ने लग गये हैं रोजगार के अवसर
पयर्टन क्षेत्र के तेजी से उबरते ही बढ़ने लग गये हैं रोजगार के अवसर
अभी हाल ही में जारी की गई सीधी नियुक्ति मंच हायरेक्ट की ‘जॉब इंडेक्स रिपोर्ट’ के अनुसार, जून 2022 से अगस्त 2022 के तीन महीनों के दौरान टूर एंड ट्रेवल उद्योग में नए रोजगार के अवसरों में जोरदार तेजी देखी गई है, जो भारत के लिए रोजगार की दृष्टि से बहुत अच्छा संकेत माना जा सकता है। दरअसल कोविड महामारी के दौर का असर कम होने के बाद अन्य उद्योगों के साथ ही पर्यटन उद्योग भी अब तेजी से वापस पटरी पर आ गया है। भारत में वित्त वर्ष 2022-23 के जून-अगस्त 2022 की अवधि के दौरान यात्रा और पर्यटन उद्योग में रोजगार के नए अवसरों में 28 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। मासिक आधार पर रोजगार के नए अवसरों में 8 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज हुई है। यह सब केंद्र सरकार द्वारा पर्यटन उद्योग को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से समय समय पर लिए गए निर्णयों के चलते ही सम्भव हो पाया है। विशेष रूप से उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड जैसे राज्यों का योगदान इसमें बहुत अधिक रहा है। वाराणसी, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री, आदि जैसे धार्मिक शहरों में तो पर्यटकों की संख्या में अतुलनीय वृद्धि दृष्टिगोचर हुई है। पर्यटन के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश राज्य लगातार आगे बढ़ रहा है। केवल वाराणसी की ही चर्चा की जाये तो वाराणसी में पर्यटन के क्षेत्र में केवल 4 चार वर्षों में 10 गुना से अधिक की वृद्धि देखी गई है। श्री काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण के बाद से पर्यटकों की संख्या में बड़ा उछाल आया है। धार्मिक आयोजनों के इत्तर वाराणसी शहर में वाटर टूरिज्म को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिसके अंतर्गत चार क्रूज संचालित किए जा रहे हैं। देव दीपावली के साथ ही गंगा आरती, पंचकोसी यात्रा, अंतरग्रही परिक्रमा, घाटों का सुंदरीकरण, सारनाथ का विकास, गलियों का कायाकल्प भी पर्यटकों को बहुत लुभा रहा है। भारत में प्राचीन समय से धार्मिक स्थलों की यात्रा, पर्यटन उद्योग में, एक विशेष स्थान रखती है। एक अनुमान के अनुसार, देश के पर्यटन में धार्मिक यात्राओं की हिस्सेदारी 60 से 70 प्रतिशत के बीच रहती है।
साथ ही, अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों को आकर्षित करने के उद्देश्य से वाराणसी को न केवल आस्था के केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है बल्कि इस प्रकार की व्यवस्थाएं भी खड़ी की जा रही हैं कि यहां अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खेल आयोजित किए जा सकें। वाराणसी में शीघ्र ही एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर का इनडोर स्टेडियम का निर्माण किया जा रहा है। इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष 2022-23 के बजट में 95 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इस भव्य इनडोर स्टेडियम में बैडमिंटन, हैंडबॉल, बास्केटबॉल, वॉलीबॉल, टेबल टेनिस, वेटलिफ्टिंग, स्क्वैश, कॉम्बैट जैसे 20 से अधिक इनडोर खेल खेलने की सुविधा होगी। यह मल्टी-लेवल, मल्टी-स्पोर्ट्स इनडोर स्टेडियम, पैरा स्पोर्ट्स के मानकों को ध्यान में रखकर बनाया जा रहा है।
दरअसल पर्यटन एक ऐसा उद्योग है जिसमें कम निवेश से रोजगार के अधिक से अधिक अवसर निर्मित किए जा सकते हैं। भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय द्वारा किए गए एक आकलन के अनुसार पर्यटन पर प्रति 10 लाख रुपए के निवेश पर 47.5 रोजगार के नए अवसर प्रतिपादित होते हैं जबकि कृषि एवं विनिर्माण के क्षेत्र में इसी निवेश की राशि से क्रमशः 44.7 एवं 12.6 रोज़गार के अवसर प्रतिपादित होते हैं। एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2017-18 में देश में 8.11 करोड़ लोगों को पर्यटन के क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा था, जोकि देश में कुल रोजगार के अवसरों का 12.38 प्रतिशत था। इस उद्योग में रोजगार एवं विदेशी मुद्रा अर्जन की असीम सम्भावनाएं मौजूद हैं। यात्रा एवं पर्यटन क्षेत्र, वर्तमान में भारत का तीसरा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा अर्जन करने वाला क्षेत्र है। साथ ही, देश के सकल घरेलू उत्पाद में भी इस क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान रहता है।
पर्यटन उद्योग में कई प्रकार की आर्थिक गतिविधियों का समावेश रहता है। यथा, अतिथि सत्कार, परिवहन, यात्रा इंतजाम, होटेल आदि। विदेशी मुद्रा शिक्षा फोरम इस क्षेत्र में व्यापारियों, शिल्पकारों, दस्तकारों, संगीतकारों, कलाकारों, होटेल, वेटर, कुली, परिवहन एवं टूर आपरेटर आदि को रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं।
दिनांक 4 सितम्बर 2019 को वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, विश्व यात्रा पर्यटन प्रतियोगी सूची में भारत की रैंकिंग वर्ष 2017 के 40वें स्थान से ऊपर उठकर वर्ष 2019 में 34वें स्थान पर आ गई है। यह रैंकिंग वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम द्वारा प्रत्येक 2 वर्ष में एक बार जारी की जाती है। वर्ष 2015 में जारी की गई सूची में भारत की रैंकिंग 52वें स्थान पर थी। इस प्रकार पिछले 4 वर्षों के दौरान भारत ने इस रैंकिंग में 18 स्थानों की छलांग लगाई है। एशियाई देशों में निम्न मध्य-आय श्रेणी के देशों में केवल भारत ही एक ऐसा देश है जो इस सूची में प्रथम 35 स्थानों के अंदर अपनी जगह बना पाया है। अन्यथा, इस सूची में विकसित एवं मध्य आय श्रेणी के देशों का ही वर्चस्व है।
भारत में तो हम “अतिथि देवो भव” के विचारों पर चलने वाले लोग हैं। परंतु, भारत की तुलना में अन्य देशों में पर्यटकों का आवागमन अधिक है। वर्ष 2018 में सबसे अधिक पर्यटक विदेशी मुद्रा शिक्षा फोरम फ्रांस (8.94 करोड़), स्पेन (8.28 करोड़), अमेरिका (7.96 करोड़), चीन (6.29 करोड़) एवं इटली (6.21 करोड़) में पहुंचे। जबकि भारत में केवल 1.74 करोड़ पर्यटक ही पहुंचे थे। पूरे विश्व में 140.1 करोड़ पर्यटकों ने विभिन्न देशों की यात्रा की। वर्ष 2018 में टर्की एवं वियतनाम ने पर्यटन में क्रमशः 21.7 प्रतिशत एवं 19.9 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। जबकि भारत ने 12.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की थी। इस वृद्धि दर को बहुत अधिक तेजी से बढ़ाने के प्रयास करने होंगे। भारत में अध्यात्म (योगा, ध्यान, आश्रमों में भ्रमण), मेडिकल, शिक्षा, आदि क्षेत्रों में टुरिजम की असीम सम्भावनाएं मौजूद हैं। एतिहासिक महत्व के कई स्थान एवं बौध धर्म, इस्लाम धर्म, सिख धर्म एवं हिन्दू धर्म के कई धार्मिक स्थलों को विकसित किया जाकर विदेशी पर्यटकों को देश में आकर्षित किया जा सकता है। भारत सरकार द्वारा भी देश में पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कई उपाय किए जा रहे हैं। इनमें मुख्य हैं, स्वदेशी दर्शन योजना के अन्तर्गत 13 थिमेटिक सर्कट्स का विकास किया जाना, मेडिकल पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मेडिकल वीजा आसानी से जारी किया जाना, इनक्रेडिबल इंडिया अभियान-2 को प्रारम्भ किया जाना, सरदार वल्लभ भाई पटेल की विश्व में सबसे लम्बी 182 मीटर की स्टैचू की स्थापना किया जाना तथा होटेल एवं पर्यटन के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को बढ़ाकर 100 प्रतिशत किया जाना, आदि शामिल हैं। भारतीय पर्यटन उद्योग में 87 प्रतिशत हिस्सा देशी पर्यटन का है जबकि शेष केवल 13 प्रतिशत हिस्सा ही विदेशी पर्यटन का है।
केंद्र सरकार के साथ साथ हम नागरिकों का भी कुछ कर्तव्य है कि देश में पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से हम भी कुछ कार्य करें। जैसे प्रत्येक नागरिक, देश में ही, एक वर्ष में कम से कम दो देशी पर्यटन स्थलों का दौरा अवश्य करे। विदेशों से आ रहे पर्यटकों के आदर सत्कार में कोई कमी न रखें ताकि वे अपने देश में जाकर भारत के सत्कार का गुणगान कर सकें। आज करोड़ों की संख्या में भारतीय, विदेशों में रह रहे हैं। यदि प्रत्येक भारतीय यह प्रण करे कि प्रतिवर्ष कम से कम 5 विदेशी पर्यटकों को भारत भ्रमण हेतु प्रेरणा देगा तो एक अनुमान के अनुसार विदेशी पर्यटकों की संख्या को एक वर्ष के अंदर ही दुगना किया जा सकता है।
दुनिया के इनदिनों अखबारों की सुर्खियां बना भारतीय गेहूं
नई दिल्ली । हमारे किसान जो गेहूं पैदा करते हैं, कभी वह दुनिया के अखबारों की मुख्य खबर भी बन सकता है, ऐसा कभी सोचा था? लेकिन बीते कुछ वक्त में भारत के गेहूं निर्यात पर बैन लगाने के बाद से ये वैश्विक पटल पर लगातार सुर्खियों में बना हुआ है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम से लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष तक को भारतीय गेहूं की चिंता है, तब तुर्की से लेकर मिस्र तक पहुंचने में इसने एक नया अध्याय लिखा है।
गेहूं की वैश्विक सियासत का ये सिलसिला रूस और यूक्रेन के युद्ध के बाद ही शुरू हो गया। रूस दुनिया का सबसे बड़ा गेहूं निर्यातक देश है, वहीं रूस और यूक्रेन दोनों मिलकर दुनिया का 25 प्रतिशत गेहूं निर्यात करते हैं, लेकिन आर्थिक प्रतिबंधों और युद्ध के चलते दुनिया में गेहूं की आपूर्ति बाधित हुई और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें 40 प्रतिशत तक बढ़ गईं। इससे यूरोप, उत्तरी अफ्रीका और पश्चिमी एशिया के करोड़ों लोगों के लिए खाद्य संकट पैदा हो गया। वहीं इस बीच दुनिया की नजर टिकी भारतीय गेहूं पर, क्योंकि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है।
इस बीच मई के मध्य में भारत सरकार ने गेहूं के एक्सपोर्ट पर बैन लगाने का बड़ा फैसला किया। इंटरनेशनल मार्केट में कीमतों के बढ़ने और देश में कम पैदावार का अनुमान घटने से सरकार को घरेलू स्तर पर खाद्य सुरक्षा की चिंता सताने लगी। गेहूं और आटे की कीमतें घरेलू मार्केट में बढ़ने लगी, तब महंगाई को कंट्रोल करने के लिए भी सरकार ने एक्सपोर्ट बैन का फैसला ले लिया। हालांकि भारत सरकार ने बैन से पहले हुई एक्सपोर्ट डील को पूरा करने, साथ ही साथ देश, पड़ोसी देश और अन्य विकासशील देशों को खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराने को लेकर प्रतिबद्धता जाहिर की है। खासकर के उन देशों को गेहूं एक्सपोर्ट करने की बात कही जहां ग्लोबल मार्केट में गेहूं की बढ़ती कीमतों का विपरीत असर हुआ, लेकिन इसके लिए दोनों देश की सरकारें ही आपस में डील कर सकती हैं। भारतीय गेहूं इसी तरह ‘सुर्खियां’ बनाता गया, क्योंकि बैन की खबरों ने दुनिया में खाद्य संकट को लेकर हड़कंप मचा दिया। अमेरिका, यूरोप, जी-7 से लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और अन्य वैश्विक संस्थानों ने भारत से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए कहा। दुनिया की आबादी के पेट भरने का हवाला दिया। इस बीच दावोस में हुई वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की बैठक तक में इस लेकर चर्चा हुई। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की बैठकों के दौरान ही भारत सरकार में वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने साफ कर दिया कि सरकार गेहूं के एक्सपोर्ट से बैन हटाने नहीं जा रही है। उन्होंने तब दो टूक कहा, अभी दुनिया में अस्थिरता का दौर है। इसके बाद हम एक्सपोर्ट बैन को हटा देते हैं, तब इसका फायदा काला बाजारी, जमाखोरों और सट्टेबाज़ों को मिलेगा। ये ना तो जरूरतमंद देशों के हित में होगा ना ही गरीब लोगों की मदद कर पाएगा। भारत सरकार के गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध के बाद, मिस्र सहित करीब 12 देशों ने अपनी गेहूं की डिमांड रखी। सरकार ने इसमें से कुछ को आपूर्ति करने की अनुमति दे दी।
किसानों की आमदनी बढ़ाएगी बागवानी व फूलों की खेती
बागवानी व फूलों की खेती : जानें, कौन-कौनसी फसलें देगी किसानों को अधिक मुनाफा?
बागवानी और फूलों की खेती किसानों की आमदनी बढ़ा सकती है। यह कहना है केंद्रीय खाद्यमंत्री पीयूष गोयल का। हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की 92वीं सालाना आम बैठक हुई। इसमें केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) को नई शिक्षा नीति (एनईपी) की मदद से कृषि क्षेत्र को अधिक रोजगारोन्मुख बनाने को कहा है। वहीं केंद्रीय खाद्यमंत्री पीयूष गोयल ने उन कृषि उत्पादों की देश में खेती पर जोर देने की वकालत की, जिनका अभी बड़ी मात्रा में आयात होता है। उन्होंने कहा कि देश हर साल 230 करोड़ रुपए का फूलों का आयात करता है जबकि 5,000 करोड़ रुपए का फलों का आयात होता है। मंत्री ने कहा कि इन कृषि, बागवानी और फूलों की खेती को देश में बढ़ावा दिया जाना चाहिए। गोयल ने कहा कि आईसीएआर विदेशी मुद्रा शिक्षा फोरम का मुख्य उद्देश्य अनुसंधान और नवप्रवर्तन है और ये दोनों देश के किसानों और उनके भविष्य में बड़ा बदलाव ला सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इससे कृषि क्षेत्र में युवाओं को आकर्षित करने में भी मदद मिलेगी। आईसीएआर ने कृषि शिक्षा को एनईपी के अनुरूप बनाने के तरीके सुझाने को छह सदस्यीय समिति का गठन किया है।
सबसे पहले सरकार की सभी योजनाओ की जानकारी के लिए डाउनलोड करे, ट्रेक्टर जंक्शन मोबाइल ऍप - http://bit.ly/TJN50K1
किसानों की आय बढ़ाने के लिए हो शिविरों का आयोजन
मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि कृषि को बढ़ावा देने के लिए आईसीएआर से स्कूल और कॉलेज में प्रशिक्षण शिविर आयोजित करें। गोयल ने कहा कि किसानों की आय बढ़ाने के लिए उन्हें स्टार्टअप से जोडऩे के उपायों पर काम करना चाहिए। इससे किसानों को नए विचार मिलेंगे। उन्होंने कहा कि ई-वाणिज्य का उपयोग कृषि उत्पादों के निर्यात में किया जा सकता है।
क्या है भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर)
आईसीएआर की स्थापना 1929 में हुई थी। यह देश के कृषि क्षेत्र में शोध एवं शिक्षा में संयोजन, निर्देशन और प्रबंधन का शीर्ष निकाय है। 101 आईसीएआर संस्थानों और 71 कृषि विश्वविद्यालयों के जरिये यह कृषि पाठ्यक्रमों की पेशकश करती है।
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देश में किन वस्तुओं का होता है आयात व निर्यात
भारत में आयात होने वाली मुख्य वस्तुओं में दालें, खाद्य तेल, ताजा फल व फूल और काजू हैं। भारत द्वारा जिन प्रमुख वस्तुओं का निर्यात किया जाता है, उनमें चावल, मसाले, कपास, मांस और मांस से बने खाद्य, चीनी इत्यादि शामिल हैं।
किसानों की आय के लिए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के प्रयास
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार मार्च- जून 2020 की अवधि में कृषि वस्तुओं का निर्यात पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना मे 23.24 प्रतिशत बढ़ा है। कृषि मंत्रालय ने कृषि व्यापार को बढ़ावा देने के लिए व्यापक कार्य योजना तैयार की है जो कृषि उत्पादों के मूल्य संवर्धन के साथ कृषि निर्यात तथा आयातित उत्पादों के स्थान पर घरेलू उत्पादों को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
विशिष्ट कृषि उत्पादों के लिए निर्यात संवर्धन मंच का गठन
आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य पाने के लिए कृषि क्षेत्र का आत्मनिर्भर होना जरूरी है। इसके लिए कीमती विदेशी मुद्रा अर्जित करने के साथ ही कृषि निर्यात को बढ़ावा दिया जाना आवश्यक है। निर्यात बढऩे से किसानों, उत्पादकों और निर्यातकों को अंतरराष्ट्रीय बाजार का लाभ उठाने और अपनी आय बढ़ाने में मदद मिलती है। निर्यात से खेती का रकबा बढ़ाने और कृषि उत्पादन बढ़ाने में मदद मिली है।
देश में इन कृषि वस्तुओं का बढ़ा निर्यात
विश्व व्यापार संगठन के आंकड़ों के अनुसार, 2017 में विश्व कृषि व्यापार में भारत के कृषि निर्यात और आयात का हिस्सा क्रमश: 2.27 प्रतिशत और 1.90 प्रतिशत था। कोविड महामारी की वजह से हुए लॉकडाउन के कठिन समय में भी, भारत ने खाद्यान्नों का निर्यात जारी रखते हुए इस बात का पूरा ख्याल रखा कि विश्व खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में किसी तरह की बाधा नहीं आए। मार्च -जून 2020 की अवधि में देश से 25552.7 करोड़ रुपए की कृषि वस्तुओं का निर्यात हुआ जो कि 2019 की इसी अवधि में हुए 20734.8 करोड़ रुपए के निर्यात की तुलना में 23.24 प्रतिशत अधिक है।
विश्व बाजार में फल व सब्जियों के आयात-निर्यात को लेकर भारत की स्थिति
बागवानी के क्षेत्र में भी भारत में काफी तरक्की हो रही है। फलों और सब्जियों के उत्पादन के मामले में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। देश से सालाना 5,638 करोड़ रूपए के 8.23 लाख मिट्रिक टन फलों और 5679 करोड़ रुपए के 31.92 लाख मिट्रिक टन सब्जियों का निर्यात होता है। फलों में सबसे ज्यादा निर्यात अंगूर का होता है इसके बाद आम,अनार, केला, और संतरे का स्थान है। निर्यात की जाने वाली ताजा सब्जियों में प्याज, मिली जुली सब्जियां, आलू, टमाटर और हरी मिर्च प्रमुख हैं। हालांकि फलों और सब्जियों के विश्व स्तर पर होने वाले 208 अरब डॉलर के निर्यात में भारत की हिस्सेदारी नहीं के बराबर है। इस स्थिति में सब्जियों के निर्यात की असीम संभावनाएं मौजूद हैं। इसलिए फलों और सब्जियों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी नीति बनाई गई है। इसमें अंगूर, आम, अनार, प्याज, आलू और जकुनी के निर्यात को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके साथ ही कई अन्य कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने की भी तैयारी है ताकि बड़े पैमाने पर गुणवत्ता युक्त उत्पादों का निर्यात हो सके। आयातित कृषि उत्पादों के स्थान पर घरेलू उत्पादों के विकल्प को प्रोत्साहित करने की भी योजना है ताकि कृषि के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाया जा सके।
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इन आठ कृषि उत्पादों की खेती पर जोर दे रही है सरकार
कृषि सहकारिता और किसान कल्याण विभाग की पहल पर, कृषि निर्यात को नई ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए उत्पाद विशिष्ट निर्यात संवर्धन मंच बनाए गए हैं। आठ कृषि और संबद्ध उत्पादों के लिए निर्यात संवर्धन फोरम (ईपीएफ)। कृषि विभाग और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के वाणिज्य विभाग के तत्वावधान में अंगूर, आम, केला, प्याज, चावल, पोषण-अनाज, अनार और फूलों की खेती का गठन किया गया है।
अगर आप अपनी कृषि भूमि, अन्य संपत्ति , पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण, दुधारू मवेशी व पशुधन बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।
सरकारी बैंकों में लटके रहे ताले, बैंककर्मियों ने लगाए चौकीदार चोर है के नारे
ग्वालियर. शहर की सभी राष्ट्रीयकृत बैंकों में सोमवार से शुरू हुई दो दिवसीय हड़ताल के चलते किसी प्रकार का कामकाज नहीं हुआ। इन बैंकों में पूरे दिन ताले लटके रहे। यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन के आव्हान पर की जा रही अखिल भारतीय बैंक हड़ताल के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के 12 बैंकों की 200 शाखाओं के 3000 अधिकारी-कर्मचारी नो वर्क-नो पे के आधार पर हड़ताल में शामिल रहे। पहले दिन की इस हड़ताल की वजह से करीब 100 करोड़ का लेन-देन प्रभावित हुए और लगभग 45 करोड़़ के चेक क्लियर नहीं हो पाए। इस हड़ताल में महाराज बाड़े पर प्रदर्शन के दौरान बैंककर्मी चौकीदार चोर है विदेशी मुद्रा शिक्षा फोरम के नारे लगा रहे थे। वहीं निजी क्षेत्र के बैंकों में रोजाना की तरह कामकाज किया गया।
एटीएम से निकाला कैश
शहर में सरकारी व निजी क्षेत्र के बैंकों के लगभग 480 एटीएम हैं। हड़ताल के कारण ग्राहकों को कोई परेशानी ना हो, इसके लिए एटीएम में कैश लोड करने वाली सुरक्षा एजेंसियों ने एटीएम को पहले से कैश से लोड कर दिया था। इसलिए ग्राहकों को अधिक परेशानी नहीं हुई। बैंकों की हड़ताल के चलते लोग एटीएम से कैश निकालते देखे गए। फिर भी कई जगहों पर एटीएम में कैश नहीं मिल पाया।
नौ यूनियन हुईं शामिल
सरकारी बैंकों की इस हड़ताल में पांच कर्मचारी यूनियन एआईबीईए, एनसीबीई, आईएनबीईएफ, एनओबीडब्ल्यू, बीईएफआई और चार ऑफिसर्स एसोसिएशन एआईबीओसी, आईएनबीओसी, एआईबीओए, एनओबीओ शामिल हुई।
नहीं हो पाए ये काम
राष्ट्रीयकृत बैंकों की हड़ताल की वजह से बैंकों में नए खाते नहीं खुल सके। ग्राहक सेवाओं में नकद जमा-निकासी, चेक क्लियरिंग, लॉकर ओपनिंग, ऋण प्रकरण, लेखा, विदेशी मुद्रा विनिमय, ड्रॉफ्ट्स, आरटीजीएस-नेफ्ट, चालान, पासबुक प्रिंटिंग आदि जैसे काम नहीं हो पाए।
एसबीआइ मुख्य शाखा पर प्रदर्शन
यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन से जुड़े बैंकों के अधिकारी-कर्मचारी सुबह 10 बजे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की महाराज बाड़ा स्थित मुख्य शाखा पर पहुंचे और करीब ढाई घंटे प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के दौरान बैंककर्मियों ने जो सरकार निक्कमी है, वो सरकार बदलनी है, वित्त मंत्री मुर्दाबाद, संघर्षों से पाया वो अधिकार हमारा है, हम अपना अधिकार मांगते, नहीं किसी से भीख मांगते जैसे नारे भी लगाए। इसमें यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन के संयोजक अवधेश अग्रवाल, आरसी धनगर, रहीम खान, हर्ष अरोरा, वीरेन्द्र श्रीवास्तव, अनूप राणा, अजय देवले, भरत शर्मा, अतुल प्रधान, गोवर्धन शर्मा, हिमांशु सारस्वत, रितिका बघेल, आरके शुक्ला आदि शामिल हुए। 16 मार्च को हड़ताल के दूसरे दिन सुबह 9.30 बजे बैंक ऑफ इंडिया फूलबाग शाखा पर प्रदर्शन किया जाएगा।
100 करोड़ के लेन-देन प्रभावित
सरकारी बैंकों का निजीकरण किसी भी हालत में स्वीकार नहीं किया जाएगा। इसके लिए सभी बैंककर्मी दो दिवसीय हड़ताल कर रहे हैं। पहले दिन बैंकों की हड़ताल से करीब 100 करोड़ के लेन-देन प्रभावित हुए होंगे।
- हेमंत गोस्वामी, उप महासचिव, भारतीय स्टेट बैंक कर्मचारी संघ ग्वालियर अंचल