शुरुआती लोगों के लिए निवेश के तरीके

परिवेश और प्रवृत्तियाँ

परिवेश और प्रवृत्तियाँ
9. कहानी में प्रेरणा बिन्दु का विस्तार होता।

एशियन नर कोयल

कहानी का अर्थ परिभाषा विशेषताएँ

यहाँ हिन्दी के विद्वानों का कहानी के सन्दर्भ में विचार जानना आवश्यक है। अतः अब हम भारतीय विद्वानों के कहानी संबधी दृष्टिकोण पर विचार करते हैं। मुंशी प्रेमचन्द के अनुसार , “ कहानी (गल्प) एक रचना है , जिसमें जीवन के किसी एक अंग या मनोभाव परिवेश और प्रवृत्तियाँ को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य रहता है। उसके चरित्र , उसकी शैली तथा कथा - विन्यास सब उसी एक भाव को पुष्ट करते हैं। ”

  • बाबू श्यामसुन्दर दास का मत है कि , “ आख्यायिका एक निश्चित लक्ष्य या प्रभाव को लेकर नाटकीय आख्यान है।"
  • बाबू गुलाबराय का विचार है कि , “ छोटी कहानी एक स्वतः पूर्ण रचना है जिसमें एक तथ्य या प्रभाव को अग्रसर करने वाली व्यक्ति-केंद्रित घटना या घटनाओं के आवश्यक , परन्तु कुछ-कुछ अप्रत्ययाशित ढंग से उत्थान-पतन और मोड़ के साथ पात्रों के चरित्र पर प्रकाश डालने वाला कौतूहलपूर्ण वर्णन हो। ”
  • इलाचन्द्र जोशी के अनुसार "जीवन का चक्र नाना परिस्थितियों के संघर्ष से उल्टा सीधा चलता रहता है। इस सुवृहत् चक्र की किसी विशेष परिस्थिति की स्वभाविक गति को प्रदर्शित करना ही कहानी की विशेषता है।"
  • जयशंकर प्रसाद कहानी को सौन्दर्य की झलक का रस 'प्रदान करने वाली मानते हैं।
  • रायकृष्णदास कहानी को ‘ किसी न किसी सत्य का उद्घाटन करने वाली तथा मनोरंजन करने वाली विधा कहते हैं।
  • ' अज्ञेय ' कहानी को ' जीवन की प्रतिच्छाया ' मानते है तो जैनेन्द्र की कोशिश करने वाली एक भूख ' कहते हैं। कुमार ' निरन्तर समाधान पाने

कहानी की विशेषताएँ

1. कहानी एक कथात्मक संक्षिप्त गद्य रचना है , अर्थात कहानी आकार में छोटी होती है जिसमें कथातत्व की प्रधानता होती है।

2. कहानी में ' प्रभावान्विति ' होती है अर्थात् कहानी में विषय के एकत्व प्रभावों की एकता का होना भी बहुत आवश्यक है।

3. कहानी ऐसी हो , जिसे बीस मिनट , एक घण्टा या एक बैठक में पढ़ा जा सके। 4. कौतूहल और मनोरंजन कहानी का आवश्यक गुण है।

5. कहानी परिवेश और प्रवृत्तियाँ में जीवन का यर्थाथ होता है , वह यर्थाथ जो कल्पित होते हुए भी सच्चा लगे ।

6. कहानी में जीवन के एक तथ्य का , एक संवेदना अथवा एक स्थिति का प्रभावपूर्ण चित्रण होता है।

7. कहानी में तीव्रता और गति आवश्यक है जिस कारण विद्वानों ने उसे 100 गज की दौड़ कहा है। अर्थात कहानी आरम्भ हो और शीघ्र ही समाप्त भी हो जाए।

8. कहानी में एक मूल भावना का विस्तार आख्यानात्मक शैली में होता है।

परिवेश और प्रवृत्तियाँ

MRP ₹ 80

Offer Price ₹ 68

मध्ययुग में भक्ति और रीति दो काव्यधाराएँ समानरूप से प्रवाहित हैं। दोनों की दो दिशाएँ हैं। भक्त कवियों में कबीर, जायसी, सूर, मीरा, तुलसी ने अपनी रचनाओं में तत्कालीन सामाजिक विरोध और समन्वय को अभिव्यक्ति किया। इन कवियों ने ब्रह्मïलीन आनन्दावस्था को प्रेम के साथ जोड़कर देखा। जीवन की सच्ची परिस्थितियों को सीधे-सीधे आत्मसात् कर माॢमक अंकन करना भक्त कवियों की विशेषता है। रीतिकालीन काव्य परम्परा हिन्दीभाषी प्रदेश में सामन्तवर्ग की विशिष्टï सांस्कृतिक परम्परा है। तुलसीदास के समय से ही एक नये ढंग का जातीय सांस्कृतिक विचलन उपस्थित होने लगा था। इस प्रकार भक्तिकाल से ही रीतियुग के बीज सूत्र मिलने लगे थे। 'राधा कन्हाई सुमिरन' के बहाने भक्ति ने रीति का रूप ग्रहण कर लिया। केशव, बिहारी, मत्तिराम, भूषण, देव, पद्माकर, घनानन्द, द्विजदेव, भारतेन्दु, रत्नाकर रीति परम्परा के प्रमुख कवि हैं, जिन्होंने काव्यशास्त्रीय लक्षण ग्रन्थों में आबद्ध हो काव्य-कौशल अभिव्यक्त किया। इनके काव्य में उक्ति भंगिमा, अतिरंजित चमत्कारयुक्त आलंकारिक चित्रण है। भक्ति और रीति के परिवेश और प्रवृत्तियाँ प्रमुख कवियों और उनके काव्य का अध्ययन इस पुस्तक की विशेषता है। साहित्य के अध्येताओं के लिए महत्त्वपूर्ण। विषय-सूची : भूमिका, 1. कबीर साहित्य का समाज-दर्शन, 2. तुलसीदास : गति और प्रगति, 3. सूरकाव्य का सांस्कृतिक बोध, 4. जायसी की प्रेम साधना, 5. रीतिकालीन परिवेश और प्रवृत्तियाँ, 6. केशव : काव्य-प्रतिभा और पाण्डित्य, 7. बिहारी : भाषा की समास शक्ति और कल्पना की समाहार शक्ति, 8. मतिराम और उनकी भाव सरसता, 9. भूषण : पौरुष और पराक्रम के प्रतीक, 10. देव : विलक्षण पाण्डित्य, 11. भावमूॢत पद्माकर, 12. घनानन्द : साक्षात् रसर्मूत, 13. द्विजदेव के काव्य में रस और ऋतु, 14. ब्रजभाषा काव्य और भारतेन्दु, 15. ब्रजभाषा काव्य-परम्परा के अन्तिम प्रौढ़ कवि : रत्नाकर।

प्रश्न (2) : सही वाक्य पर () का चिह्न और गलत वाक्यों पर (✗) का चिह्न लगाएं –

(क) हम रंगों की पहचान स्पर्श द्वारा करते हैं | (✗)

(ख) कुत्ते की सुनने की शक्ति तेज होती है | ()

(ग) उल्लू दिन के समय सोते हैं | ()

(घ) हम स्वाद का अनुभव देखकर करते हैं | (✗)

(ड.) खरगोश अपने कानों से खतरों का अनुमान लगा लेते हैं |

(च) सांप के बाहरी कान नहीं होते हैं | ()

(छ) पक्षी चारों तरफ देखने के लिए अपनी गर्दन घुमा लेते हैं | ()

(ज) तेंदुआ अँधेरे में नहीं देख सकता है | (✗)

प्रश्न (3) : निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए –

(क) जमीन पर मीठा गिरने से चींटियाँ कैसे आ जाती हैं ?

उत्तर- चींटियों की सूंघने की शक्ति बहुत अधिक होती है | मीठे की गंध सूंघकर चींटियाँ वहां आ जाती हैं |

(ख) पक्षी अपनी गर्दन क्यों घुमाते हैं ?

उत्तर- ज्यादातर पक्षियों की परिवेश और प्रवृत्तियाँ आँखों की पुतली घूम नहीं सकती | इसलिए वे चारों तरफ देखने के लिए अपनी गर्दन घुमाते हैं |

(ग) कुत्तों का उपयोग अपराधियों को पकड़ने में क्यों किया जाता है ?

उत्तर – कुत्तों में सूघने की क्षमता बहुत तेज होती है | कुत्ते अपराधियों द्वारा प्रयोग में लायी गयी वस्तुओं को सूंघकर उनको पकड़ने में सहायता करते हैं |

(घ) खरगोश किस प्रकार खतरे का अनुमान लगाते हैं ?

उत्तर- खरगोश के बड़े कान मामूली ध्वनि को भी सुन सकते हैं , जो खतरों का अनुमान लगाने मेंसक्षम होते है | खरगोश के कान की विशेषता है कि उनके कान ध्वनि की दिशा में घूम जाते हैं |

कोयल कमाल के शातिर चालाक व परिवेश और प्रवृत्तियाँ बर्बर परिंदे

एशियन मादा कोयल

एशियन मादा कोयल (फोटो साभार - विकिपीडिया) महान कूटनीतिज्ञ आचार्य चाणक्य के कथनानुसार जो ज्यादा ही अधिक मीठा बोलता है वो अक्सर भरोसेमन्द नहीं होता। ऐसे लोग प्राय: आलसी, कामचोर, चालाक व धूर्त प्रवृत्ति के होते हैं। वहीं इनकी शारीरिक भाषा एवं आँखों की पुतलियों की हरकत भी अलग सी होती है।

बिना किसी लिंग परिवेश और प्रवृत्तियाँ भेदभाव की ये प्रवृत्तियाँ सिर्फ मनुष्यों में ही हों ये जरूरी नहीं क्योंकि यह हमारे आस-पास के परिवेश में रह रहे कई प्रजाति के परिन्दों में भी मौजूद है। ऐसे ही कोयल प्रजाति के परिन्दे जो दिखने में भले ही शर्मीले व सीधे-सादे स्वभाव के लगते हों लेकिन असल जिन्दगी में ये शातिर, चालाक, धूर्त व बर्बर प्रवृत्ति के होते हैं।

प्रयोगवाद की प्रमुख प्रवृत्तियाँ

प्रयोगवादी कविता में मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रवृत्तियाँ दिखाई देती हैं–

(1) घोर अहंनिष्ठ वैयक्तिकता– प्रयोगवादी कवि समाज चित्रण की अपेक्षा वैयक्तिक कुरूपता का प्रकाशन करता है। मन की नग्न एवं अश्लील मनोवृत्तियों का चित्रण करता है। अपनी असामाजिक एवं अहंवादी प्रकृति के अनुरूप मानव जगत्‌ के लघु और परिवेश और प्रवृत्तियाँ छुद्र प्राणियों को काव्य में स्थान देता है। भावुकता के स्थान पर बौद्धिकता की प्रतिष्ठा करता है–

चलो उठें अब
अब तक हम थे बन्धु
सैर को आए–
और रहे बैठे तो,/ लोग कहेंगे
धुंधले में दुबके दो प्रेमी बैठे हैं
वह हम हों भी / तो यह हरी घास ही जाने। –अज्ञेय

(2) अश्लील प्रेम प्रदर्शन– प्रयोगवादी कवि मांसल प्रेम एवं दमित वासना की अभिव्यवित में रस लेता है। वह अपनी ईमानदारी यौन वर्जनाओं के चित्रण में प्रदर्शित करता है–

वैचित्र्य प्रदर्शन, प्रकृति चित्रण

(5) वैचित्र्य प्रदर्शन– कहीं कहीं वर्णन और वर्ण्य वैचित्र्य प्रदर्शन भी प्रयोगवादी कवियों ने परिवेश और प्रवृत्तियाँ किए हैं। वस्तुतः यह प्रवृत्ति बड़ी हास्यास्पद है। जैसे–

अगर कहीं मैं तोता होता!
को क्‍या होता? / तो क्या होता?
तो होता /तो तो तो ता ता ता ता
होता होता होता होता।

(6) प्रकृति चित्रण– नई कविता में प्रकृति चित्रण शुद्ध परिवेश और प्रवृत्तियाँ कला के आग्रह से पूर्ण है, जिसमें साम्य की अपेक्षा वैषम्य की प्रचुरता है। हाँ, प्रकृति चित्रण में बिम्बों का सफलतापूर्वक अंकन है।

नहीं
सांझ
एक असभ्य आदमी की
जम्हाई है। –पंत

(6) व्यापक सौन्दर्य बोध– अति उपेक्षित वस्तु या स्थान का सौन्दर्यपूर्ण वर्णन करना प्रयोगवादी कवि की कला का गुण है–

हवा चली
छिपकली की टाँग
मकड़ी के जाले में फँसी रही, फंसी रही।

उपसंहार

प्रयोगवाद का जन्म सन्‌ 1943 में स्वीकार किया जाता है। इस वर्ष श्री 'अज्ञेय' के द्वारा सम्पादित प्रयोगवादी कविताओं के सर्वप्रथम संग्रह 'तार सप्तक' का प्रकाशन हुआ था। इस संग्रह में सर्वश्री अज्ञेय, गजानन माधव 'मुक्तिबोध', नेमिचन्द्र जैन, भारतभूषण अग्रवाल, प्रभाकर माचवे, गिरिजाकुमार माथुर और रामविलास शर्मा की कविताएँ ली गई थीं।

इसके बाद सन्‌ 1951 में 'दूसरा सप्तक' प्रकाशित हुआ | उसमें सर्वश्री भवानीशंकर मिश्र, शकुन्तला माथुर, हरिनारायण व्यास, शमशेर बहादुर सिंह, नरेश मेहता, रघुवीर सहाय तथा धर्मवीर 'भारती' की कविताएं संगृहीत हैं। इस समय तक प्रयोगवादी कविता का स्वरूप बहुत कुछ स्पष्ट हो गया था। अब 'तीसरा सप्तक' और 'चौथा सप्तक' भी प्रकाशित हो चुका है।

रेटिंग: 4.42
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 631
उत्तर छोड़ दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा| अपेक्षित स्थानों को रेखांकित कर दिया गया है *