सीसीआई संकेतक क्या है

सीसीआई संकेतक क्या है
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बढ़ते हवाई किराये पर प्रतिस्पर्धा आयोग की नजर, लगेगी कंपनियों पर लगाम
विमानन कंपनियों के बीच संभावित कारोबारी गोलबंदी का पता लगाने के लिए भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) उन कंपनियों के द्वारा टिकट की दर तय करने में उपयोग किए जाने वाले अल्गोरिदम का विश्लेषण करेगा। यह बात एक वरिष्ठ अधिकारी ने शुक्रवार को कही।
मांग बढ़ने पर महंगे हो जाते हैं टिकट
गौरतलब है कि मांग बढ़ने पर विमानन कंपनियों के टिकट मूल्य काफी बढ़ते देखे गए हैं। प्रतिस्पर्धा आयोग देश में विभिन्न कारोबारी क्षेत्रों में कारोबार के अनुचित तौर-तरीकों को को नियंत्रित करने का काम करता है।
2016 के जाट आंदोलन के बाद शुरू की तहकीकात
प्रतिस्पर्धा नियामक 2016 के शुरू में हुए जाट आंदोलन के बाद से ही इस मुद्दे सीसीआई संकेतक क्या है की तहकीकात करने में जुटा हुआ है, जब चंडीगढ़-दिल्ली मार्ग पर विमानन किराया काफी अधिक बढ़ गया था। आयोग के चेयरपर्सन डीके सीकरी ने एक साक्षात्कार में कहा कि नियामक यह समझने की कोशिश कर रहा है कि विमानन किराया तय करने में अल्गोरिदम किस प्रकार से काम करता है।
इस कवायद का मकसद संभावित गोलबंदी को रोकना है। वह उद्योग संघ एसोचैम द्वारा आयोजित एक सम्मेलन के इतर मौके पर बोल रहे थे। सम्मेलन में अपने संबोधन के दौरान सीकरी ने कहा था कि खुद सीखने वाले अल्गोरिदम के जरिए डिजिटल कंपनियों के बीच हो रहा सांठ-गांठ प्रतिस्पर्धा कानून लागू करने वाले अधिकारियों के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। जाट आंदोलन के दौरान चंडीगढ़-दिल्ली मार्ग पर उड़ानों के टिकट मूल्य में हुई भारी सीसीआई संकेतक क्या है वृद्धि का हवाला देते हुए उन्होंने आश्चर्य जताया कि ऐसा भला कैसे हो सकता है।
सीकरी ने कहा कि हमने विमानन कंपनियों से पूछा। उन्होंने कहा कि हमें नहीं पता। अल्गोरिदम इसे ऊपर ले जा रहे हैं। अल्गोरिदम क्या है। यह खुद ही ऊपर नहीं जा सकता। किसी ने उसकी इस तरह से डिजाइन की है। इसमें लॉजिक डाला गया है। विमानन कंपनियां कहती हैं कि उनके पास ये संकेतक और वेरिएबल हैं, लेकिन वे यह नहीं बताते किए इन्हें कितना वेटेज दिया गया है। इसलिए हम कई तकनीक विशेषज्ञों से बात कर रहे हैं।
अल्गोरिदम क्या है ?
यह एक तरह से कंप्यूटर सॉफ्टवेयर आधारित ट्रेड है सीसीआई संकेतक क्या है जिसमें खरीदारी के चलन के विश्लेषण के बाद सॉफ्टवेयर खुद निर्णय लेकर खरीद अथवा बिक्री करता है। मुख्य रूप से इसका प्रयोग बड़े ट्रेडर शेयरों के सौदों में करते हैं।
विमानन कंपनियों के बीच संभावित कारोबारी गोलबंदी का पता लगाने के लिए भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) उन कंपनियों के द्वारा टिकट की दर तय करने में उपयोग किए जाने वाले अल्गोरिदम का विश्लेषण करेगा। यह बात एक वरिष्ठ अधिकारी ने शुक्रवार को कही।
मांग बढ़ने पर महंगे हो जाते हैं टिकट
गौरतलब है कि मांग बढ़ने पर विमानन कंपनियों के टिकट मूल्य काफी बढ़ते देखे गए हैं। प्रतिस्पर्धा आयोग देश में विभिन्न कारोबारी क्षेत्रों में कारोबार के अनुचित तौर-तरीकों को को नियंत्रित करने का काम करता है।
2016 के जाट आंदोलन के बाद शुरू की तहकीकात
प्रतिस्पर्धा नियामक 2016 के शुरू में हुए जाट आंदोलन के बाद से ही इस मुद्दे की तहकीकात करने में जुटा हुआ है, जब चंडीगढ़-दिल्ली मार्ग पर विमानन किराया काफी अधिक बढ़ गया था। आयोग के चेयरपर्सन डीके सीकरी ने एक साक्षात्कार में कहा कि नियामक यह समझने की कोशिश कर रहा है कि विमानन किराया तय करने में अल्गोरिदम किस प्रकार से काम करता है।
इस कवायद का मकसद संभावित गोलबंदी को रोकना है। वह उद्योग संघ एसोचैम द्वारा आयोजित एक सम्मेलन के इतर मौके पर बोल रहे थे। सम्मेलन में अपने संबोधन के दौरान सीकरी ने कहा था कि खुद सीखने वाले अल्गोरिदम के जरिए डिजिटल कंपनियों के बीच सीसीआई संकेतक क्या है हो रहा सांठ-गांठ प्रतिस्पर्धा कानून लागू करने वाले अधिकारियों के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। जाट आंदोलन के दौरान चंडीगढ़-दिल्ली मार्ग पर उड़ानों के टिकट मूल्य में हुई भारी वृद्धि का हवाला देते हुए उन्होंने आश्चर्य जताया कि ऐसा सीसीआई संकेतक क्या है भला कैसे हो सकता है।
विमानन कंपनियों से की पूछताछ
सीकरी ने कहा कि हमने विमानन कंपनियों से पूछा। उन्होंने कहा कि हमें नहीं पता। अल्गोरिदम इसे ऊपर ले जा रहे हैं। अल्गोरिदम क्या है। यह खुद ही ऊपर नहीं जा सकता। किसी ने उसकी इस तरह से डिजाइन की है। इसमें लॉजिक डाला गया है। विमानन कंपनियां कहती हैं कि उनके पास ये संकेतक और वेरिएबल हैं, लेकिन वे यह नहीं बताते किए इन्हें कितना वेटेज दिया गया है। इसलिए हम कई तकनीक विशेषज्ञों से बात कर रहे हैं।
अल्गोरिदम क्या है ?
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सीसीआई संकेतक क्या है
दूरसंचार क्षेत्र के अपने समकक्ष मंत्रालय की तर्ज पर नागरिक उड्डयन मंत्रालय की भी एक लाइसेंस वाले उद्योग में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का पोषण करने में नाजुक सी भूमिका है। लेकिन इस विरोधाभासी मिसाल के बीच भी मंत्रालय के विमानन किरायों को नियंत्रित करने और संभावित अनियमितताओं को भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) के पास भेजने की योजना को समझ पाना कठिन है। निरपवाद रूप से इसके पक्ष में दलीलें आ सकती हैं क्योंकि विमानन कंपनियां कई दफा अपने दबदबे का गलत इस्तेमाल करती हैं। लेकिन इससे दो मुद्दे सामने आते हैं। पहला, अगर विमानन कंपनियां ऐसा करती हैं तो क्या यह इतना आम है कि इसे मोटेतौर पर धोखाधड़ी का नाम दे दिया जाए? दूसरा क्या मंत्रालय के पास वाकई इतने साधन हैं कि वह ऐसी गतिविधियों का पता लगा सके और उनकी जांच कर सके? पहले बिंदु की बात करें तो विमानन कंपनियों द्वारा अतिरिक्त किराया वसूलने का एक संकेतक उनका जबरदस्त मुनाफा होना चाहिए था लेकिन वह तो कहीं नजर ही नहीं आता। सीएपीए के आंकड़ों के मुताबिक भारत की सात घरेलू विमानन कंपनियों (जेट एयरवेज और जेट कनेक्ट को अलग-अलग मानकर) को वर्ष 2012-13 के दौरान करीब 1.65 अरब डॉलर (तकरीबन 9,000 करोड़ रुपये) का नुकसान हुआ। अध्ययन के मुताबिक इस नुकसान का 40 फीसदी हिस्सा साल की आखिरी तिमाही में हुआ। इसकी वजह थी पारंपरिक तौर पर यात्रा के लिहाज से कमजोर मौसम यानी जनवरी और मार्च के बीच दी गई भारी छूट। आगे का रुख करें तो कमजोर होता रुपया लागत पर और अधिक दबाव डालेगा, खासतौर पर ईंधन के मामले में। हालांकि किंगफिशर एयरलाइंस के बाहर होने से प्रतिस्पर्धात्मक दबाव कम हुआ होगा लेकिन एयरएशिया जैसी गंभीर प्रतिस्पर्धी के बाजार में आने के बाद इस बात की संभावना कम ही है कि विमानन कंपनियां ग्राहकों से अधिक शुल्क वसूल सकें। इसके अलावा चूंकि विमानन कंपनियों को पहले किराये को अलग-अलग हिस्से में पेश करना होता है तो क्या उनकी निगरानी करना आवश्यक है? क्या एक भारतीय विमान यात्री जिसके बारे में यह कहा जा सकता है कि वह औसत से अधिक शिक्षित होगा, वह यह पता नहीं लगा पाएगा कि उसे ठगा गया है अथवा नहीं? चाहे जो भी हो, सीसीआई के पास भी यह अधिकार है कि वह किसी भी तरह के गैर प्रतिस्पर्धी व्यवहार का स्वत: संज्ञान ले सके। अतीत में उसने ऐसा किया भी है। ऐसे में मंत्रालय के दखल का क्या तुक है? यहां पर क्षमताओं से संबंधित दूसरा सवाल पैदा होता है जिसका मंत्रालय के पास सर्वथा अभाव है। निश्चित तौर पर निगरानी इकाई बनाने की योजना इस उद्योग के कामकाज के प्रति अनभिज्ञता दर्शाती है। यह कहना मुश्किल है किसी खास मार्ग पर कितना किराया समुचित है? यह सब टिकट बुक करने के समय, सीट की उपलब्धता आदि तमाम बातों पर निर्भर करता है। अगर किसी चीज की जरूरत थी तो वह था सरकारी नागरिक उड्डïयन महानिदेशालय के स्थान पर एक स्वतंत्र नियामक। ऐसा खासतौर पर इसलिए क्योंकि जिस विशेष आर्थिक शाखा को विमान किरायों की निगरानी करनी है उसे उस मंत्रालय के अधीन काम करना होगा जिसके पास एयर इंडिया का स्वामित्व है जो देश की चौथी सबसे बड़ी घरेलू विमानन कंपनी है। ऐसा करना गलत और अनैतिक है। यह रहस्य ही है कि सरकार एक ऐसे क्षेत्र को लेकर इतनी ङ्क्षचतित क्यों है जिससे देश की अत्यंत अल्प आबादी प्रभावित होती है। खासतौर पर तब जब देश के सबसे बड़े परिवहन साधन भारतीय रेल की प्रतिष्ठा दांव पर है।
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